आसमान में अजेय कवच, भारत की नई वायु शक्ति

 -आईएडीडब्ल्यूएस का सफल परीक्षण, हवाई खतरों के खिलाफ भारत को मिली अडिग ढाल

ओडिशा तट से एकीकृत हवाई रक्षा हथियार प्रणाली (Integrated Air Defence Weapon System – IADWS) का सफल परीक्षण भारत की सामरिक क्षमता को एक नए आयाम पर ले गया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह दूसरा बड़ा प्रदर्शन है, जिसने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब न केवल दुश्मन की जमीनी चुनौतियों के लिए तैयार है, बल्कि आसमान से आने वाले हर खतरे को भी मात देने की पूरी ताकत रखता है। आईएडीडब्ल्यूएस का सबसे बड़ा महत्व इसकी बहुस्तरीय रक्षा प्रणाली में है। यह धीमी गति वाले ड्रोन से लेकर तेज रफ्तार वाले फाइटर जेट और बैलिस्टिक मिसाइलों तक को हवा में मार गिराने की क्षमता रखती है। इसमें शामिल हैं  त्वरित प्रतिक्रिया वाली सतह से हवा में मार करने वाली स्वदेशी मिसाइलें और उच्च शक्ति वाली लेजर आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed Energy Weapons – DEW)। यह सिर्फ एक रक्षा तंत्र नहीं, बल्कि आधुनिक युद्ध की बदलती प्रकृति का सटीक जवाब है। आज जब ड्रोन हमले और मिसाइल स्ट्राइक वैश्विक सुरक्षा के लिए नई चुनौती बन चुके हैं, ऐसे में यह प्रणाली भारत को ‘नो-फ्लाई जोन’ जैसी सुरक्षा कवच प्रदान करती है। परीक्षण के दौरान उच्च गति वाले मानवरहित हवाई लक्ष्यों और मल्टी-कॉप्टर ड्रोन को पूरी सटीकता के साथ नष्ट करना इसकी क्षमता का प्रमाण है।

इस उपलब्धि का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है पूर्ण स्वदेशीकरण। डीआरडीओ और उसकी विभिन्न प्रयोगशालाओं ने इस प्रणाली को न केवल डिजाइन किया, बल्कि उसका परीक्षण भी सफलतापूर्वक संपन्न किया। इसमें रिसर्च सेंटर इमारत (RCI) और सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज (CHESS) जैसी संस्थाओं का योगदान उल्लेखनीय है। यह आत्मनिर्भर भारत के रक्षा क्षेत्र में एक ठोस कदम है, जो आयात पर निर्भरता को कम करेगा और घरेलू रक्षा उद्योग को नई ऊर्जा देगा। इस परीक्षण का समय भी महत्वपूर्ण है। ऑपरेशन सिंदूर के साढ़े तीन महीने बाद यह संदेश दिया गया है कि भारत केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि पूर्व-सक्रिय रणनीति अपनाने में सक्षम है। चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के पास उन्नत हवाई हमले की क्षमताएं हैं, वहीं पश्चिम एशिया और रूस-यूक्रेन युद्ध के अनुभव बताते हैं कि आने वाले समय में ड्रोन और मिसाइलें युद्ध की निर्णायक ताकत होंगी। ऐसे में भारत का यह कदम न केवल घरेलू सुरक्षा, बल्कि वैश्विक सामरिक संतुलन के लिहाज से भी निर्णायक है।

यह तकनीक जितनी महत्वपूर्ण है, उतना ही जरूरी है कि इसे तेजी से तैनात किया जाए। सैन्य ठिकानों, औद्योगिक केंद्रों और सीमावर्ती क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति भारत को हवाई खतरों से सुरक्षित बनाएगी। साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रणाली में एआई आधारित रीयल-टाइम ट्रैकिंग, साइबर सुरक्षा, और स्पेस-डिफेंस नेटवर्क के साथ एकीकृत क्षमता हो, ताकि भविष्य की हर चुनौती का सामना किया जा सके। भारत ने आज यह सिद्ध कर दिया है कि वह आसमान से आने वाले हर खतरे को मात देने के लिए तैयार है। आईएडीडब्ल्यूएस केवल एक रक्षा प्रणाली नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता और तकनीकी श्रेष्ठता का प्रतीक है। आने वाले वर्षों में यह प्रणाली हमारी हवाई सीमाओं की अभेद्य ढाल बनेगी एक ऐसी ढाल, जो हर दुश्मन के लिए चेतावनी है।

- संपादक

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