उत्तरवाहिनी गंगा में विराजमान बाबा अजगैबी नाथ: जानें आस्था, इतिहास और पौराणिक महिमा

 विनोद कुमार झा ✍️ 

बिहार के भागलपुर जिले में स्थित सुल्तानगंज न केवल अपनी उत्तरवाहिनी गंगा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां गंगा के मध्य एक चट्टान पर विराजमान बाबा अजगैबी नाथ का मंदिर श्रद्धालुओं की अपार आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन के महीने में तो इस मंदिर की महिमा और भी अद्भुत हो जाती है, जब लाखों श्रद्धालु कांवड़ में जल लेकर यहां से बाबा बैद्यनाथ धाम, देवघर की यात्रा शुरू करते हैं।

बाबा अजगैबी नाथ से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह स्थान वह है जहां भगवान शिव ने स्वयं प्रकट होकर भक्तों को दर्शन दिए थे। "अजगैबी" शब्द का अर्थ होता है  जो जगत की गति से परे हो, और कहा जाता है कि यहां के बाबा वास्तव में अजन्मे और अदृश्य हैं, जो अचानक भक्तों की पीड़ा हरने प्रकट हो जाते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार, जब रावण भगवान शिव को लेकर लंका जा रहा था, तब इस मार्ग से भी उनका जलाभिषेक हुआ था। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इस स्थल को अपनी विशेष उपस्थिति से पवित्र किया और स्वयं उत्तरवाहिनी गंगा के मध्य चट्टान पर प्रकट होकर यहां निवास किया। तभी से इस स्थान को "बाबा अजगैबी नाथ" के नाम से जाना जाने लगा।

इतिहासकारों के अनुसार, बाबा अजगैबी नाथ मंदिर की स्थापना कई शताब्दियों पूर्व हुई थी। पुरातत्वविदों ने भी इस स्थल को मौर्य और गुप्त कालीन संस्कृति से जोड़ते हुए इसके धार्मिक महत्व की पुष्टि की है। गंगा के मध्य स्थित यह मंदिर अपनी अद्वितीय बनावट और शिवलिंग की प्राकृतिक स्थिति के कारण विशेष रूप से दर्शनीय है।

 उत्तरवाहिनी गंगा और आध्यात्मिक महत्व : भारत में गंगा सामान्यतः दक्षिणवाहिनी है, लेकिन सुल्तानगंज में वह उत्तर दिशा की ओर बहती है, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है। पुराणों के अनुसार, उत्तरवाहिनी गंगा के जल से शिवलिंग पर जलाभिषेक करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस कारणवश, सावन के महीने में विशेष रूप से यहाँ हजारों-लाखों कांवड़िए गंगाजल भरते हैं और लगभग 108 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा तय कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं।

भक्तों की आस्था और सावन की रौनक : सावन के महीने में सुल्तानगंज का यह क्षेत्र शिवभक्ति के सबसे बड़े केंद्रों में बदल जाता है। हर वर्ष यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्त गंगा में नाव से जाते  हैं जो श्रद्धा और साहस का प्रतीक है।

कांवड़ यात्रा की शुरुआत बाबा अजगैबी नाथ से होती है और हर कोई पहले इनका आशीर्वाद लेकर ही यात्रा शुरू करता है। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि बाबा अजगैबी नाथ की पूजा करने से भूत-प्रेत बाधा, रोग, दरिद्रता तथा मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

मंदिर की बनावट और अनोखापन : मंदिर न तो किसी ऊँची इमारत पर बना है और न ही उसमें कोई शिखर है। यह गंगा के बीचोंबीच एक प्राकृतिक शिला पर स्थित है, जो वर्षभर गंगा के जल से आच्छादित रहती है। इस कारण से यह मंदिर प्राकृतिक, आध्यात्मिक और वास्तुशिल्पीय दृष्टि से भी अद्वितीय है।

बाबा अजगैबी नाथ का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, तप, भक्ति और संयम का प्रतीक है। गंगा के बीच स्थित यह स्थल भक्तों के लिए एक ऐसी दिव्य अनुभूति प्रदान करता है, जिसे शब्दों में बाँधना कठिन है। हर वर्ष सावन में उमड़ती श्रद्धालुओं की भीड़ यह सिद्ध करती है कि भले ही समय बदल गया हो, लेकिन आस्था का प्रवाह आज भी उत्तरवाहिनी गंगा की तरह अनवरत और पावन है।

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