शक्ति, भक्ति और सत्य की विजय का प्रतीक है विजयादशमी

विनोद कुमार झा

नवरात्रि के नौ दिनों तक चली मां दुर्गा की आराधना का अंतिम दिवस  विजयादशमी  शक्ति, श्रद्धा और सत्य की विजय का प्रतीक बनकर हमारे जीवन में प्रेरणा का संचार करता है। इस दिन मां दुर्गा के नवम रूप सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जिनसे भक्तजन अष्टसिद्धि और नव निधि की प्राप्ति की कामना करते हैं। देश भर में यह दिन धार्मिक आस्था और सामाजिक उत्साह का अद्भुत संगम बन जाता है। कहीं कन्या पूजन से नारी स्वरूप की वंदना होती है, तो कहीं रावण दहन के साथ बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश दिया जाता है।

मां सिद्धिदात्री नवदुर्गा का नवम रूप हैं, जो सभी सिद्धियों की दात्री मानी जाती हैं। पुराणों के अनुसार, इन्हीं की कृपा से भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। मां सिद्धिदात्री की उपासना से मनुष्य को अद्भुत शक्ति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सिद्धगन्धर्वयक्षाध्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यया सिध्दिदा देवी ग्रहमुक्ति प्रदायिनी॥

मां सिद्धिदात्री की आराधना देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, असुर और मानव सभी करते हैं। वे सिद्धियों की दात्री और सभी दुखों से मुक्ति देने वाली हैं। उनकी कृपा से भक्त जीवन में सभी बंधनों से मुक्त होकर सफलता, शांति और समृद्धि का अनुभव करता है।

कन्या पूजन विजयादशमी के दिन देश भर में घर-घर कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है। छोटी-छोटी बालिकाओं में मां दुर्गा के नौ रूपों का दर्शन किया जाता है। उन्हें ससम्मान आसन देकर भोजन कराया जाता है, आरती उतारी जाती है, और चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया जाता है। यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि नारी शक्ति के प्रति भारतीय संस्कृति के गहरे सम्मान का प्रतीक है। आज के समाज में जब नारी सुरक्षा, समानता और स्वावलंबन की बातें की जा रही हैं, तो यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि नारी केवल पूजनीय नहीं, बल्कि जीवन की सृजन शक्ति है।

रावण दहन विजयादशमी के दिन शाम को देश के कोने-कोने में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं।यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि अहंकार, क्रोध, लोभ और अधर्म जैसे आंतरिक रावणों को जलाने का प्रतीकात्मक संदेश है। आज जब समाज में असत्य, भ्रष्टाचार और हिंसा जैसी प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं, तब रावण दहन हमें आत्ममंथन करने और अपने भीतर की बुराइयों को समाप्त करने की प्रेरणा देता है।

नीलकंठ दर्शन : उत्तर भारत के कई भागों में विजयादशमी के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन से जीवन में सौभाग्य और सफलता का आगमन होता है। यह परंपरा भी इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति और आध्यात्म एक-दूसरे के पूरक हैं। विजयादशमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन का एक दर्शन है। यह सिखाती है कि बुराई कितनी भी बलशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म की जीत निश्चित होती है। यह पर्व हमें अपने जीवन में सत्य, सदाचार, नारी सम्मान और सामाजिक समरसता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।आज जब आधुनिक जीवन की दौड़ में नैतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है, तो विजयादशमी का यह संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है ,“असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अहंकार पर विनम्रता की विजय ही सच्ची विजयादशमी है।” मां सिद्धिदात्री की कृपा से हम सबके जीवन में शांति, समृद्धि और सद्बुद्धि का प्रकाश फैले  यही कामना है।

जय माता दी। 

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