विनोद kumar झा
"क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान के प्रिय सेवक भी अभिमान के शिकार हो सकते हैं? चाहे वह उनकी शक्ति का हो, उनकी गति का, या उनके रूप का। लेकिन भगवान की लीला ऐसी होती है कि वह अपने भक्तों का अभिमान भी प्रेमपूर्वक तोड़ देते हैं। आज हम आपको एक ऐसी ही अद्भुत कथा सुनाने जा रहे हैं, जिसमें भगवान कृष्ण ने अपनी चतुराई और करुणा से रानी सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र का घमंड चूर-चूर कर दिया।
त्रेतायुग में भगवान राम और द्वापरयुग में भगवान कृष्ण, दोनों रूपों में एक समानता है—अपने भक्तों को सही मार्ग दिखाने की उनकी अनोखी क्षमता। लेकिन इस बार कहानी का नायक कोई और है—पवनपुत्र हनुमान। उनकी भक्ति, उनका समर्पण और उनकी बुद्धिमत्ता ने कैसे भगवान के तीन परमप्रियों का अभिमान तोड़ा, यह जानकर आप भी अचंभित हो जाएंगे।
कहानी में गरुड़ का अपने वेग पर गर्व है, सुदर्शन चक्र को अपनी शक्ति पर घमंड है, और रानी सत्यभामा को अपने सौंदर्य का अभिमान। लेकिन भगवान ने कैसे इन तीनों को उनकी सीमाओं का आभास कराया और साथ ही यह भी सिखाया कि सबसे बड़ा गुण है भक्ति और समर्पण।
तो तैयार हो जाइए, इस रोचक कथा को सुनने के लिए, जिसमें भक्ति, विनम्रता और भगवान की दिव्य लीला का अद्भुत समन्वय देखने को मिलेगा। आइए, शुरुआत करते हैं इस प्रेरणादायक कथा की, जो न केवल हमें भगवान की महिमा का अनुभव कराएगी, बल्कि जीवन में सादगी और विनम्रता का महत्व भी सिखाएगी।"
भगवान कृष्ण द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे। सुदर्शन चक्र और गरुड़ भी वहां उपस्थित थे। रानी सत्यभामा ने बातों-ही-बातों में श्रीकृष्ण से पूछा, ‘प्रभु, त्रेतायुग में जब आपने राम के यह रूप में अवतार लिया था, तब सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?’ भगवान कुछ कहते, इससे पहले ही सुदर्शन चक्र ने कहा, ‘प्रभु मैंने आपको बड़े-बड़े युद्धों में विजय दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे अधिक शक्तिशाली भी कोई है?’ इधर गरुड़ से भी नहीं रहा गया। वे बोले, ‘प्रभु क्या संसार में मुझसे अधिक तेज गति से कोई उड़ सकता है?’ भगवान तीनों की बात सुनकर मुस्करा दिए। वे समझ गए कि तीनों को अपने-अपने गुणों का अभिमान हो गया है। इनके अभिमान को नष्ट करना आवश्यक है।
उन्होंने गरुड़ से कहा,‘तुम हनुमान के पास जाओ और कहो कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।’ फिर उन्होंने सुदर्शन चक्र से कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो। ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश नहीं कर पाए। फिर सत्यभामा से कहा कि आप सीता के रूप में तैयार होकर आ जाएं। श्रीकृष्ण ने भगवान राम का रूप धारण कर लिया।
गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंचकर कहा, ‘वानरश्रेष्ठ भगवान राम, माता सीता के साथ आपसे द्वारका में मिलना चाहते हैं। आप मेरे साथ चलिए, मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकार वहां शीघ्र ले जाऊंगा।’ हनुमान ने कहा, ‘आप चलिए, मैं आता हूं।’ गरुड़ ने सोचा यह बूढ़ा वानर पता नहीं कब तक पहुंचेगा, मैं तो द्वारका चलता हूं।
महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो वहां पहले से ही प्रभु के सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया। श्रीराम के रूप में कृष्ण ने हनुमान से कहा,‘पवनपुत्र तुमने महल में कैसे प्रवेश किया? क्या तुम्हें किसी ने रोका नहीं?’
हनुमान ने अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकालकर प्रभु के सामने रख दिया और कहा, ‘प्रभु आपसे मिलने से रोकने के लिए इस चक्र ने प्रयास किया था, इसलिए इसे मैंने अपने मुंह में रख लिया था और आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें।’ इस तरह चक्र का अभिमान भी टूट गया।
अंत में हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से कहा, ‘हे प्रभु! आज आपने किसे इतना सम्मान दे दिया है कि वह माता सीता के स्थान पर आपके साथ सिंहासन पर विराजमान हैं।’
इस तरह रानी सत्यभामा, गरुड़ और सुदर्शन चक्र तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया। वे तीनों समझ गए कि भगवान ने उनका अभिमान दूर करने के लिए ही यह लीला रची थी। वे तीनों भगवान के चरणों में झुक गए।