# हिंदू धर्म में ज्ञान-धर्म की धुरी कहे जाने वाले प्रमुख गुरु कौन-कौन हैं?

विनोद कुमार झा

हिंदू धर्म में ज्ञान, धर्म और आत्मबोध की खोज के लिए कई महान गुरुओं की जीवन यात्राएँ उल्लेखनीय रही हैं। कुछ गुरु ऐसे माने जाते हैं जिन्हें "ज्ञान धर्म की धूरी " या कहें तो "ज्ञान और धर्म की धुरी" (अर्थात् धर्म की धुरी को संभालने वाले) कहा जाता है  ये वो हैं जिन्होंने न केवल अपने जीवन में उच्चतम ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि समाज को दिशा भी दी। नीचे ऐसे ही  महान गुरुओं की सूची दी जा रही है, जिन्हें हिंदू धर्म में आध्यात्मिक प्रकाशस्तंभ माना गया वह इस प्रकार है :-

1. महर्षि वेदव्यास : वेदों का संकलन, महाभारत और 18 पुराणों की रचना की  उन्हें "ज्ञान-संस्कृति के स्तंभ" कहा जाता है।

 2. जगतगुरु शंकराचार्य : अद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक,  ज्ञान को सरल बनाया और सनातन धर्म को पुनर्जीवित किया।

3. महर्षि वशिष्ठ , प्रभु श्रीराम के कुलगुरु, ब्रह्मज्ञान के मार्गदर्शक थे।  उन्होंने योगवशिष्ठ ग्रंथ में अद्वैत ज्ञान का किया विस्तार।

4. महर्षि विश्वामित्र : गायत्री मंत्र के ऋषि, राजर्षि से ब्रह्मर्षि तक की यात्रा,  तप से सिद्धि और धर्म का अद्भुत समन्वय।

5. महर्षि अंगिरा: ज्ञात इतिहास के अनुसार प्रारंभ में दो तरह की विचारधारा के अनुसार गुरुपद पर दो ऋषि प्रमुख थे, उनमें से एक अंगिरा थे।

6. महर्षि भृगु: अंगिरा के साथ-साथ भृगु ऋषि भी महानगुरुओं में से एक थे।

7. महर्षि अगस्त्य: इनका भी उल्लेख महान गुरुओं में किया जाता है।

8. गुरु बृहस्पति: देवताओं के गुरु माने जाते हैं। इन्होंने अपने ज्ञान, बल और मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की।

9. शुक्राचार्य: दानवों के गुरु माने जाते हैं। इन्होंने शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की।

10. गुरु द्रोणाचार्य: महाभारत काल के महान धनुर्धर और योद्धाओं के गुरु थे, जिन्होंने कौरवों और पांडवों को शिक्षा दी।

11. परशुराम: इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और ये एक महान योद्धा और गुरु थे।

12. महर्षि वाल्मीकि: इन्होंने संस्कृत के महाकाव्य रामायण की रचना की।

13. महर्षि भारद्वाज: इनका नाम भी हिंदू धर्म के प्रमुख गुरुओं में शामिल है।

14 . महर्षि पतंजलि योगसूत्रों के रचयिता उन्होंने योग को वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में स्थापित किया।

 15. महर्षि याज्ञवल्क्य , बृहदारण्यक उपनिषद के ज्ञाता : पत्नी मैत्रेयी से ब्रह्मज्ञान पर संवाद प्रसिद्ध।

 16. दत्तात्रेय , अवधूत संप्रदाय के आदिगुरु उन्होंने 24 गुरु माने – जीवन के हर तत्व से ज्ञान लेना सिखाया।

 17. ऋषि कपिल, सांख्य दर्शन के प्रवर्तक : प्रकृति और पुरुष की वैज्ञानिक विवेचना।

 18 . महर्षि गौतम , न्याय दर्शन के रचयिता : तर्क और विवेक से धर्म का विश्लेषण।

 19. महर्षि कणाद, वैशेषिक दर्शन के संस्थापक , परमाणु सिद्धांत के ज्ञाता।

20. महर्षि जैमिनि पूर्व मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक,  वैदिक कर्मकांड की महत्वता पर जोर।

 21. ऋषि नारद भक्ति योग के प्रमुख प्रचारक, नारद भक्ति सूत्र में प्रेम और भक्ति को सर्वोच्च कहा।

 22. गुरु वल्लभाचार्य पुष्टिमार्ग के संस्थापक, श्रीकृष्ण के लीलात्मक रूप की भक्ति का प्रचार।

23 . गुरु रामानुजाचार्य विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रवर्तक  भक्ति और ज्ञान का संतुलन।

 24 . गुरु माध्वाचार्य द्वैत वेदांत के संस्थापक, ईश्वर और आत्मा की भिन्नता पर बल।

25 . गुरु चैतन्य महाप्रभु हरिनाम संकीर्तन के प्रचारक, प्रेम और कृष्णभक्ति का महासागर।

 26. गुरु रामदास शिवाजी के गुरु, समर्पण और सेवा भाव के प्रेरक  उन्होंने मराठा समाज को आध्यात्मिक दृष्टि दी।

 27. संत तुकाराम भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ उन्होंने  समाज में भक्ति को लोकभाषा में पहुँचाया।

28 . संत कबीरदास ज्ञान और भक्ति का समन्वय, वेदांत, इस्लाम और जीवन सत्य को सीधे शब्दों में प्रस्तुत किया।

 29. संत ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरी गीता के रचयिता, मराठी में गीता का ज्ञान देकर समाज को दिशा दी।

इन सभी गुरुओं ने न केवल धर्म को एक गूढ़ विषय से जन-जन की समझ में लाने योग्य बनाया, बल्कि ज्ञान, भक्ति, योग और कर्म – इन सभी मार्गों को मानव जीवन के लिए प्रशस्त किया। इसलिए इन्हें "ज्ञान धर्म की धुरी" कहा जाता है  क्योंकि इन पर ही हिंदू धर्म की ज्ञान-परंपरा टिकी है।

महर्षि वशिष्ठ हिंदू धर्म के प्रमुख सप्तर्षियों में से एक थे। वे इक्ष्वाकु वंश के कई राजाओं के कुलगुरु रहे, जिनमें भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ भी शामिल थे। वशिष्ठ न केवल एक ज्ञानी ऋषि थे, बल्कि उन्होंने धर्म, नीति, योग और ब्रह्मज्ञान के क्षेत्र में भी अमूल्य योगदान दिया। उन्हें ज्ञान धर्म की धुरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने योग, तप, शांति और ब्रह्मविचार के माध्यम से धर्म की नींव को समाज में दृढ़ किया।

योगवशिष्ठ का रचयिता (वशिष्ठ गीता) : महर्षि वशिष्ठ द्वारा श्रीराम को उपदेश स्वरूप दिया गया ग्रंथ "योगवशिष्ठ" आद्वैत वेदांत और आत्मज्ञान का अद्भुत संगम है। इसमें जीवन, मृत्यु, माया, आत्मा और मोक्ष के गूढ़ रहस्य बताए गए हैं

“मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः”

 (मनुष्य के बंधन और मुक्ति का कारण केवल उसका मन है)

उन्होंने राजा दशरथ को पुत्रेष्टि यज्ञ की सलाह दी, जिससे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। बाद में वे श्रीराम के आध्यात्मिक गुरु बने और उन्हें धर्म का मर्म सिखाया।

वशिष्ठ को ब्रह्मर्षि की उपाधि मिली, जो केवल उन ऋषियों को दी जाती है जिन्होंने ब्रह्मज्ञान को पूर्ण रूप से आत्मसात किया हो। वे सप्तर्षियों में भी प्रमुख हैं, जो सृष्टि और धर्म की धुरी माने जाते हैं। उनके पास कामधेनु नाम की चमत्कारी गाय थी, जिससे कोई भी वस्तु प्राप्त की जा सकती थी। राजा विश्वामित्र ने जब बलपूर्वक कामधेनु को छीनने की कोशिश की, तब वशिष्ठ ने केवल ब्रह्मतेज से उसे पराजित कर दिया। इस घटना से “ब्रह्मतेज बलतेज से श्रेष्ठ है” का सिद्धांत स्थापित हुआ।

वशिष्ठ ने गृहस्थ जीवन को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग बताया। वे स्वयं अर्जुन की पूर्वजन्म की पत्नी अरुंधती के पति थे और दोनों की जोड़ी भारतीय विवाह संस्कारों में "वशिष्ठ-अरुंधती दर्शन" के रूप में स्मरणीय मानी जाती है।

महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र के बीच गहरी आध्यात्मिक प्रतिस्पर्धा थी। विश्वामित्र पहले एक राजर्षि थे और कामधेनु को पाने के लिए वशिष्ठ से संघर्ष किया, लेकिन पराजय के बाद आत्मज्ञान के मार्ग पर चलकर अंततः ब्रह्मर्षि बने। वशिष्ठ ने उन्हें यह उपाधि दी – इससे यह स्पष्ट होता है कि वशिष्ठ में क्षमाशीलता, गहराई और परिपक्वताथी।

महर्षि वशिष्ठ केवल एक ऋषि नहीं थे, वे ज्ञान के महासागर थे। वे उस ब्रह्मशक्ति के वाहक थे जो वेदों, उपनिषदों और महाकाव्यों में प्रवाहित होती रही। उन्होंने धर्म को कर्मकांड से ऊपर उठाकर ब्रह्मज्ञान, विवेक और योग के साथ जोड़ा।इसलिए उन्हें सही मायनों में “ज्ञान धर्म की धुरी” कहा गया  वे न केवल स्वयं ज्ञानी थे, बल्कि संपूर्ण समाज को धर्म की दिशा दिखाने वाले मार्गदर्शक भी।







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