विनोद कुमार झा
(अनुभव से उपजे वे शब्द जो आत्मा को दिशा देते हैं)
जब शब्द आत्मा से निकलते हैं, तब वे केवल ध्वनि नहीं होते वे मंत्र बन जाते हैं। संतों की वाणी वही दिव्य वाणी है जो अनुभव की अग्नि में तपकर निकली है। यह वाणी पवित्र ग्रंथों की व्याख्या नहीं, बल्कि स्वयं की खोज की घोषणा है। संतों की वाणी में आत्मा की पुकार है, जिसमें ईश्वर के साक्षात्कार का प्रमाण है।
कबीर दास जी कहते हैं, "जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ।" यह वाणी केवल संन्यास की नहीं, यह त्याग की, तपस्या की, और गहराई की वाणी है। जब एक संत बोलता है, तो वह केवल अपनी भाषा नहीं, समस्त मानवता की चेतना को जगाने का काम करता है।
संतों की वाणी किसी धर्म, जाति या भाषा में सीमित नहीं रही। यह सभी समयों में, सभी जनों के लिए समान रूप से लाभकारी रही है। गुरुनानक देव जी की वाणी “एक ओंकार सतनाम” हो या कबीर की “राम रहीम एक है”, सबका सार एक ही है – एकता, प्रेम और भक्ति।
मीराबाई जब कहती हैं:"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई", तो वह एक स्त्री की सामाजिक क्रांति भी है और आत्मा की परम-भक्ति भी। संतों की वाणी युगों-युगों तक अनंत चेतनाओं को जगा चुकी है। जब समाज ऊँच-नीच, जात-पात, और धर्म के नाम पर बँटा हुआ था, तब संतों की वाणी ने सामाजिक एकता का मार्ग दिखाया।
रैदास जी ने कहा ,"जात-पात के फेर में उरझि रहा संसार,भेदभाव की रेख मिटा, देखो सब में नारायण एक समान।"
यह वाणी केवल आध्यात्मिक नहीं थी, यह समाज को बदलने वाली शक्ति भी थी। उस युग में जब छुआछूत और भेदभाव चरम पर था, संतों की वाणी ने आम लोगों को अधिकार और आत्मसम्मान का बोध कराया।
अनुभव से उपजे शब्द – कबीर की वाणी : कबीरदास जी की वाणी समाज, धर्म, योग और भक्ति पर एक तीखी और सचेत दृष्टि है। उनकी वाणी शास्त्रों की परछाईं नहीं, आत्मा की साक्षात अनुभूति है।
"जहाँ खोजा तहाँ नाहीं, जहाँ नाहीं तहाँ पाइयें।
कह कबीर सुनो भाई साधो, दूरि कहूँ मत जाइये।।"
यह वाणी कहती है कि ईश्वर दूर नहीं, वह तो भीतर ही है खोजने की आवश्यकता है। कबीर की वाणी आज भी घर-घर में गूँजती है, क्योंकि वह शाश्वत है, सार्वभौमिक है।
गुरुबाणी – शब्द रूपी सतगुरु : गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित संत वाणी केवल पवित्र ग्रंथ नहीं, वह जीवन की सच्चाई है।
"शब्द गुरु सुरति धुन चेला"
यह वाणी बताती है कि शब्द ही गुरु बन सकता है, जब वह अंतःकरण में उतर जाए। गुरुबाणी में प्रेम, सेवा, करुणा और सत्य के रंग हैं।
गुरु नानक जी की वाणी :"पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत"। हमें प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता याद दिलाती है। यह पर्यावरणीय चेतना भी है और आध्यात्मिक दृष्टि भी।
मीराबाई – भक्ति की वाणी : मीराबाई की वाणी स्त्री की आत्मा से निकली वह पुकार है, जो प्रेम को पूजा बना देती है।
"पायो जी मैंने राम रतन धन पायो"
इस भजन में संसार की सभी इच्छाओं और संपत्तियों के स्थान पर राम नाम की प्राप्ति का उल्लास है। मीराबाई की वाणी हर उस आत्मा की आवाज है जो परमात्मा से मिलन को आतुर है।
संतों की वाणी केवल बोल नहीं, आत्मा की गहराई का संगीत है। जब तुलसीदास कहते हैं -
"भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ"
तो वह केवल भक्ति नहीं, विश्वास और श्रद्धा के सह-अस्तित्व की वाणी है। संत वाणी हमें जीवन की आपाधापी से निकालकर स्थायित्व और शांति की ओर ले जाती है।
आज जब समाज में तनाव, द्वेष, लालच और भटकाव बढ़ते जा रहे हैं, तब संतों की वाणी और भी अधिक प्रासंगिक हो गई है। बच्चों में नैतिकता, युवाओं में दिशा, और वृद्धों में शांति का जो अभाव दिखता है, वह संतों की वाणी से ही भरा जा सकता है।
आज सोशल मीडिया, इंटरनेट और भागदौड़ भरे जीवन में हम 'शब्दों' से घिरे हैं लेकिन 'संत वाणी' से वंचित हैं। सच्चाई यह है कि "शब्दों का संसार शोर करता है, लेकिन संतों की वाणी मौन में भी बोलती है।"
वाणी जो पिघलाती है पत्थर भी : संत तुकाराम , ज्ञानेश्वर , नामदेव , स्वामी रामतीर्थ , स्वामी विवेकानंद सभी की वाणी में अपने-अपने समय की पुकार थी।
तुकाराम कहते हैं ,"जे का रंजले गांजले, त्यासी म्हणे जो आपुला। तोचि साधू ओळखावा, देव तेथेचि जाणावा।"
यानि जो दुखियों को अपना कहे, वही सच्चा संत है वही ईश्वर है।
संतों की वाणी अमर है क्योंकि वह सत्य है। सत्य कभी नहीं मरता। वह युगों-युगों तक जीवित रहता है, प्रेरणा देता है।
"सतगुरु की वाणी, सदा जीवनी वाणी। जो उसको श्रवण करे, सो मरे नहीं, अमरता पावे।"
आज ज़रूरत है कि हम फिर से इन वाणियों की ओर लौटें स्कूलों में, घरों में, समाज में। इन वाणियों को पढ़ें नहीं, जीएं।
वाणी का मूल्य शब्दों में नहीं, हृदय की चेतना में होता है। संतों की वाणी केवल हमें बदलने नहीं, हमें उबारने आई है।
– जय संत वाणी।
