#तूफान के बीच पतवार

  विनोद कुमार झा

आकाश पर घिरे काले बादल, जैसे किसी अदृश्य क्रोध से भरे हों, बिजली की गूँज किसी चेतावनी सी लगती थी "संभल जाओ, समय की परीक्षा शुरू हो गई है।" धरती और आकाश के बीच, मानो जीवन की नाव डगमगाने लगी थी। नदियाँ उफान पर थीं, बाढ़ अपने चरम पर, और इंसान बस एक छोटा सा दीपक, जो हवाओं की दहाड़ के बीच टिमटिमा रहा था।


हर ओर पानी ही पानी माटी, खेत, घर, पेड़, मंदिर सब बह चले थे। वह दृश्य किसी अंत की तरह भयावह, पर उसी के भीतर छिपी थी एक शुरुआत की संभावना। गाँव के बीचोंबीच एक नाव पुरानी, टूटी-फूटी सी पर सवार थे कुछ लोग, एक बूढ़ा जिसकी आँखों में पूरा जीवन थरथरा रहा था, एक माँ जिसने गोदी में अपने बच्चे को कसकर भींच रखा था, एक युवा जो दूसरों की जान बचाने में अपनी थकान भूल चुका था, और एक पुजारी जो गीले शॉल में भी गीता की कुछ पंक्तियाँ बुदबुदा रहा था "न हि कश्चित् क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्..."

वह नाव न थी, वह आशा की पतवार थी डगमगाते जीवन की एक डोर, जिसे थामे वे लोग अपने भाग्य से लड़ रहे थे। पानी का बहाव जैसे प्रश्न पूछ रहा था "कब तक टिकोगे?" और नाव से आती हर सांस, हर प्रार्थना उत्तर दे रही थी "जब तक साँसें हैं, तब तक संघर्ष है।"

एक दृश्य ऐसा भी था कमल का पत्ता, बाढ़ के पानी में हिचकोले खाता हुआ, उस पर एक मेंढ़क बैठा था। प्रकृति की इस सूक्ष्म रचना में भी जीवन की चिपकने की अद्भुत जिजीविषा थी। वह पत्ता जैसे कह रहा था "मैं डूब नहीं रहा हूँ, मैं बह रहा हूँ… समय के साथ… भरोसे के साथ…।"

बाढ़ में घिरा एक परिवार जिसके घर का आंगन अब नाव बन चुका था, रसोई की हांडी अब पानी में तैरती थाली थी, और छत से लटकी एक दीया, जो अब भी जल रहा था इस बात का प्रतीक था कि "प्रकाश कभी बुझता नहीं, चाहे तूफान कितना भी भयानक क्यों न हो।"

एक बच्चा अपनी स्कूल की कॉपी भीगने के बावजूद भी उसे छाती से लगाए बैठा था। शायद उसने सुना था "गुरु का ज्ञान तो वह दीप है जो अंधकार में भी रौशनी देता है।" और यही रौशनी उसे अंधकार से बाहर खींच ले जाएगी।

जीवन की यह नाव, पतवार के बिना नहीं थी।

वह पतवार था साहस।

वह पतवार था विश्वास।

वह पतवार था ‘हम’ होने का एहसास।

बाढ़ की गर्जना, तूफानों की मार, भूख की टीस और भविष्य की अनिश्चितता इन सबके बीच भी वह नाव आगे बढ़ रही थी। क्योंकि कोई एक उसे खे रहा था, कोई एक उसे सहारा दे रहा था। कोई अज्ञात शक्ति, कोई अदृश्य हाथ… या फिर शायद स्वयं मानवता की आत्मा।

और तब कहीं दूर, एक किरण टूटी बादलों के पार से। सुनहरी, कोमल, जैसे ईश्वर ने अपना हाथ बढ़ाया हो। और वह किरण नाव पर पड़ते ही जैसे किसी देवी की कृपा बन गई। सबने सिर झुकाया, और धीरे-धीरे तूफान शांत होने लगा।

यह कहानी नहीं, जीवन का प्रतिबिंब है। जहाँ हर व्यक्ति एक नाव पर सवार है कभी अपने दुखों की बाढ़ में फंसा, कभी आशा के पतवार से बाहर निकलता हुआ।कमल के पत्ते पर जीवन टिका है, और तूफान में पतवार थामने वाले वही लोग हैं, जो दूसरों के लिए रोशनी बनते हैं।

इसलिए जब जीवन में तूफान आए, तो डरिए मत। क्योंकि याद रखिए, "तूफानों में ही असली नाविक की पहचान होती है।"और"तूफान चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, अगर पतवार हाथ में है तो किनारा ज़रूर आएगा।"


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