श्रावन माह रहस्य क्या है?

विनोद कुमार झा

11 जुलाई से शुरू हो रहा भगवान शिव का प्रिय मास – जानिए पौराणिक कथा, धार्मिक रहस्य और पुराणों में इसका महत्त्व

शिवो भूत्वा शिवं यजेत्।

हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास (सावन) देवों के देव महादेव शिव का सबसे प्रिय मास माना गया है। इस वर्ष सावन का आरंभ 11 जुलाई 2025 (शुक्रवार) से हो रहा है, और इसका समापन 9 अगस्त 2025 को होगा। यह मास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और भक्ति की चरम सीमा को स्पर्श करने का काल है। इस दौरान पूरे भारत में विशेषकर उत्तर भारत में हर सोमवार को "श्रावण सोमवारी व्रत" रखा जाता है, कांवड़ यात्रा निकाली जाती है, और शिवालयों में "बोल बम" की गूंज सुनाई देती है।

 श्रावण मास की उत्पत्ति: पौराणिक कथा

श्रावन मास से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जब देवताओं और दानवों ने मिलकर मंदराचल पर्वत से समुद्र मंथन किया, तब सर्वप्रथम कालकूट नामक विष निकला। यह विष इतना प्रचंड और घातक था कि उसके प्रभाव से समस्त सृष्टि के प्राणी संकट में आ गए। तब भगवान विष्णु, ब्रह्मा, और समस्त देवता शिवजी की शरण में गए।

भगवान शिव ने समस्त जगत की रक्षा हेतु उस महाविष को अपने कंठ में धारण कर लिया , जिससे उनका कंठ नीला हो गया और वे "नीलकंठ" कहलाए।

विषपान के कारण शिवजी का शरीर अत्यंत गर्म हो गया। उनकी इस अग्नितुल्य पीड़ा को शांत करने के लिए देवगणों ने जलाभिषेक करना शुरू किया , और तभी से श्रावण मास में विशेष रूप से जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पण की परंपरा चली आ रही है।

 पुराणों में श्रावन माह का उल्लेख

शिव पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि ,"श्रावण मासे यः पवित्रं जलं शिवार्पयति, स कोटिजन्यं पापं नश्यति।"

अर्थात् जो व्यक्ति श्रावण मास में गंगाजल, दूध, मधु आदि से शिवलिंग का अभिषेक करता है, वह करोड़ों जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।

स्कंद पुराण में श्रावण मास को "व्रतों का राजा" कहा गया है। इसमें बताया गया है कि श्रावन में सोमवार के दिन व्रत रखकर शिवलिंग पर जल, दूध और पंचामृत से अभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायक होता है।

पद्म पुराण के अनुसार, श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, विशेषकर अविवाहित कन्याओं को उत्तम वर और विवाहित स्त्रियों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

लिंग पुराण में वर्णन है कि श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करने से व्यक्ति को मृत्यु के उपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है।

 श्रावन में आने वाले प्रमुख व्रत एवं पर्व

1. श्रावण सोमवार व्रत : हर सोमवार को व्रत और जलाभिषेक

2. हरियाली तीज :  सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया को स्त्रियां सौभाग्य के लिए करती हैं व्रत

3. नाग पंचमी : सर्पों की पूजा का विशेष दिन

4. रक्षाबंधन: भाई-बहन के प्रेम का पर्व

5. श्रावणी अमावस्या:  पितरों के लिए विशेष तर्पण एवं पूजा

श्रावन और प्रकृति का अद्भुत संबंध : श्रावन मास में प्रकृति भी मानो हरित चादर ओढ़ लेती है। हरियाली, वर्षा और शीतल हवा वातावरण को मनोहारी बना देती है। यह काल कृषि प्रधान भारत में फसलों के रोपण का समय भी होता है, अतः इसे समृद्धि और उत्पादकता का भी मास कहा जाता है।

कांवड़ यात्रा : श्रावन मास में शिवभक्त "कांवड़िए" हरिद्वार और गंगाजल लाकर अपने नजदीकी शिवालयों में चढ़ाते हैं। और शुलतानगंज से गंगाजल ले जाकर बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाते हैं। यह परंपरा भी शिव के विषपान की घटना से जुड़ी है। कांवड़िए अपने सिर पर गंगाजल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और "बोल बम", "हर हर महादेव" के उद्घोष के साथ शिवालयों में जल चढ़ाते हैं।

सावन में क्या करें, क्या न करें 

करने योग्य: शिवालय में जल, दूध और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।  बिल्वपत्र, धतूरा, आक, कमल, कुशा आदि अर्पित करें। उपवास, ब्रह्मचर्य पालन और सत्य वचन वोलें। भगवद्भक्ति, रुद्राष्टाध्यायी, शिवपुराण पाठ करें।

वर्जित कर्म: लहसुन, प्याज, मांस, शराब का सेवन न करें, असत्य भाषण, क्रोध, चोरी, व्यभिचार, झूठी गवाही या झगड़ा से बचें।

श्रावन केवल धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठान नहीं है। यह आत्मिक शुद्धि का काल है। भगवान शिव ध्यान, योग और वैराग्य के प्रतीक हैं, और श्रावण मास उनके इन्हीं गुणों को आत्मसात करने का उपयुक्त समय है। कहा भी गया है: "शिवो भूत्वा शिवं यजेत्"

अर्थात् शिवस्वरूप होकर ही शिव की उपासना की जा सकती है। इस मास में ध्यान, व्रत, संयम और साधना के माध्यम से हम अपने भीतर के शिवत्व को जागृत कर सकते हैं।

श्रावण मास महज एक महीना नहीं, बल्कि शिव-भक्ति की पावन धारा है, जो व्यक्ति को आत्मिक ऊंचाइयों तक ले जाती है। यह समय है आत्मनिरीक्षण, संयम, उपासना और सत्कर्मों का। 11 जुलाई से आरंभ हो रहे इस पावन काल में शिवभक्तों को चाहिए कि वे अपने तन, मन और वचन से शिव को अर्पित करें, ताकि उन्हें न केवल सांसारिक सुख-सौभाग्य बल्कि परमशांति और मोक्ष की प्राप्ति हो।


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