विनोद कुमार झा
कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथि को मनाई जाने वाली छोटी दीपावली या नरक चतुर्दशी का अपना विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह दिन दीपों के पर्व दीपावली की पूर्व संध्या के रूप में पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन घर-आंगन की सफाई पूरी हो चुकी होती है, मिट्टी के दीयों में तेल डाला जाता है और संध्या होते ही हर द्वार पर एक विशेष दीप प्रज्वलित किया जाता है यम दीप।
किंवदंती के अनुसार, इस दिन यमराज के नाम से दीपदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन यम दीप जलाता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। कहा जाता है कि दीपदान से यमदेव प्रसन्न होकर जीवन में दीर्घायु और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं।
यम दीप का विधान: छोटी दीपावली की संध्या को सूर्यास्त के बाद घर के दक्षिण दिशा में या मुख्य द्वार के बाहर एक दीप जलाया जाता है। इस दीप में सरसों का तेल और रुई की बाती का प्रयोग किया जाता है। दीप रखते समय यह प्रार्थना की जाती है —
"मृत्युनां दण्डपालाय कृतान्ताय महात्मने।
दीपं ददाम्यहं भक्त्या मृत्युं मे पाहर द्वारतः॥"
अर्थ हे यमराज! मैं श्रद्धा से यह दीप अर्पित करता हूँ, कृपया मेरे द्वार से मृत्यु का भय दूर रखें।
ग्रामीण अंचलों में आज भी इस परंपरा की एक अलग ही छटा होती है। गोधूलि बेला में बच्चे हाथों में दीये लिए गलियों में “यम दीप दान” के गीत गाते घूमते हैं। महिलाएँ घर के कोने-कोने में दीपक सजाती हैं, मानो प्रकाश से हर अंधकार मिटाने का संकल्प ले रही हों।
छोटी दीपावली का यह दिन सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक भी है। यह हमें सिखाता है कि दीप जलाना केवल अंधकार मिटाने का कार्य नहीं, बल्कि मन के भीतर छिपे भय, क्रोध और नकारात्मकता को भी दूर करने का एक संकल्प है।
यम दीप की यह परंपरा यह संदेश देती है कि मृत्यु भी जीवन का एक सत्य है, लेकिन जो प्रकाशमय कर्म करता है, उसे अंधकार कभी छू नहीं सकता। दीपावली का यह प्रारंभिक दिन इसलिए “छोटी” नहीं, बल्कि महान दीपावली का पहला प्रकाश है जो यम के भय पर धर्म और प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
“प्रकाश से प्रार्थना है , अंधकार से मुक्ति मिले, यम दीप से जीवन में दीर्घायु की कृपा खिलें।”
