पूर्वोत्तर के विकास का नया द्वार

 
गुवाहाटी के लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के नए टर्मिनल का उद्घाटन केवल एक अवसंरचनात्मक परियोजना का लोकार्पण नहीं है, बल्कि यह पूर्वोत्तर भारत की विकास यात्रा में एक निर्णायक पड़ाव है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उद्घाटित यह टर्मिनल असम ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर एक नई पहचान देने की क्षमता रखता है। करीब 5,000 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित यह एकीकृत टर्मिनल प्रतिवर्ष 1.31 करोड़ यात्रियों की आवाजाही के लिए तैयार किया गया है। यह क्षमता अपने आप में बताती है कि भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर योजना बनाई गई है। खास बात यह है कि परियोजना में रखरखाव और मरम्मत सुविधाओं के लिए अलग से 1,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो दीर्घकालिक सोच और टिकाऊ विकास का संकेत देता है।

नए टर्मिनल का डिज़ाइन असम की जैव विविधता और सांस्कृतिक विरासत से प्रेरित है। बांस का व्यापक उपयोग केवल सौंदर्य की दृष्टि से नहीं, बल्कि स्थानीय पहचान और पर्यावरणीय संतुलन के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री द्वारा 2017 में भारतीय वन अधिनियम में किए गए संशोधन का उल्लेख इस बात को रेखांकित करता है कि नीतिगत फैसले जब ज़मीन से जुड़ते हैं, तो वे विकास के ठोस रूप में सामने आते हैं। यह हवाई अड्डा अब केवल एक यातायात केंद्र नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर भारत का प्रमुख विमानन हब बनने की दिशा में अग्रसर है। दक्षिणपूर्व एशिया के लिए प्रवेश द्वार के रूप में गुवाहाटी की भूमिका और मजबूत होगी। इससे पर्यटन, व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों को नई गति मिलेगी। विशेष रूप से काजीरंगा जैसे विश्वप्रसिद्ध पर्यटन स्थलों और देवी कामाख्या जैसे प्रमुख तीर्थ तक पहुंच आसान होने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को सीधा लाभ होगा।

अदाणी समूह द्वारा विकसित और संचालित यह परियोजना सार्वजनिक-निजी साझेदारी के उस मॉडल को भी दर्शाती है, जिसमें सरकार की नीतिगत दिशा और निजी क्षेत्र की दक्षता मिलकर बड़े बदलाव ला सकती है। साथ ही, निर्माण कार्य में लगे श्रमिकों से प्रधानमंत्री का संवाद यह संदेश देता है कि विकास की इस यात्रा में श्रम का सम्मान सर्वोपरि है। गोपीनाथ बारदोलोई के नाम पर बने इस हवाई अड्डे के बाहर उनकी 80 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण अतीत और वर्तमान के सेतु का कार्य करता है। यह याद दिलाता है कि आधुनिकता की दौड़ में विरासत और इतिहास को भुलाया नहीं गया है।

कुल मिलाकर, गुवाहाटी एयरपोर्ट का नया टर्मिनल पूर्वोत्तर के लिए एक नई उड़ान का प्रतीक है। यह परियोजना साबित करती है कि आधुनिक अवसंरचना केवल कंक्रीट और स्टील नहीं होती, बल्कि वह संस्कृति, प्रकृति और संभावनाओं का संगम होती है। यदि इसी दृष्टि और संतुलन के साथ विकास आगे बढ़ता रहा, तो पूर्वोत्तर भारत देश की प्रगति का मजबूत स्तंभ बन सकता है।

- संपादक

Post a Comment

Previous Post Next Post