विनोद कुमार झा ✍️
कई बार कोई क्षण हमारी स्मृतियों में स्थायी रूप से बस जाता है जैसे मां की गोद, पिता की छाया, या पहली बारिश की वो सोंधी खुशबू। "बारिश की पहली बूंद" महज जल की एक बूंद नहीं होती, बल्कि वह प्रकृति का वह पहला स्पर्श होता है जो मन को झंकृत कर देता है, आत्मा को तर कर देता है। यह वही क्षण होता है जब तपते शहर की सड़कों से भाप उठती है, जब खेतों में पड़ा बीज मुस्कुरा उठता है, जब किसी छत पर बैठा कवि अचानक गुनगुनाने लगता है और किसी खिड़की के पास बैठी गृहिणी की आंखें पुरानी यादों में डूब जाती हैं।
गांवों में जब पहली बारिश की बूंदें गिरती हैं, तो लगता है मानो पूरी धरती ने चादर ओढ़ ली हो। किसान अपनी आंखों में आशा की नई चमक लिए हल उठाते हैं। सूख चुके पोखर तालाब फिर से जीवन से भर उठते हैं। पेड़, पौधे और पशु-पक्षी सब आनंद में डूब जाते हैं। वहीं शहरों में भी पहली बारिश अपने ढंग से दिलों को छूती है। भीड़-भाड़, ट्रैफिक और चकाचौंध के बीच भी यह बूंदें दिलों की ठहरी हुई भावनाओं को बहा ले जाती हैं।
हर वर्ग, हर उम्र, हर जाति का व्यक्ति पहली बारिश में भीगना चाहता है चाहे वह कोई बच्चा हो जो कागज़ की नाव बनाकर पानी में दौड़ा रहा हो, या वह बुजुर्ग जो बालकनी में बैठकर अपनी जवानी की पहली बारिश को याद कर रहा हो।
बारिश की पहली बूंद, अक्सर किसी पहली मुस्कान, पहले प्रेम, या पहले बिछड़ाव की याद दिलाती है। किसी के लिए यह उस दिन की याद हो सकती है जब उसने पहली बार कॉलेज जाते हुए बारिश में भीगकर खुद को ज़िंदा महसूस किया था। किसी के लिए यह वो शाम थी जब पहली बार किसी का हाथ थामा और हर बूंद में एक कविता घुलती सी लगी।
और हाँ, बारिश सिर्फ प्रेम नहीं लाती, वह बिछड़ाव की स्मृति भी लाती है। किसी रेलवे स्टेशन पर छूटती ट्रेन के साथ जब दो आँखें नम हुई थीं, या जब किसी ने बिना कुछ कहे अलविदा कह दिया था बारिश की बूंदें उन्हें हर साल एक बार फिर जीवित कर देती हैं।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में पहली बारिश सिर्फ मौसम परिवर्तन नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की पहली सीढ़ी है। किसानों की निगाहें आसमान की ओर लगी होती हैं। जैसे ही पहली बूंद गिरती है, खेतों में हल चलने लगते हैं, बीज बोए जाते हैं, उम्मीदें उगाई जाती हैं।
स्कूलों के बच्चे नई कॉपियां लिए पहले दिन स्कूल जाते हैं और अगर वह दिन बरसात का हो, तो वह दिन हमेशा के लिए याद रह जाता है। नालियों में बहती नावें, छत पर नाचते पंख, खिड़की से आती सोंधी गंध यह सब मिलकर एक सांस्कृतिक अनुभव बनाते हैं।
पहली बारिश केवल जल नहीं, वह प्रकृति की कविता है। बादल जब गरजते हैं तो लगता है कोई वाद्ययंत्र बज रहा है। बिजली की चमक जैसे कल्पनाओं का मंच है और बारिश की हर बूँद एक स्वर है जो पृथ्वी के अधरों पर नृत्य करती है।
कवियों ने इसे प्रेम की तरह देखा, चित्रकारों ने इसे रंगों की तरह, और दार्शनिकों ने इसे जीवन की पुनरावृत्ति की तरह। यह वह क्षण होता है जब पूरी सृष्टि "शुरू" होती है, जैसे हर बार की पहली बारिश नई ज़िंदगी की घोषणा करती हो।
बारिश की पहली बूंद हमारे मन में एक खास किस्म की हलचल पैदा करती है। वह बीते समय की याद दिलाती है, लेकिन भविष्य के प्रति आशावान भी बनाती है। उदासी भी देती है और सुकून भी। यह विरोधाभास ही उसे इतना विशेष बनाता है।
वो स्त्री जो रोज़ाना की थकान में डूबी हुई थी, पहली बारिश की बूँदों को देखकर मुस्कुरा उठती है। वो मजदूर जो दिनभर पसीने में भीगता रहा, पहली बारिश को अपने जीवन की शांति मान लेता है। वो कवि जो सूखे शब्दों में अर्थ खोज रहा था, पहली बूँद पाकर झरने-सा बहने लगता है।
"बारिश की पहली बूंद" प्रकृति का सबसे सहज और सबसे गहरा स्पर्श है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है, हमारी आत्मा को ताजगी देती है और हमारे जीवन को फिर से संजीवनी देती है। वह बूँद जो हमारे चेहरे पर गिरती है, वह दरअसल हमारे हृदय को भी भिगो देती है धीरे-धीरे, पूरी तरह।
यह बूंद हमें सिखाती है कि चाहे जीवन कितना भी सूखा और कठोर क्यों न हो, एक छोटी-सी उम्मीद, एक मामूली स्पर्श, और एक नम क्षण सब कुछ बदल सकता है।
"पहली बारिश की बूँद जब गिरती है, तो धरती ही नहीं, इंसान भी खिल उठता है जैसे कोई पुराना गीत फिर से सुनाई देने लगा हो, जैसे कोई भूली स्मृति फिर से जीवित हो गई हो।"