संत बाबा कारू खिरहर मंदिर: आस्था, चमत्कार और लोकमान्यताओं का अद्भुत संगम

 विनोद कुमार झा

कोसी नदी के पवित्र तट पर बसे बिहार के सहरसा जिला के महपुरा गांव को बिहार के धार्मिक मानचित्र पर एक विशेष स्थान प्राप्त है। यहां स्थित संत बाबा कारू खिरहर मंदिर न केवल एक तीर्थस्थल है, बल्कि आस्था, चमत्कार और पौराणिक श्रद्धा का जीवंत केंद्र भी है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का वह केंद्र है जहां भक्ति, तप और दिव्यता का अनुभव किया जा सकता है।

 पौराणिक कथा और लोक मान्यताएं : स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, बाबा कारू खिरहर एक साधारण चरवाहा थे, जिनके भीतर गौ माता और भगवान शिव के प्रति अत्यंत श्रद्धा थी। वे प्रतिदिन ग्राम नोकचा स्थित नकुलेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करते थे। उनकी कठोर साधना और निःस्वार्थ सेवा भाव ने उन्हें अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न कर दिया। कहा जाता है कि बाबा ने गौ सेवा के लिए शिव से वरदान मांगा और जनकल्याण के उद्देश्य से जीवन समर्पित कर दिया। यादव समुदाय में उन्हें लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है।

एक प्रसिद्ध लोक कथाओं के अनुसार, जब कोसी नदी में प्रलयंकारी बाढ़ आई थी, तब बाबा ने अपनी तपस्या से जल का प्रवाह मोड़ दिया और महपुरा गांव को बचा लिया। यह घटना आज भी 'बाबा का चमत्कार' मानी जाती है।

मंदिर का इतिहास और स्वरूप : बाबा की समाधि पर बना यह मंदिर स्थापत्य की भव्यता के लिए नहीं, बल्कि सादगी और दिव्य अनुभूति के लिए जाना जाता है। पहले यह केवल एक आश्रम था, जो श्रद्धालुओं की भक्ति से एक धार्मिक तीर्थस्थल में परिवर्तित हो गया। यहां बाबा की मूर्ति नहीं है, बल्कि उनकी समाधि ही पूज्य है। श्रद्धालु फूल, दीप, धूप, दूध और खीर का प्रसाद अर्पित करते हैं। मंदिर में दुग्धाभिषेक, भांग, अरवा चावल, मिठाई, गांजा और खड़ाऊ चढ़ाने की परंपरा है।

 श्रद्धालुओं की आस्था और धार्मिक पर्व : महाशिवरात्रि, अष्टमी, सावन के सोमवार और नवरात्र जैसे पर्वों पर यहां विशेष आयोजन होते हैं। बाबा को विशेष रूप से "मनोकामना पूर्ण करने वाले संत" माना जाता है। विशेषकर असाध्य रोग, संतान सुख और विधिक परेशानियों के निवारण हेतु भक्त बाबा की शरण में आते हैं। नवरात्र की सप्तमी को लगने वाले मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं, और दुग्धाभिषेक से कोसी नदी तक दूध की धारा बहने लगती है  यह एक अनूठा दृश्य होता है।

पशुपालकों की आस्था और चढ़ावा : बाबा को पशुपालकों का संरक्षक भी माना जाता है। पशुपालक अपने मवेशियों के पहले दूध को बाबा को अर्पित करते हैं। यहां हर दिन सैकड़ों क्विंटल दूध, चावल और चीनी चढ़ाया जाता है, जिनसे खीर बनाकर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

 स्थानीय संस्कृति और समाज में योगदान : यह मंदिर केवल धार्मिक गतिविधियों तक सीमित नहीं है, बल्कि क्षेत्र में सामाजिक एकता, भंडारा, स्वास्थ्य शिविर, यज्ञ-हवन, और संकीर्तन जैसे आयोजन भी कराता है। यहां हर जाति, वर्ग और पृष्ठभूमि के लोग समान श्रद्धा के साथ बाबा के दरबार में हाजिरी लगाते हैं।

 कोसी नदी और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम : कोसी, जिसे 'बिहार की शोक' कहा जाता है, वहीं बाबा की तपोभूमि के पास यह नदी एक शांत और आध्यात्मिक स्वरूप ले लेती है। नदी और मंदिर का यह मेल एक दिव्य ऊर्जा केंद्र का आभास कराता है।

 कैसे पहुंचे?

रेलमार्ग: सहरसा रेलवे स्टेशन से महपुरा गांव के लिए ऑटो और बस सेवा उपलब्ध।

सड़क मार्ग: सहरसा से महपुरा की दूरी लगभग 20 से 22 किलोमीटर।

नदी मार्ग: कोसी नदी के तट से नाव के जरिए भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, विशेष रूप से सावन और महाशिवरात्रि में। संत बाबा कारू खिरहर मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि शाश्वत भक्ति, चमत्कार और श्रद्धा का केंद्र है। यहां आकर श्रद्धालु केवल दर्शन नहीं करते, बल्कि अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति का अनुभव करते हैं।

यदि आप आध्यात्मिक शांति, चमत्कारी ऊर्जा और लोक आस्था का अद्वितीय संगम देखना चाहते हैं, तो महपुरा गांव स्थित बाबा कारू खिरहर मंदिर की यात्रा अवश्य करें।



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