विनोद कुमार झा
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि, अंधकार को चीरकर भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण की स्मृति याद दिलाती है। आज भी जब जन्माष्टमी का पर्व आता है, गोकुल, वृंदावन और मथुरा की गलियों में वही मधुर अनुभूति जाग उठती है, जो कभी यशोदा-नंद के आंगन में गूंजती थी। #बाल्यकाल में श्रीकृष्ण ने अनेक लीलाएं कीं, जो न केवल दिव्य चमत्कार थीं, बल्कि भक्तों के लिए भक्ति और प्रेम का अमूल्य संदेश भी छोड़ गईं।
पूतनावध करुणा में छिपा संहार : श्रीकृष्ण के जन्म के बाद कंस ने उन्हें मारने के लिए राक्षसी पूतना को भेजा। वह सुंदर स्त्री का रूप धरकर गोपगृह में आई और विष लगे स्तनों से शिशु को दूध पिलाने लगी। लेकिन बालक कृष्ण ने केवल विष ही नहीं, उसका प्राण भी ले लिया। यह लीला दर्शाती है कि भगवान शुद्ध हृदय से आने वालों को मातृत्व देते हैं, परंतु छल को सहन नहीं करते।
शकटभंजन – बालक की अद्भुत शक्ति : महज कुछ महीने के बालक कृष्ण, जब शकट (रथ) के नीचे झूले में लेटे थे, तभी उन्होंने अपने छोटे-से पांव से एक प्रहार किया और भारी रथ टूट गया। यह लीला बताती है कि भगवान के स्वरूप में कोई कार्य असंभव नहीं, चाहे वे बाल रूप में ही क्यों न हों।
त्रिणावर्त वध और आंधी का अंत : कंस का भेजा त्रिणावर्त दैत्य आंधी बनकर गोकुल में आया और शिशु कृष्ण को आसमान में ले गया। लेकिन बालक ने ही उसका गला पकड़कर प्राण हर लिए। यह कथा दर्शाती है कि जब भगवान हमारे जीवन में हों, तो विपत्ति की आंधियां भी शांत हो जाती हैं।
माखन-चोरी और गोपियों की शिकायतें : गोकुल में श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय खेल था माखन-चोरी। वे अपने सखाओं संग घर-घर जाकर माखन चुराते, गोपियों के मटके फोड़ते और हंसी-ठिठोली करते। गोपियां बार-बार यशोदा से शिकायत करतीं, पर मां के हृदय में भी माखन से ज्यादा मधुर अपने नटखट लाल की मुस्कान थी। यह लीला सिखाती है कि सच्ची भक्ति में भगवान भी अपने भक्तों से खेलते हैं।
कालिय नाग पर नृत्य : यमुना नदी में रहने वाला कालिय नाग अपने विष से जल को दूषित कर रहा था। श्रीकृष्ण ने जल में उतरकर उसके फनों पर नृत्य किया और उसे परास्त किया। यह घटना केवल वीरता की मिसाल नहीं, बल्कि यह संदेश है कि जीवन के विषैले संकटों पर विजय पाने के लिए साहस और दिव्य विश्वास आवश्यक है।
गोवर्धन धारण : इंद्रदेव के क्रोध से गोकुल पर मूसलधार बारिश शुरू हुई। बालक कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और पूरे गांव को आश्रय दिया। यह लीला बताती है कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाते हैं।
गोकुल की गलियां, यशोदा के आंगन, गोपियों की हंसी, और श्रीकृष्ण की बांसुरी ये सब आज भी जन्माष्टमी पर जीवंत हो उठते हैं। इन बाल लीलाओं में भक्ति, प्रेम, करुणा और साहस का संगम है। यही कारण है कि हर जन्माष्टमी, भक्तों को न केवल भगवान के चमत्कारों का स्मरण कराती है, बल्कि उनके बाल्य प्रेम और सहजता को भी हमारे जीवन में उतारने का प्रेरणा स्रोत बनती है।