अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा का आरोहण केवल एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि समूचे भारतीय मानस में गूंजता आत्मबोध है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे “युगांतकारी क्षण” कहा और सच भी यही है कि यह कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की बहुप्रतीक्षित सांस्कृतिक पूर्णता का क्षण है। सदियों की प्रतीक्षा, संघर्ष, पीड़ा और आस्था का यह मिलनबिंदु उस ऐतिहासिक यात्रा का पड़ाव है जिसने समाज की चेतना को बार-बार परखा और अंततः उसे पुनः संगठित किया।
प्रधानमंत्री का यह कहना कि “सदियों के घाव और दर्द आज भर रहे हैं” इतिहास की उस गाथा की ओर संकेत है जिसने अनेक पीढ़ियों को प्रतीक्षा और श्रद्धा के सहारे जीवित रखा। ध्वजारोहण के पल को भारत की सांस्कृतिक चेतना के “उत्कर्ष-बिंदु” के रूप में वर्णित करना इस तथ्य का स्मरण कराता है कि राम भारतीय जीवन के किसी एक समुदाय या क्षेत्र की सीमा में बंधे देव नहीं वे भारतीयता की सबसे व्यापक, सबसे समावेशी और सबसे जीवंत पहचान हैं।
यह क्षण केवल मंदिर निर्माण का उत्सव नहीं था; यह उस विचार का पुनर्जागरण भी था कि सामाजिक शक्ति, सांस्कृतिक आत्मविश्वास और राष्ट्रीय चेतना का आधार अपनी जड़ों में, अपनी परंपराओं में और अपने मूल्यों में ही निहित होता है। प्रधानमंत्री का यह संदेश कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है, केवल आर्थिक लक्ष्य नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक आत्मनिर्माण का भी आह्वान है। उनकी इस बात में गूंज है कि विकास केवल नीतियों का नहीं, बल्कि मानसिकता के परिवर्तन का भी प्रश्न है। “गुलामी की मानसिकता” से मुक्ति का आह्वान इस बात की याद दिलाता है कि आधुनिक भारत का आत्मविश्वास तभी पूरा होगा जब वह अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को बिना संकोच स्वीकार करेगा।
धर्मध्वजा के भगवा रंग, ‘ओम’ के अंकन और सूर्यवंश की परंपरा का प्रतीक यह ध्वज केवल आस्था का चिह्न नहीं, बल्कि एक मूल्य-व्यवस्था का प्रतीक है। प्रधानमंत्री द्वारा इसे “संघर्ष से सृजन की गाथा” बताना इस यात्रा की मूल प्रवृत्ति को अभिव्यक्त करता है कि इतिहास की राख से ही नए भविष्य की नींव रखी जाती है।
राम मंदिर परिसर में निर्मित सप्त मंदिरों का उल्लेख कर प्रधानमंत्री ने इस संकल्पना को और व्यापक किया कि राम केवल धर्म नहीं, बल्कि सामाजिक सद्भाव, जातीय-अंतरजातीय मित्रता, आदिवासी परंपराओं और लोक संस्कृति को जोड़ने वाली धुरी हैं। निषाद राज से शबरी तक, वशिष्ठ-विष्वामित्र से अगस्त्य तक राम की यात्रा भारतीय समाज के हर वर्ग, हर परंपरा और हर तत्व को एक सूत्र में पिरोती है। यह संदेश आज के भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मजबूत राष्ट्र वही है जो अपनी विविधता को सम्मान देता है और उसे शक्ति में बदलता है।
इस ध्वजारोहण का सांस्कृतिक अर्थ है भारत अपने मूल्यों को पुनः केन्द्र में ला रहा है। राजनीतिक अर्थ है राष्ट्रीय संकल्प और भविष्य निर्माण के प्रति आह्वान। और आध्यात्मिक अर्थ है एक ऐसी चेतना का उदय जो विभाजन नहीं, एकता को प्रेरणा देती है। राम मंदिर का यह क्षण केवल एक ऐतिहासिक अध्याय का अंत नहीं, बल्कि नए अध्याय का आरंभ भी है। यह अध्याय तब सार्थक होगा जब देश अपने आदर्शों को व्यवहार में बदलेगा जब समाज में समानता, करुणा, सद्भाव और कर्तव्यबोध सशक्त होंगे। राम की मर्यादा केवल मंदिरों में नहीं, आचरण में दिखाई देगी तभी यह युगांतकारी क्षण वास्तव में भविष्य का पथ प्रदर्शक बनेगा। राम की राह समाज को जोड़ती है विकास और विश्वास को साथ लेकर चलती है। यही वह संदेश है, जिसे अयोध्या का ध्वज आने वाली पीढ़ियों तक फहराता रहेगा।

