विनोद कुमार झा ✍️
हर हर महादेव
श्रावण मास की पावन बेला जैसे ही दस्तक देती है, समूचे उत्तर भारत का वातावरण "हर-हर महादेव" और "बोल बम" के जयकारों से गुंजायमान हो उठता है। यह समय है कांवड़ यात्रा का वह अनूठा आध्यात्मिक पर्व, जिसमें आस्था, तपस्या, सेवा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, और नीलकंठ जैसे तीर्थस्थलों से गंगा जल लेकर लाखों श्रद्धालु शिवभक्त अपने-अपने क्षेत्र के शिवालयों की ओर कांवड़ लेकर रवाना हो चुके हैं।
मानो हरिद्वार से निकलने वाले मार्गों पर केवल मनुष्यों की नहीं, बल्कि देवत्व की धारा बह रही हो। हर ओर भगवा वस्त्रधारी कांवड़िए अपनी निष्ठा और आत्मिक ऊर्जा के साथ पग-पग पर भोलेनाथ का नाम जपते हुए आगे बढ़ रहे हैं। ये दृश्य न केवल श्रद्धा का प्रतीक हैं, बल्कि यह अनुभव कराते हैं कि जैसे समूची धरती पर देवता स्वयं अवतरित हो चुके हों।
दिल्ली-एनसीआर हुआ शिवमय: दिल्ली, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद, गुरुग्राम से लेकर फरीदाबाद तक सभी मुख्य हाइवे इन दिनों आस्था की डगर बन चुके हैं। हर कुछ किलोमीटर पर स्थापित कांवड़ शिविर शिवभक्तों की सेवा में निरंतर जुटे हैं। कहीं शीतल जल का वितरण हो रहा है, तो कहीं विश्राम के लिए बिछे हैं गद्दे और तंबू। कुछ शिविरों में भजन-कीर्तन चल रहे हैं, तो कहीं कांवड़ियों को फलाहार और औषधीय सहायता दी जा रही है।
इन सेवाओं में समाज के हर वर्ग का योगदान है युवा, वृद्ध, महिलाएँ, बच्चे, सभी तन, मन और धन से सेवा में रत हैं। मंदिर समितियाँ, सामाजिक संस्थाएँ, स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर कांवड़ियों के लिए यह अनोखा शिवपथ तैयार किया है।
कांवड़ यात्रा भक्ति से भरे कदम : कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक साधना है। अपने सिर या कंधों पर गंगा जल से भरी कांवड़ को लेकर पैदल चलना, तपती धूप, बरसात और थकान को मात देना यह बताता है कि जब मन में शिव हों, तो रास्ते की कठिनाइयाँ भी फूलों की तरह लगती हैं। यह यात्रा आत्म-शुद्धि, संयम और अनुशासन का प्रतीक भी बन चुकी है।
भक्त अपने-अपने गांव, कस्बों और नगरों के शिवालयों में जलाभिषेक करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। मार्ग में रुककर वे अपने अंतर्मन को भी शुद्ध कर रहे हैं शिव का स्मरण करते हुए, भजन गाते हुए, सहयात्रियों की मदद करते हुए।
सामाजिक समरसता की मिसाल : कांवड़ यात्रा उन दुर्लभ अवसरों में से एक है जब समाज के सभी वर्ग एक समान पंक्ति में आकर धर्म की सेवा में लग जाते हैं। जात-पात, ऊँच-नीच, भाषा-भाषा का भेद यहाँ समाप्त हो जाता है। सभी कांवड़िए एक ही लक्ष्य, एक ही भावना और एक ही आराध्य – भगवान शिव – के प्रति समर्पित होते हैं।
कांवड़ मार्गों पर "बोल बम" के उद्घोष के साथ-साथ शांति, अनुशासन और भाईचारे का अद्वितीय उदाहरण भी देखने को मिलता है। पुलिस प्रशासन भी इन दिनों सेवा के भाव में शिवरूप में कार्य करता दिखाई देता है, जो यात्रियों की सुरक्षा, यातायात और आपात सेवाओं को सहज रूप से संचालित करता है।
श्रावण मास की इस दिव्य यात्रा में शामिल हर भक्त स्वयं एक चलता-फिरता तीर्थ बन जाता है। कांवड़ यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की जीवंतता, उसकी आस्था, और उसकी सामाजिक एकता की सशक्त मिसाल भी है।
इस शिवमय माहौल में जब गंगा जल लिए कांवड़िए चलते हैं, तो मानो शिव स्वयं उनकी छाया बन साथ चलते हैं। हर क़दम पर श्रद्धा का दीप जलता है और हर दिशा गूंज उठती है "ॐ नमः शिवाय!"