करवाचौथ व्रत कथा और पूजन विधि

विनोद कुमार झा

करवाचौथ का व्रत, हिन्दू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। यह व्रत, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएँ, अपने पति की दीर्घायु, सुख, समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। इस व्रत को करक चतुर्थी भी कहा जाता है।

सुबह जल्दी उठकर, स्नान करें और भगवान गणेश तथा माता पार्वती का ध्यान करें। फिर संकल्प लें कि आज मैं करक चतुर्थी का व्रत अपने पति की लंबी आयु के लिए करूंगी। सूर्योदय के बाद व्रत प्रारंभ होता है। महिलाएँ पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। वे भोजन और जल ग्रहण नहीं करतीं।

दिनभर भगवान शिव, माता पार्वती, गणेशजी और कार्तिकेय की पूजा अर्चना की जाती है। संध्या समय, मिट्टी या तांबे के करवे में जल भरें और उसके ऊपर दीपक रखें। लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएँ। उस पर गौरी माता, शिवजी, गणेशजी, कार्तिकेय और करवा माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

हल्दी, चावल, सिंदूर, रोली, चूड़ी, बिंदी, कंगन और सुहाग सामग्री चढ़ाएँ। सुहागिन महिलाएँ एक-दूसरे को सुहाग की सामग्री देती हैं और कहती हैं, सदा सुहागिन रहो। पूजा के बाद करवाचौथ की कथा सुनी या पढ़ी जाती है। फिर आरती की जाती है।

जब चाँद निकल आता है, तो महिलाएँ छलनी से चाँद को देखती हैं। वे अर्घ्य देती हैं और फिर अपने पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं।

आइए जानते हैं करवाचौथ की पौराणिक कथा।

बहुत समय पहले, एक ब्राह्मण परिवार में सात भाइयों की एक बहन थी। उसका नाम वीरवती था। वह बहुत सुंदर और सुशील थी। शादी के बाद, पहली करवाचौथ पर वह अपने मायके आई। उस दिन उसने अपने पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखा।

पूरे दिन भूखी प्यासी बैठी रही। जब चाँद देर तक नहीं निकला, तो वह बहुत कमजोर हो गई। अपने भाइयों से उसकी यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने एक पेड़ के नीचे दीपक जलाया और छलनी के पीछे रख दिया। फिर बहन से कहा, देखो बहन, चाँद निकल आया है। अर्घ्य दो और भोजन कर लो।

वीरवती ने भाइयों की बात मानी। उसने चाँद समझकर अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। परंतु भाइयों के इस छल के कारण भगवान शिव और माता पार्वती क्रोधित हो गए। उसी रात वीरवती के पति की मृत्यु हो गई।

वीरवती दुख से व्याकुल हो गई। उसने माता पार्वती की सच्चे मन से आराधना की। उसने करवा चौथ का व्रत दोबारा सच्चे मन से किया। माता पार्वती उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उसके सामने प्रकट हुईं। उन्होंने कहा, बेटी, तुम्हारे भाइयों ने छल किया था। इसलिए तुम्हें यह दुख सहना पड़ा। लेकिन तुम्हारी श्रद्धा और सच्चे प्रेम ने तुम्हारे पति को पुनः जीवित कर दिया है।

तब से करवाचौथ व्रत का यह नियम बन गया कि जो स्त्री श्रद्धा और विश्वास के साथ यह व्रत रखती है, उसके पति की आयु में वृद्धि होती है। उसका वैवाहिक जीवन सुखी रहता है।

व्रत के दिन संयम, श्रद्धा और विश्वास आवश्यक है। कथा सुनना या पढ़ना अनिवार्य है। चंद्रमा को अर्घ्य देते समय, पति का ध्यान अवश्य करें। दिनभर सोना, झगड़ना या अपशब्द बोलना वर्जित है।

करवाचौथ का व्रत केवल पति की लंबी आयु के लिए नहीं होता। यह पति और पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। यह त्याग, आस्था और प्रेम का संगम है। करवा चौथ का यह पावन पर्व, आपके जीवन में अटूट प्रेम, असीम सुख और अखंड सौभाग्य लेकर आए।


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