प्रवास और सुरक्षा: कठोरता से समाधान नहीं, संतुलन से सुरक्षा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ‘थर्ड वर्ल्ड’ देशों से आने वाले प्रवासियों को स्थायी रूप से रोकने, ग्रीन कार्ड की कड़े तरीके से पुनः समीक्षा करने और संदिग्ध विदेशियों को देश से बाहर निकालने की घोषणा ने एक बार फिर अमेरिकी राजनीति में प्रवास और सुरक्षा के पुराने विवाद को तेज कर दिया है। वाशिंगटन डीसी में अफगान नागरिक रहमानुल्लाह लकनवाल द्वारा दो नेशनल गार्ड सैनिकों पर गोलीबारी की घटना ने इस बहस को और उग्र बना दिया है। घटना दुखद है, दर्दनाक है और इसकी कड़ी निंदा होनी चाहिए। लेकिन एक व्यक्ति की हिंसक हरकत को आधार बनाकर पूरे समूह, पूरे समुदाय या पूरे देश की पहचान पर प्रश्नचिह्न लगाना लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। ट्रंप प्रशासन अब उन 19 देशों के नागरिकों की ग्रीन कार्ड समीक्षा को ‘नकारात्मक देश-विशिष्ट कारकों’ के आधार पर करेगा, जिन्हें पहले भी यात्रा प्रतिबंध सूची में रखा गया था। सवाल यह है कि क्या व्यापक प्रतिबंध और सामूहिक संदेह किसी भी सुरक्षा चुनौती का दीर्घकालिक समाधान हो सकते हैं?

सुरक्षा आवश्यक है, लेकिन अति-सामान्यीकृत सुरक्षा नीति अक्सर सुरक्षा से अधिक सामाजिक तनाव पैदा करती है। 2021 में अफगानिस्तान से आए हजारों लोगों में वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने अमेरिकी सेना, सीआईए और अन्य एजेंसियों के साथ काम किया और अपनी जान जोखिम में डालकर सहयोग दिया। ऐसे में एक घटना के आधार पर पूरे वर्ग को ‘खतरनाक’ करार देना, उन मानवीय और रणनीतिक मूल्यों का अपमान है जिन पर अमेरिका गर्व करता है।

ट्रंप द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट में शरणार्थियों के प्रति कठोर टिप्पणियाँ और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, विशेषकर रंगभेद और धार्मिक पहचान से जुड़े सांसदों पर की गई टिप्पणियाँ लोकतांत्रिक विमर्श के स्तर को और नीचे ले जाती हैं। किसी भी राष्ट्र की शक्ति उसकी विविधता, क़ानून व्यवस्था, और मानवीय दायित्वों के संतुलन में निहित होती है केवल कठोरता में नहीं। यह भी सच है कि आव्रजन नीति को लगातार समीक्षा की जरूरत है। सुरक्षा जांच मजबूत होनी चाहिए, जोखिम वाले मामलों की पहचान होनी चाहिए, और पुनर्वास प्रक्रिया में पारदर्शिता भी जरूरी है। लेकिन एक विवेकपूर्ण नीति और एक घबराहट-driven नीति में अंतर होता है। कठोर शब्दों, भय की राजनीति और सामूहिक दंड की प्रवृत्ति से न तो सुरक्षा बढ़ती है और न ही सामाजिक विश्वास।

अमेरिका जैसे देश की पहचान हमेशा एक आव्रजन-समर्थक राष्ट्र के रूप में रही है। वहां आज भी करोड़ों प्रवासी मेहनत, शिक्षा और नवाचार के माध्यम से उस देश को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे में, सुरक्षा और आव्रजन के बीच खिंची यह तीखी रेखा भविष्य में अमेरिका की सामाजिक संरचना और अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव डाल सकती है। अंततः, निष्कर्ष यही है कि सुरक्षा महत्वपूर्ण है लेकिन विवेक, संवेदनशीलता और संतुलन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण हैं। आतंकवाद, हिंसा और अपराध किसी एक देश, धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं हैं। ऐसे में व्यापक निषेध और कठोर विभाजनकारी भाषा के बजाय, अमेरिका को ऐसी नीति की जरूरत है जो अपराधियों को दंडित करे, लेकिन निर्दोषों और सहयोगियों को सम्मान दे; जो सुरक्षा को मजबूत करे, लेकिन मानवता को कमजोर न करे। यही नीति वास्तविक सुरक्षा भी दे सकती है और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी।

Post a Comment

Previous Post Next Post