देवी के नौ रूप और मां का एक रूप , दोनों ही जीवनदायिनी
विनोद कुमार झा
नवरात्रि वह पावन पर्व है जब सम्पूर्ण भारत भक्ति, शक्ति और श्रद्धा के रंगों में रंगा है। यह नौ दिनों का उत्सव केवल देवी पूजा का अवसर नहीं, बल्कि जीवन में ‘मां’ के वास्तविक स्वरूप को समझने, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और समाज में मातृत्व के आदर्श को स्थापित करने का भी अवसर है। इस पर्व में दुर्गा सप्तशती का पाठ, कन्या पूजन और मां के नौ रूपों की उपासना के साथ-साथ एक और सबसे महत्वपूर्ण पूजा है जन्म देने वाली अपनी मां-बाप की पूजा, जो हमारे जीवन के मूल आधार हैं। मां दुर्गा के नौ स्वरूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री केवल देवी के रूप नहीं हैं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में ऊर्जा, साहस, त्याग, तप, और करुणा के प्रतीक हैं।
शैलपुत्री हमें स्थिरता और विश्वास सिखाती हैं। ब्रह्मचारिणी तप और संयम का संदेश देती हैं। चंद्रघंटा शांति और संतुलन की प्रतीक हैं। कुष्मांडा सृष्टि की सृजनकर्ता हैं। स्कंदमाता मातृत्व का सर्वोच्च रूप हैं। कात्यायनी साहस और न्याय की प्रतिमूर्ति हैं। कालरात्रि भय और नकारात्मकता को नष्ट करती हैं।महागौरी पवित्रता और क्षमा की देवी हैं। सिद्धिदात्री ज्ञान, शक्ति और मुक्ति प्रदान करती हैं। इन सभी रूपों की पूजा जनकल्याण के लिए की जाती है, क्योंकि देवी केवल एक परिवार, एक व्यक्ति या एक समाज की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि की जननी हैं। इसीलिए उन्हें “जगतजननी” और “जगतकल्याणी माता” कहा गया है।
जहां दुर्गा माता पूरे जगत की कल्याणकारी शक्ति हैं, वहीं जन्म देने वाली मां अपने बच्चों के लिए वह ममतामई देवी है जो बिना किसी स्वार्थ के केवल अपने बच्चों का कल्याण करती है। वह अपने बच्चे के पहले गुरु होती है। उसकी गोद पहला विद्यालय होती है। उसके संस्कार बच्चे के जीवन की दिशा तय करते हैं। उसकी दुआएं हर संकट से ढाल बनकर रक्षा करती हैं इसीलिए, नवरात्रि जैसे पावन अवसर पर जब हम जगतजननी मां दुर्गा की पूजा करते हैं, तो साथ ही अपनी जननी मां की सेवा, आदर और पूजा भी करनी चाहिए। यही सच्चे अर्थों में “मां की आराधना” कहलाती है।
नवरात्रि का सामाजिक संदेश अत्यंत गहरा है। यह पर्व समाज में नारी सम्मान, मातृत्व और स्त्री शक्ति के महत्व को उजागर करता है। कन्या पूजन इसी विचार को मूर्त रूप देता है क्योंकि छोटी कन्या में ही मां दुर्गा का स्वरूप माना गया है। यह हमें सिखाता है कि समाज तभी समृद्ध हो सकता है जब उसमें स्त्रियों का सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित हो। शिक्षा केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि संस्कारों और आदर्शों से मिलती है। नवरात्रि बच्चों और युवाओं के लिए यह सिखाने का अवसर है कि शक्ति का अर्थ विनाश नहीं, सृजन है। भक्ति का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि कर्म और करुणा है। सच्चा भक्त वही है जो मां की तरह सभी का भला सोचता है। कन्या पूजन के माध्यम से बच्चों को यह सिखाया जाता है कि स्त्री किसी भी रूप में पूजनीय है चाहे वह देवी हो या हमारी अपनी मां।
धार्मिक दृष्टि से नवरात्रि आत्मशुद्धि, भक्ति और साधना का पर्व है। दुर्गा सप्तशती का पाठ केवल मंत्रोच्चारण नहीं, बल्कि मन की नकारात्मकताओं को नष्ट करने की प्रक्रिया है। आध्यात्मिक रूप से यह पर्व हमें याद दिलाता है कि सच्ची शक्ति हमारे भीतर है वह मां शक्ति के आशीर्वाद से ही जाग्रत होती है।
मां-बाप की पूजा नवरात्रि की सच्ची साधना : वेदों और पुराणों में कहा गया है “मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः” अर्थात् माता-पिता देवताओं के समान पूजनीय हैं। यदि हम देवी की पूजा करें, लेकिन अपने माता-पिता की सेवा, आज्ञा और सम्मान न करें, तो वह पूजा अधूरी मानी जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के साथ अपने माता-पिता को प्रणाम करना, उनके चरण स्पर्श करना, उन्हें भोजन कराना और उनका आशीर्वाद लेना ही पूर्ण साधना कहलाती है। मां केवल मंदिरों की मूर्ति नहीं, बल्कि हमारे घर में, हमारे जीवन में विद्यमान है। जगतजननी मां दुर्गा सबका कल्याण करती हैं, और ममतामई मां अपने बच्चों का। दोनों ही स्वरूप पूजनीय हैं।इसलिए नवरात्रि पर जब दीपक जलाएं, तो एक दीप जगतजननी मां दुर्गा के लिए और एक दीप अपनी जननी मां-बाप के चरणों में भी अवश्य जलाएं। यही सच्चे अर्थों में मां की भक्ति और मानवता की सेवा है।