मृतसंजीवनी स्तोत्र : जहाँ मृत्यु भी हार मान लेती है

विनोद कुमार झा

सनातन धर्म के अद्भुत ग्रंथों में यह स्तोत्र एक अमूल्य रत्न है, जिसे स्वयं ब्रह्मा-पुत्र महर्षि वशिष्ठ ने रचा और भगवान शिव को समर्पित किया। 30 दिव्य श्लोकों का यह स्तोत्र केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि महादेव की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन से भय, रोग, संकट और अकाल मृत्यु सदा के लिए दूर हो जाते हैं। इतना ही नहीं, यह स्तोत्र शिव के उन अदृश्य, रहस्यमयी और अलौकिक स्वरूपों का दर्शन कराता है, जो भक्त को दिव्य शक्ति से ओत-प्रोत कर देते हैं।
कहा गया है, जो इसका पाठ करता है, वह मृत्यु को जीत लेता है। आयु, आरोग्य और सिद्धियों का स्वामी बन जाता है। इतना ही नहीं, यह स्तोत्र महादेव के उन रहस्यमयी स्वरूपों का परिचय कराता है, जिनका उल्लेख शायद ही कहीं और मिलता हो।

तो आइए, गोपनीय और परम पवित्र मृतसंजीवनी स्तोत्र का रहस्योद्घाटन करें और इसके श्लोकों के दिव्य अर्थ को समझें। ताकि महादेव की कृपा से जीवन में अमरत्व और अजेयता का कवच प्राप्त हो सके।

एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम्। मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा।। १।।
अर्थ: गौरीपति मृत्युञ्जयेश्वर भगवान शंकर की विधिपूर्वक आराधना करने के बाद, भक्त को सदा मृतसञ्जीवन नामक इस कवच का स्पष्ट पाठ करना चाहिए।
सारात्सारतरं पुण्यं, गुह्यात्गुह्यतरं शुभम्। महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम्।। २।।
अर्थ: यह मृतसञ्जीवन कवच, तत्व का भी तत्व है। यह अत्यंत पुण्यप्रद है। यह कवच गोपनीय है और अत्यंत शुभ एवं मंगलकारी है।
समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम्। शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा।। ३।।
अर्थ: मन को एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवच को सुनो। यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है। इसकी गोपनीयता हमेशा बनाए रखना चाहिए।
वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित:। मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा।। ४।।
अर्थ: अभय प्रदान करने वाले, यज्ञ के अधिकारी, सभी देवताओं द्वारा पूजित मृत्युञ्जय महादेव, पूर्व दिशा में मेरी रक्षा करें।

दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु:। सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा।। ५।।
अर्थ: अभय शक्ति धारण करने वाले, तीन मुखों और छह भुजाओं वाले, अग्निरूपी प्रभु सदाशिव, अग्नेय कोण में मेरी रक्षा करें।
अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु:। यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु।। ६।।
अर्थ: अठारह भुजाओं से युक्त, दंड और अभय मुद्रा धारण करने वाले, यमरूपी महादेव, दक्षिण दिशा में मेरी रक्षा करें।
खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित:। रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु।। ७।।
अर्थ: खड्ग और अभय मुद्रा धारण करने वाले, धैर्यशील, राक्षसों द्वारा पूजित रक्षोरूपी महेश, नैऋत्य कोण में मेरी रक्षा करें।
पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित:। वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु।। ८।।
अर्थ: पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाले, समुद्रों से पूजित वरुण स्वरूप महादेव, पश्चिम दिशा में मेरी रक्षा करें।
गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति:। वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा।। ९।।
अर्थ: गदा और अभय मुद्रा धारण करने वाले, प्राणों के नायक, वायु स्वरूप शंकर, वायव्य कोण में मेरी रक्षा करें।

शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर:। सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु:।। १०।।
अर्थ: शंख और अभय मुद्रा धारण करने वाले, सर्वात्मा परमेश्वर शंकर, सभी दिशाओं के मध्य मेरी रक्षा करें।
शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक:। ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर:।। ११।।
अर्थ: त्रिशूल और अभय मुद्रा धारण करने वाले, सभी विद्याओं के स्वामी, ईशान स्वरूप परमेश्वर, ईशान कोण में मेरी रक्षा करें।
ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु। शिरो मे शङ्कर: पातु, ललाटं चन्द्रशेखर:।। १२।।
अर्थ: ब्रह्मरूपी शिव ऊर्ध्व भाग में और विश्वात्मा शिव अधोभाग में मेरी रक्षा करें। शंकर मेरे सिर की, और चंद्रशेखर मेरे ललाट की रक्षा करें।
भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु। भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु, कर्णौ पातु महेश्वर:।। १३।।
अर्थ: त्रिनेत्र सर्वलोकेश मेरे नेत्रों की रक्षा करें। गिरिश भौंहों की रक्षा करें, और महेश्वर कानों की रक्षा करें।
नासिकां मे महादेव, ओष्ठौ पातु वृषध्वज:। जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु।। १४।।
अर्थ: महादेव नासिका की रक्षा करें। वृषध्वज अधरों की रक्षा करें। दक्षिणामूर्ति जिह्वा की, और गिरिश दाँतों की रक्षा करें।
मृत्युञ्जयो मुखं पातु, कण्ठं मे नागभूषण:। पिनाकि मत्करौ पातु, त्रिशूलि हृदयं मम।। १५।।
अर्थ: मृत्युञ्जय मुख की रक्षा करें। नागभूषण कंठ की रक्षा करें। पिनाकी हाथों की रक्षा करें। त्रिशूलि मेरे हृदय की रक्षा करें।

पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु, उदरं जगदीश्वर:। नाभिं पातु विरूपाक्ष:, पार्श्वो मे पार्वतिपति:।। १६।।
अर्थ: पंचवक्त्र स्तनों की रक्षा करें। जगदीश्वर उदर की रक्षा करें। विरूपाक्ष नाभि की रक्षा करें। पार्वतीपति पार्श्व की रक्षा करें।
कटद्वयं गिरिशौ मे, पृष्ठं मे प्रमथाधिप:। गुह्यं महेश्वर: पातु, ममोरु पातु भैरव:।। १७।।
अर्थ: गिरिश कटि की रक्षा करें। प्रमथाधिप पृष्ठ की रक्षा करें। महेश्वर गुह्य भाग की रक्षा करें। भैरव जंघाओं की रक्षा करें।
जानुनी मे जगद्धर्ता, जङ्घे मे जगदंबिका। पादौ मे सततं पातु, लोकवन्द्य: सदाशिव:।। १८।।
अर्थ: जगद्धर्ता घुटनों की रक्षा करें। जगदंबिका जंघाओं की रक्षा करें। लोकवंद्य सदाशिव पैरों की रक्षा करें।
गिरिश: पातु मे भार्या, भव: पातु सुतान्मम। मृत्युञ्जयो ममायुष्यं, चित्तं मे गणनायक:।। १९।।
अर्थ: गिरिश पत्नी की रक्षा करें। भव पुत्रों की रक्षा करें। मृत्युञ्जय आयु की रक्षा करें। गणनायक मन की रक्षा करें।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु, कालकाल: सदाशिव:। एतत्ते कवचं पुण्यं, देवतानांच दुर्लभम्।। २०।।
अर्थ: कालों के काल सदाशिव मेरे सभी अंगों की रक्षा करें। यह पुण्य कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना, महादेवेन कीर्तितम्। सहस्त्रावर्तनं चास्य, पुरश्चरणमीरितम्।। २१।।
अर्थ: इस कवच को महादेव ने मृतसञ्जीवन नाम दिया है। इसकी सहस्त्र आवृत्तियाँ पुरश्चरण कही गई हैं।
य: पठेच्छृणुयानित्यं, श्रावयेत्सु समाहित:। सकालमृत्यु निर्जित्य, सदायुष्यं समश्नुते।। २२।।
अर्थ: जो इस कवच को नित्य पढ़ता है, सुनता है, या दूसरों को सुनाता है, वह अकाल मृत्यु को जीतकर दीर्घायु प्राप्त करता है।
हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा, मृतं सञ्जीवयत्यसौ। आधयोव्याधयस्तस्य, न भवन्ति कदाचन।। २३।।
अर्थ: जब कोई इस कवच का पाठ करते हुए मृत शरीर को स्पर्श करता है, तो उसमें जीवन लौट आता है। और उसे कभी रोग नहीं होता।
कालमृत्युमपि प्राप्तम्, असौ जयति सर्वदा। अणिमादिगुणैश्वर्यं, लभते मानवोत्तम:।। २४।।
अर्थ: यह कवच काल मृत्यु को भी जीत लेता है। और मनुष्य को अणिमा आदि सिद्धियाँ देता है।
युद्धारम्भे पठित्वेदम्, अष्टाविंशतिवारकम। युद्धमध्ये स्थित: शत्रु:, सद्य: सर्वैर्न दृश्यते।। २५।।
अर्थ: युद्ध शुरू होने से पहले, यदि कोई इसे अट्ठाईस बार पढ़े, तो युद्ध में वह शत्रुओं को दिखाई नहीं देता।
न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि, क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै। विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा।। २६।।
अर्थ: देवताओं के युद्ध में भी ब्रह्मास्त्र इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और यह विजय प्राप्त करता है।
प्रातरूत्थाय सततं, य: पठेत्कवचं शुभम्। अक्षय्यं लभते सौख्यम्, इहलोके परत्र च।। २७।।
अर्थ: जो प्रतिदिन प्रातःकाल इसे पढ़ता है, वह इस लोक और परलोक में अक्षय सुख प्राप्त करता है।
सर्वव्याधिविनिर्मुक्त:, सर्वरोगविवर्जित:। अजरामरणो भूत्वा, सदा षोडशवार्षिक:।। २८।।
अर्थ: यह मनुष्य सभी व्याधियों से मुक्त हो जाता है। अमर हो जाता है। और सदा सोलह वर्ष का बना रहता है।
विचरत्यखिलान् लोकान्, प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान्। तस्मादिदं महागोप्यं, कवचं समुदाहृतम्।। २९।।
अर्थ: यह मनुष्य सभी लोकों में विचरण करता है। और दुर्लभ भोग प्राप्त करता है। इसलिए यह कवच अत्यंत गोपनीय है।
मृतसञ्जीवनं नाम्ना, दैवतैरपि दुर्लभम्। इति वसिष्ठकृतं, मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्।। ३०।।
अर्थ: यह मृतसञ्जीवन स्तोत्र देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसे महर्षि वशिष्ठ ने रचा है।
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हर-हर महादेव। 

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