दशहरा हमें भगवान श्रीराम के आदर्शों की याद दिलाता है सत्य, मर्यादा, कर्तव्य और त्याग के प्रतीक श्रीराम। रावण का दहन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रतीक है कि हमें हर साल अपने भीतर छिपे अहंकार, लालच, क्रोध, ईर्ष्या और असत्य का भी दहन करना चाहिए। रावण का पुतला जलाना आसान है,पर अपने भीतर के रावण को हराना कठिन। सच्चा विजयदशमी वही है जब व्यक्ति स्वयं को जीत ले।
आज आवश्यकता है कि समाज गांधी और शास्त्री के आदर्शों के साथ राम के पथ पर भी चले जहाँ सत्य वचन, सादगी भरा जीवन और दूसरों के प्रति संवेदना हो।यह समय है आत्ममंथन का कि क्या हमने रावण को जलाकर भी अपने अंदर की बुराई को मिटाया है या नहीं। हम भले ही हर वर्ष रावण का पुतला जलाएं, पर जब तक हमारे समाज में घृणा, हिंसा, भ्रष्टाचार, झूठ और स्वार्थ जलकर राख नहीं होते,तब तक असली दशहरा अधूरा रहेगा। इस पावन अवसर पर आइए संकल्प लें कि हम गांधीजी के सत्य को, शास्त्रीजी की सादगी को और श्रीराम के मर्यादाओं को अपने जीवन में अपनाएंगे। इसी में निहित है असत्य पर सत्य की, बुराई पर अच्छाई की और अहंकार पर विनम्रता की सच्ची विजय। आज का दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मजागरण का अवसर है। आइए, बाहरी रावण के साथ-साथ अपने भीतर की बुराई का भी दहन करें तभी सच्चे अर्थों में दशहरा मनाया जाएगा।