#पूजा अनुष्ठान में रक्षासूत्र (मोली) बांधने का रहस्य

  विनोद कुमार झा

सनातन धर्म में प्रत्येक क्रिया, प्रतीक और वस्तु के पीछे कोई न कोई गूढ़ अर्थ और आध्यात्मिक रहस्य छिपा होता है। ऐसा ही एक अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण प्रतीक है  रक्षासूत्र , जिसे आम बोलचाल में मोली या कलावा कहा जाता है। पूजा-पाठ, यज्ञ, व्रत या किसी धार्मिक कार्य की शुरुआत रक्षासूत्र बांधने से होती है। इसे केवल धागा नहीं समझना चाहिए, बल्कि यह दिव्यता, संकल्प, और आत्म-रक्षा का आध्यात्मिक कवच है।

जब कोई ब्राह्मण यजमान की कलाई पर रक्षासूत्र बांधता है, तो वह केवल एक क्रिया नहीं करता, बल्कि उस व्यक्ति की आत्मा को एक दिव्य संकल्प से जोड़ता है। यह धागा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रैणिक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके रंग भी प्रतीकात्मक होते हैं  लाल रंग शक्ति और ऊर्जा का, पीला रंग पुण्य और शुद्धता का, जबकि सफेद रंग शांति और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है।

भारतीय परंपरा में दाहिने हाथ की कलाई पर पुरुषों और बाईं कलाई पर महिलाओं को यह रक्षासूत्र बांधा जाता है। यह बांधते समय विशेष मंत्र पढ़े जाते हैं, जिससे यह धागा मात्र धागा न रहकर देवत्वयुक्त रक्षा-कवच बन जाता है। यह बुरी शक्तियों, नकारात्मक ऊर्जा, और ग्रहदोष से रक्षा करता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

वैदिक ग्रंथों में भी रक्षासूत्र का विशेष उल्लेख है। यजुर्वेद, स्कंद पुराण , गृह्य सूत्रों और मनुस्मृति में इसके नियम, उपयोग और लाभों का वर्णन मिलता है। यह धागा व्यक्ति को उसके कर्तव्यों की याद दिलाता है और यह सुनिश्चित करता है कि वह धर्म के मार्ग से विचलित न हो। आइए अब इस विषय से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा पर दृष्टिपात करते हैं जो रक्षासूत्र की उत्पत्ति और महत्व को उजागर करती है।

रक्षासूत्र की पौराणिक कथा :

प्राचीन काल की बात है, जब देवता और दानवों के बीच घोर युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में एक बार ऐसा समय आया जब देवता असुरों की शक्ति के आगे पराजय की स्थिति में आ गए। इंद्रदेव, जो देवताओं के राजा थे, घबराए हुए ब्रह्मा जी के पास पहुँचे और अपनी चिंता प्रकट की “भगवन्! असुरों की शक्ति प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हमें उनकी रक्षा से कौन बचाएगा?”

ब्रह्मा जी ने शांत स्वर में उत्तर दिया  “रक्षा मंत्र और रक्षा-सूत्र ही तुम्हारे लिए विजय का मार्ग प्रशस्त करेंगे। तुम एक पवित्र यज्ञ का आयोजन करो, और उसमें वैदिक विधि से रक्षासूत्र सिद्ध करवा कर उसे अपनी दाहिनी कलाई पर बांधो। यह सूत्र तुम्हारे शरीर, मन और आत्मा को एक शक्ति-कवच प्रदान करेगा।”

इंद्र ने गुरु बृहस्पति की सहायता से एक दिव्य यज्ञ करवाया। यज्ञ की पूर्णाहुति के समय गुरु बृहस्पति ने एक पवित्र सूत्र को रक्षा-मंत्रों द्वारा सिद्ध किया और उसे इंद्र की दाहिनी कलाई पर बांधते हुए यह मंत्र पढ़ा :-

येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।

(अर्थात – जिस रक्षासूत्र से महाबली राजा बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधता हूं। यह रक्षा तुम्हारी स्थायी हो, कभी विचलित न हो।)

इस रक्षासूत्र की शक्ति से इंद्रदेव को नई ऊर्जा मिली, उनका आत्मविश्वास बढ़ा, और उन्होंने असुरों को पराजित कर देवताओं की विजय सुनिश्चित की। तभी से यह परंपरा चली कि किसी भी शुभ कार्य, यज्ञ, व्रत, पूजा या रक्षा के उद्देश्य से यह मोली बांधी जाती है।

रक्षासूत्र केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि *विश्वास, श्रद्धा, और आस्था का प्रतीक* है। यह व्यक्ति को याद दिलाता है कि वह ईश्वर के संरक्षण में है, और उसे अपने जीवन में सत्य, धर्म और कर्तव्य का पालन करना है। यह धागा हमें बुराई से लड़ने, अच्छाई को अपनाने और संकल्प में अडिग रहने की प्रेरणा देता है।

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