अहोई अष्टमी व्रत कथा और पूजन विधि

विनोद कुमार झा

अहोई अष्टमी का व्रत हर वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु, सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। इस दिन माताएँ भगवान शिव, देवी पार्वती और अहोई माता की पूजा करती हैं। व्रत का पालन संध्या समय किया जाता है और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला जाता है।

व्रत रखने वाली महिलाएँ प्रातः स्नान कर संकल्प लेती हैं। मैं अहोई अष्टमी का व्रत अपने पुत्र-पुत्रियों की दीर्घायु और कल्याण के लिए रख रही हूँ। पूरे दिन निर्जला उपवास रखा जाता है। कुछ महिलाएँ फलाहार भी लेती हैं। दीवार या पूजा स्थल पर अहोई माता की चित्रकला बनाई जाती है। चित्र में सिंह या बिल्ली, सात बालक और एक बालिका का चित्र अवश्य बनाया जाता है।

शाम को जब तारे निकल आएँ, तब अहोई माता की पूजा की जाती है। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाया जाता है। उस पर अहोई माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है। पास में जल से भरा कलश, दीपक, धूप, रोली, चावल, दूध, फल, मिठाई और गेहूँ रखा जाता है। सबसे पहले गणेश जी का ध्यान किया जाता है। फिर अहोई माता का आह्वान किया जाता है। माता के चित्र पर जल, अक्षत, रोली और फूल चढ़ाए जाते हैं। दीपक जलाया जाता है और धूप दिखाई जाती है। पूजा के समय अहोई माता की कथा सुनी या पढ़ी जाती है।

जब रात में तारे दिखाई दें, तो जल से अर्घ्य दिया जाता है। कुछ स्थानों पर चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा भी है। इसके बाद पति का आशीर्वाद लेकर व्रत का पारण किया जाता है। 

आइए जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत कथा

बहुत समय पहले एक साहूकार था। उसके सात पुत्र और सात बहुएँ थीं। उसकी छोटी बहू बहुत सरल और धार्मिक स्वभाव की थी। कार्तिक मास की अष्टमी को सभी बहुएँ जंगल में मिट्टी लेने गईं ताकि दीवार पर अहोई माता का चित्र बना सकें। जब छोटी बहू मिट्टी खोद रही थी, तभी उसकी खुरपी से एक साही या बिल्ली का बच्चा मर गया। वह बहुत दुखी हो गई। उसने ईश्वर से बार-बार क्षमा माँगी और खाली हाथ घर लौट आई।

कुछ समय बाद उसके सातों पुत्र एक-एक कर मर गए। वह स्त्री अत्यंत दुखी होकर दिन-रात रोने लगी। एक दिन वह तीर्थ यात्रा पर गई और वहाँ एक साध्वी स्त्री से मिली। साध्वी ने कहा, तुमने अंजाने में किसी जीव को मार दिया है। उसी के कारण तुम्हारे बच्चों की मृत्यु हुई है। अब तुम कार्तिक कृष्ण अष्टमी को अहोई माता का व्रत करो और सच्चे मन से क्षमा माँगो।

उसने वैसा ही किया। उपवास रखा, माता की पूजा की, कथा सुनी और मन से प्रार्थना की। अहोई माता उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उसे एक पुत्र का वरदान दिया। समय आने पर उसे एक सुदृढ़ और दीर्घायु पुत्र प्राप्त हुआ। उस दिन से यह व्रत हर साल किया जाने लगा।

रात में तारे को अर्घ्य देकर या चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोला जाता है। प्रसाद में खीर, पूड़ी, हलवा और फल चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्यों को प्रसाद बाँटा जाता है।

हे अहोई माता, जैसे आपने साहूकार की बहू पर कृपा की, वैसे ही मेरे बच्चों की आयु, स्वास्थ्य और सुख में वृद्धि करें। माता, हमारे घर में सदा आपकी कृपा बनी रहे।

इस दिन किसी की निंदा, झूठ या छल-कपट नहीं करना चाहिए। व्रत रखने वाली स्त्री को पूरे दिन संयम और शुद्धता रखनी चाहिए। कथा सुनते समय मन को पूरी तरह एकाग्र करना चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मण या गरीब बच्चों को भोजन या दान देना शुभ माना जाता है।

जय अहोई माता 



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