भारतीय राजनीति का चरित्र अक्सर आरोप–प्रत्यारोप, वैचारिक टकराव और दलगत सीमाओं के भीतर उलझा हुआ दिखाई देता है। ऐसे माहौल में जब किसी विपक्षी दल का वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री की खुलकर प्रशंसा करता है, तो यह न केवल राजनीतिक परिपक्वता का संकेत होता है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को भी नई ऊंचाई देता है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर द्वारा रामनाथ गोयनका व्याख्यान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की सराहना इसी सकारात्मक प्रवृत्ति का ताज़ा उदाहरण है।
थरूर ने प्रधानमंत्री की उस बात को रेखांकित किया जिसमें मोदी ने कहा कि भारत अब दुनिया के लिए सिर्फ एक “उभरता हुआ बाज़ार” नहीं, बल्कि “उभरता हुआ मॉडल” बन रहा है। यह दावा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में भारत ने आर्थिक आघातों, वैश्विक मंदी, महामारी और भू-राजनीतिक अस्थिरताओं के बावजूद एक मजबूत, लचीली और तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन किया है। किसी भी राष्ट्र के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ‘मॉडल’ के रूप में स्वीकार किया जाना सिर्फ़ निवेश या विकास दर का आंकड़ा नहीं, बल्कि शासन क्षमता, नीतिगत निरंतरता और सामाजिक स्थिरता का प्रमाण भी होता है।
प्रधानमंत्री मोदी के उस भावनात्मक पहलू को भी थरूर ने विशेष रूप से सराहा, जिसमें उन्होंने कहा कि उन पर भले “चुनावी मूड” में रहने का आरोप लगाया जाता हो, लेकिन वे वास्तव में “लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए भावनात्मक मूड” में रहते हैं। यह कथन शासन की उस मानवीय संवेदना को उजागर करता है, जिसे किसी भी लोकतंत्र में सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए। जनता का नेता वही है जो नीतियों को आंकड़ों से नहीं, बल्कि लोगों की चिंताओं से जोड़कर देखता है।
शशि थरूर का यह रुख केवल व्यक्तिगत प्रशंसा नहीं, बल्कि राजनीतिक विमर्श को स्वस्थ बनाने की दिशा में एक कदम है। यह दिखाता है कि विचारधारा अलग हो सकती है, लेकिन राष्ट्रहित और अच्छे कामों की सराहना पर किसी प्रकार की राजनीतिक दीवार नहीं खड़ी होनी चाहिए। लोकतंत्र की खूबसूरती इसी बात में है कि विरोधी भी गुणों को स्वीकार कर सकें और सत्ता पक्ष भी आलोचनाओं को लोकतांत्रिक मर्यादा के भीतर स्वागत योग्य समझे। यह घटना भारतीय राजनीति में एक संतुलित, सभ्य और संवाद आधारित संस्कृति की संभावना को मजबूत करती है। आज जब राजनीति अक्सर ध्रुवीकरण और कटुता के घेरे में फंस जाती है, ऐसे में नेताओं की यह परिपक्वता आज की लोकतांत्रिक जरूरत भी है और भविष्य की दिशा भी। कुल मिलाकर, थरूर की यह टिप्पणी बताती है कि भारतीय राजनीति में सहमति और प्रशंसा की जगह अभी भी बाकी है और उसे बढ़ाया जाना चाहिए।
- विनोद कुमार झा
