अंधेरे में रोशनी की तलाश

 विनोद kumar झा

गांव के किनारे बसे एक छोटे से घर में, रमेश (काल्पनिक नाम है ) अपनी बूढ़ी मां और छोटी बहन के साथ रहता था। रमेश गरीब था, परंतु उसकी मेहनत और हौसला उसे हर मुश्किल से लड़ने की ताकत देता था। वह दिनभर खेतों में काम करता और रात को लालटेन की धुंधली रोशनी में पढ़ाई करता था।  

गांव के लोग अक्सर कहते, "रमेश, तुम्हारी हालत देखकर लगता है कि तुमसे कुछ बड़ा नहीं होगा। खेत जोतने के सिवा तुम्हारे भाग्य में कुछ नहीं है।" रमेश इन बातों पर ध्यान नहीं देता। वह जानता था कि अंधेरे से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता शिक्षा है।  

कठिनाईयों का अंधेरा  : एक दिन गांव में एक बड़ी बाढ़ आई। रमेश का घर और खेत दोनों बर्बाद हो गए। पूरा परिवार एक पेड़ के नीचे शरण लेने पर मजबूर हो गया। अंधेरी रात में मां की खांसती आवाज़ और बहन की रोती आंखें रमेश का हौसला तोड़ रही थीं। लेकिन उसने खुद से वादा किया कि वह हार नहीं मानेगा।  

रमेश ने बाढ़ के बाद मलबे से कुछ लकड़ियां इकट्ठा कीं और उन्हें बेचकर थोड़ा पैसा कमाया। इस पैसे से उसने मां और बहन के लिए खाना खरीदा। लेकिन यह बहुत नहीं था। गांव वालों ने मदद करने का वादा किया, पर कोई आगे नहीं आया।  

 रोशनी की एक किरण  : एक दिन रमेश शहर गया और वहां एक पुस्तकालय देखा। अंदर कदम रखते ही उसकी आंखें चमक उठीं। वहां किताबों की असीमित दुनिया थी। पुस्तकालय के मालिक ने रमेश की हालत देखी और उससे पूछा, "बेटा, क्या तुम पढ़ाई करना चाहते हो?"  

रमेश ने विनम्रता से सिर हिलाया। पुस्तकालय के मालिक ने उसे हर हफ्ते किताबें उधार लेने की अनुमति दी। वह किताबें घर लाता और लालटेन की रोशनी में पढ़ता।  

 संघर्ष और सफलता  : रमेश ने बचे हुए खेत को सुधारने का प्रयास किया और साथ ही किताबों से नई-नई तकनीकें सीखी। उसने फसल उगाने के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल शुरू किया। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी फसल पहले से बेहतर होने लगी।  

इसके साथ ही, रमेश ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू की। दिन में खेत में काम और रात में पढ़ाई—यह उसकी दिनचर्या बन गई। आखिरकार, रमेश ने सरकारी नौकरी का परीक्षा परिणाम पास कर लिया। अब वह एक कृषि अधिकारी था।  

अंधेरे से रोशनी तक का सफर  : रमेश ने अपनी मां और बहन के लिए एक नया घर बनवाया। उसने गांव के बच्चों के लिए एक स्कूल भी शुरू किया ताकि किसी और को अंधेरे में अपनी रोशनी ढूंढने के लिए अकेले संघर्ष न करना पड़े।  

यह कहानी सिर्फ रमेश की नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति की है, जो अंधेरे में उम्मीद की एक किरण तलाशते हुए रोशनी तक पहुंचता है। जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, अगर हौसला और मेहनत का साथ हो, तो अंधेरा कभी स्थायी नहीं रहता।

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