दिपावली विशेष : चमकते बाजार में दमकते चेहरे

विनोद कुमार झा 

भारत त्योहारों का देश है  यहाँ हर मौसम अपने साथ कोई न कोई उत्सव लेकर आता है। और जब बात धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज की होती है, तब तो मानो पूरा देश जगमगा उठता है। ये कुछ दिन सिर्फ तिथियाँ नहीं होतीं, बल्कि भारतीय जीवन के उस रंगीन अध्याय का हिस्सा होती हैं, जहाँ परंपरा, संस्कृति और संवेदना एक साथ झिलमिलाती हैं।

दीपावली पर बाजारों की रौनक देखते ही बनती है। दुकानों पर नई वस्तुओं की भरमार, मिठाइयों की दुकानों पर लंबी कतारें और इलेक्ट्रॉनिक बाज़ारों में ऑफ़रों की बौछार हर तरफ एक अलग ही उमंग है। घरों की साफ-सफाई से लेकर सजावट तक, हर व्यक्ति किसी न किसी तैयारी में लगा है। ऐसा लगता है मानो पूरा समाज एक साथ किसी अदृश्य ऊर्जा से भर उठा हो।

ग्रामीण इलाकों में भी यह जोश किसी से कम नहीं। गाँव की चौपालों पर दीप सजाए जाते हैं, मंदिरों में पूजा की तैयारियाँ होती हैं, और बच्चे आतिशबाज़ियों की बातें करते नज़र आते हैं। गाँव की मिट्टी में बसी वह सादगी और शहर की चकाचौंध  दोनों मिलकर भारत की असली तस्वीर पेश करते हैं।

हर वर्ग में समान उमंग : इन दिनों अमीर और गरीब का अंतर लगभग मिट जाता है। जो जैसे भी है, अपनी क्षमता के अनुसार त्योहार मनाता है। किसी के घर में लाखों की सजावट होती है, तो किसी के आँगन में एक दीया ही पर्याप्त होता है खुशियों की लौ जलाने के लिए। लेकिन दोनों के दिलों में भाव एक ही होता है  अपने प्रियजनों के साथ कुछ पल खुशी के बाँटने का। यही त्योहारों का जादू है, जो हर वर्ग, हर आयु और हर क्षेत्र को एक सूत्र में बाँध देता है।

भीड़भाड़ में भी अपनापन : त्योहारों के इन दिनों में परिवहन व्यवस्था पर भीड़ अपने चरम पर होती है। रेल, बसें, मेट्रो और निजी वाहन  सभी में लोगों का सैलाब। पर किसी को शिकायत नहीं, किसी को गुस्सा नहीं। हर कोई बस यही सोचता है कि किसी तरह अपने गाँव, अपने परिवार, अपने लोगों तक पहुँच जाए। यह दृश्य दर्शाता है कि आज की व्यस्त जीवनशैली के बावजूद, परिवार और रिश्ते अब भी भारतीय समाज की जड़ में गहराई से बसे हैं।

त्योहारों का बदलता स्वरूप : बदलते समय के साथ त्योहारों के रूप में भी बदलाव आया है। पहले जहाँ दीप जलाने का अर्थ अंधकार पर प्रकाश की विजय होता था, वहीं आज यह सजावट, फोटो और सोशल मीडिया के प्रदर्शन का हिस्सा बन गया है। लेकिन इस परिवर्तन के बावजूद, त्योहारों की आत्मा आज भी जिंदा है  वह आत्मा जो एकता, प्रेम और करुणा से जन्म लेती है। हमें ध्यान रखना होगा कि चमक-दमक और उपभोक्तावाद के बीच त्योहारों की आत्मा कहीं खो न जाए। असली दीपावली तब होती है जब हम अपने भीतर के अंधकार को मिटाकर अपने मन को रोशन करें।

हर त्योहार अपने साथ एक संदेश लाता है  दान, स्नेह, सहयोग और सद्भाव का। दीपावली का दीप हमें सिखाता है कि जैसे एक दीया अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही एक नेक कार्य समाज में उजाला फैला सकता है। गोवर्धन पूजा हमें पर्यावरण और पशुपालन के महत्व की याद दिलाती है। भाई दूज रिश्तों की मिठास और जिम्मेदारी का प्रतीक है। यदि हम इन त्योहारों के पीछे छिपे मूल्यों को समझ लें, तो हमारी ज़िंदगी भी एक निरंतर उत्सव बन सकती है।

त्योहारों के बीच ज़िंदगी चलती रहती है, लेकिन इन त्योहारों के कारण ही ज़िंदगी में अर्थ आता है। ये हमें सिखाते हैं कि जीवन केवल दौड़ नहीं, बल्कि ठहरकर मुस्कुराने, साझा करने और महसूस करने का भी नाम है। दीप जलाते समय जब हम अपने आसपास के लोगों की आँखों में चमक देखते हैं, तो समझ आता है कि असली सुख वही है जो दूसरों की मुस्कान से जुड़ा हो।

आख़िरकार, यही त्योहार हमें बार-बार याद दिलाते हैं कि चाहे दुनिया कितनी भी तेज़ क्यों न भागे, इंसानियत, प्रेम और अपनापन ही जीवन की सच्ची रोशनी हैं। त्योहारों के बीच ज़िंदगी  यही तो भारत की असली पहचान, असली ताकत और असली खूबसूरती है। ✨

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