जय माता दी: मां ब्रह्मचारिणी" का "अपर्णा" नाम क्यों पड़ा

विनोद कुमार झा

जय माता दी: तप और त्याग का अद्भुत उदाहरण है मां ब्रह्मचारिणी

मां दुर्गा के नवशक्ति रूपों में दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। यहां "ब्रह्म" का अर्थ तपस्या से है, और इस स्वरूप की उपासना से भक्तों को तप, त्याग, संयम, सदाचार और वैराग्य की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी, हाथ में जप की माला और कमंडल धारण किए, पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य स्वरूप में विराजमान हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी ने पूर्वजन्म में हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश पर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक तप कर उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। उनके तप के कारण ही उन्हें "ब्रह्मचारिणी" और "अपर्णा" नाम से पुकारा गया। 

देवताओं और ऋषियों ने उनकी तपस्या को अद्वितीय बताते हुए आशीर्वाद दिया कि उनकी तपस्या सफल होगी और भगवान शिव उन्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। मां ब्रह्मचारिणी की यह कथा जीवन के संघर्षों में धैर्य और संकल्प की प्रेरणा देती है। नवरात्रि के दूसरे दिन उनकी उपासना से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

Post a Comment

Previous Post Next Post