रावण का नहीं, भीतर की बुराई का दहन जरूरी है

आज देश दो महापुरुषों राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भारतरत्न लाल बहादुर शास्त्री  की जयंती मना रहा है। इसी के साथ दशहरा पर्व भी आज ही के दिन मनाया जा रहा है। यह अद्भुत संयोग है कि आज का दिन हमें असत्य पर सत्य की विजय, अहिंसा पर मानवता की जीत और ईमानदारी पर विश्वास का संदेश एक साथ देता है। गांधीजी ने दुनिया को यह सिखाया कि सत्य और अहिंसा सबसे बड़ी शक्तियां हैं। उन्होंने कहा था  “बुराई से नफरत करो, पर बुरे व्यक्ति से नहीं।” वहीं, शास्त्रीजी ने अपने सादे जीवन और महान विचारों से यह दिखाया कि देश की सेवा का अर्थ सत्ता नहीं, बल्कि समर्पण है। उनका दिया नारा “जय जवान, जय किसान” आज भी हर भारतीय के मन में गूंजता है।

दशहरा हमें भगवान श्रीराम के आदर्शों की याद दिलाता है  सत्य, मर्यादा, कर्तव्य और त्याग के प्रतीक श्रीराम। रावण का दहन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक प्रतीक है कि हमें हर साल अपने भीतर छिपे अहंकार, लालच, क्रोध, ईर्ष्या और असत्य का भी दहन करना चाहिए। रावण का पुतला जलाना आसान है,पर अपने भीतर के रावण को हराना कठिन। सच्चा विजयदशमी वही है जब व्यक्ति स्वयं को जीत ले।

आज आवश्यकता है कि समाज गांधी और शास्त्री के आदर्शों के साथ राम के पथ पर भी चले जहाँ सत्य वचन, सादगी भरा जीवन और दूसरों के प्रति संवेदना हो।यह समय है आत्ममंथन का कि क्या हमने रावण को जलाकर भी अपने अंदर की बुराई को मिटाया है या नहीं। हम भले ही हर वर्ष रावण का पुतला जलाएं, पर जब तक हमारे समाज में घृणा, हिंसा, भ्रष्टाचार, झूठ और स्वार्थ जलकर राख नहीं होते,तब तक असली दशहरा अधूरा रहेगा। इस पावन अवसर पर आइए संकल्प लें कि हम गांधीजी के सत्य को, शास्त्रीजी की सादगी को और श्रीराम के मर्यादाओं को अपने जीवन में अपनाएंगे। इसी में निहित है  असत्य पर सत्य की, बुराई पर अच्छाई की और अहंकार पर विनम्रता की सच्ची विजय। आज का दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मजागरण का अवसर है। आइए, बाहरी रावण के साथ-साथ अपने भीतर की बुराई का भी दहन करें तभी सच्चे अर्थों में दशहरा मनाया जाएगा।

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