विनोद कुमार झा
(एक प्रेरणादायक कथा जो घी और तेल के दीपक के रहस्य को जीवन के सत्य से जोड़ती है)
पूजा में घी का दीपक और तेल का दीपक दोनों का अपना-अपना आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक और वैज्ञानिक रहस्य है। भारतीय सनातन परंपरा में यह केवल दीप जलाने की क्रिया नहीं होती, बल्कि उसके पीछे एक गहरा तात्त्विक अर्थ और शक्ति निहित होती है। आइए दोनों के रहस्यों को विस्तार से समझते हैं:
घी का दीपक सात्त्विकता और दिव्यता का प्रतीक
तात्त्विक रहस्य: घी (विशेषकर गाय के घी) को सात्त्विक तत्त्वों का स्रोत माना गया है। जब घी जलता है तो उसमें से निकलने वाली अग्नि देवगणों को प्रिय होती है। यह अग्नि मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करती है। घी का दीपक प्रकाश और सुगंध दोनों देता है जो वातावरण को पवित्र बनाता है।
आध्यात्मिक प्रभाव: घी का दीपक मौन, ध्यान और जप के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसे ईश्वर को समर्पित भावनाओं की ऊँचाई का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है "घृतं दीप्तं समायुक्तं देवताभ्यः समर्पयेत्" अर्थात घी का दीपक देवताओं को अर्पित करना चाहिए।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जब गाय के घी का दीपक जलता है तो वातावरण में ऑक्सीजन की वृद्धि होती है और हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं। इसकी अग्नि से शारीरिक और मानसिक तनाव कम होता है।
तेल का दीपक – तप, संयम और रक्षा का प्रतीक है जैसे:-
तात्त्विक रहस्य: तेल विशेषकर सरसों, तिल, नीम या नारियल तेल को रक्षक और तपस्वी भाव से जोड़कर देखा जाता है। तेल का दीपक नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और अशुभ शक्तियों से रक्षा करता है।
आध्यात्मिक प्रभाव: शनि, राहु, केतु, भैरव, काली आदि तामसिक देवताओं को तेल का दीपक अर्पित किया जाता है। यह कष्ट निवारण, शत्रु नाश और सुरक्षा के लिए उत्तम माना जाता है।शनिवार को पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक* जलाना विशेष रूप से शुभ माना गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सरसों या तिल के तेल का दीप जलने से वातावरण में नैचुरल कीटाणुनाशक गैसें फैलती हैं। इसका धुआँ मच्छर, कीड़े और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
घी और तेल – कब, किसके लिए उपयुक्त?
| परिस्थिति/देवता | दीपक का प्रकार | उद्देश्य |
| शुद्ध भक्ति, ध्यान, जप, ब्रह्म मुहूर्त पूजा | घी का दीपक | सात्त्विकता और आंतरिक शुद्धि |
| शनि, भैरव, काली, राहु आदि की उपासना | तेल का दीपक | रक्षा, बाधा निवारण और शक्ति |
| लक्ष्मी पूजा, दीपावली, गुरुवार, पूर्णिमा | घी का दीपक | लक्ष्मी कृपा और सुख-समृद्धि |
| शनिवार, अमावस्या, काली पूजा | तेल का दीपक | दोष निवारण और ग्रह शांति |
दीपक जलाने की दिशा का रहस्य
| दिशा | अर्थ | किस दीपक से लाभ |
| पूर्व | ज्ञान, उदय | घी और तेल दोनों |
| पश्चिम | बाधा नाश | तेल विशेष लाभकारी |
| उत्तर | समृद्धि, लक्ष्मी कृपा | घी का दीपक श्रेष्ठ |
| दक्षिण | यम दिशा – रक्षण हेतु | केवल तेल का दीपक
(विशेषकर शनि के लिए) |
दीपक की लौ बताता पूजा का भाव!
सीधी, स्थिर लौ: मन स्थिर है, पूजा स्वीकार हो रही है।
काँपती लौ: चित्त चंचल है, ध्यान टूट रहा है।
धीमी लौ: ऊर्जा कम है, पूजा में श्रद्धा बढ़ाने की आवश्यकता।
तेज़ और चमकदार लौ: शक्ति और ईश्वर कृपा का संकेत।
घी का दीपक आत्मिक उन्नति, सात्त्विक ऊर्जा और दिव्यता का प्रतीक है।
तेल का दीपक रक्षा, दोष निवारण और तामसिक शक्तियों के नियंत्रण हेतु उपयोगी है। दोनों का उपयोग स्थान, देवता, तिथि और मनोभाव के अनुसार किया जाना चाहिए। इस पर आधारित कथाएं कुछ इस प्रकार प्रचलित है:
कथा : पुरातन समय की बात है। एक शांत पर्वतीय नगर में श्री केदारेश्वर महादेव का एक अत्यंत प्राचीन मंदिर था। मंदिर के गर्भगृह में दो दीपक वर्षों से जलते आ रहे थे — एक घी का दीपक और दूसरा तेल का दीपक। दोनों को हर दिन विशेष नियम से एक भक्त ब्राह्मण जलाता था।