ईश्वर कभी दूर नहीं होते ?

विनोद कुमार झा

संसार में मनुष्य जब-जब दुख, संकट, या अकेलेपन से जूझता है, तब वह अक्सर यह सोचने लगता है कि ईश्वर उसे भूल गए हैं। परंतु वास्तव में ईश्वर कभी दूर नहीं होते। वे तो हमारे भीतर, हमारे सांसों में, हमारे कर्मों में और हमारे अंतरात्मा की हर धड़कन में समाए रहते हैं। जब जीवन की गति थमने लगती है, जब आशाएं चूर होने लगती हैं, तब एक अदृश्य शक्ति हमारे कंधे पर हाथ रखती है और कहती है "मैं हूँ, मेरे बच्चे, तुम अकेले नहीं हो।" यह लेख उसी भाव को उजागर करता है कि किस प्रकार ईश्वर सदा हमारे समीप रहते हैं, भले ही हम उन्हें देख न पाएं।

वेदों, उपनिषदों और भगवद्गीता में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि  ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। (भगवद्गीता 18.61) अर्थात् ईश्वर सब प्राणियों के हृदय में स्थित हैं।

जब अर्जुन युद्ध के मैदान में भ्रमित हुआ, तब श्रीकृष्ण ने यह रहस्य उजागर किया कि परमात्मा न तो कहीं बाहर हैं, न किसी मूर्ति में सीमित, बल्कि वे अंतर्यामी हैं। वे हमारे मन, बुद्धि और आत्मा में वास करते हैं।

प्रचलित कथा : गांव के एक कोने में एक वृद्धा अकेले रहती थी। उसका एक ही बेटा था जो शहर में नौकरी करता था। कई महीनों से कोई चिट्ठी, कोई खबर नहीं मिली थी। एक दिन वह मंदिर गई और ईश्वर से बोली –"हे प्रभु! सब कहते हैं आप सदा साथ रहते हैं, परंतु मुझे तो आप बहुत दूर लगते हैं।"

पुजारी ने मुस्कुराते हुए एक दीपक उसके हाथ में रखा और कहा,"इस दीपक को घर ले जाकर जलाए रखना। जब यह बुझ जाए, तब समझना कि ईश्वर दूर चले गए।" वृद्धा दीपक लेकर चली गई। आश्चर्य की बात यह थी कि वह दीपक कभी बुझा नहीं। बारिश, आँधी, अकेलापन – सब कुछ आया, पर दीपक जलता रहा। तब उसे समझ में आया – ईश्वर उस दीपक की लौ के समान हैं – दिखते नहीं, पर उजाला सदा करते हैं।

आधुनिक विज्ञान भी यह मानने लगा है कि एक "सर्वव्यापक ऊर्जा" है जो ब्रह्मांड को गति दे रही है। वैज्ञानिक उसे 'कॉस्मिक एनर्जी', 'डार्क मैटर', या 'यूनिवर्सल फोर्स' कहते हैं, पर संत उसे "परमात्मा" कहते आए हैं। यह वही ऊर्जा है जो वृक्षों में पत्तियाँ उगाती है, पक्षियों को दिशा देती है,  हृदय को धड़कन देती है, माँ को ममता देती है। यह ऊर्जा, यह परम सत्ता, सदा हमारे निकट होती है हमारे स्पंदन में, हमारी श्वासों में।

ईश्वर हर समय चमत्कार नहीं करते। वे कभी-कभी हमें हमारे ही कर्मों का फल भोगने देते हैं ताकि हम सीख सकें, समझ सकें और आत्मोन्नति कर सकें। वे मौन रहते हैं  जैसे एक शिक्षक परीक्षा के समय चुप रहता है पर उनकी उपस्थिति हर क्षण होती है।

जब जीवन में संकट आता है और सब मार्ग बंद हो जाते हैं, तब अचानक कोई अजनबी मदद करता है, कोई विचार समाधान देता है, या कोई आत्मबल जाग उठता है यही ईश्वर की उपस्थिति है। वे अदृश्य रहकर भी हमारे हर दुख को सुनते हैं, हर आंसू को गिनते हैं।

वे बस प्रतीक्षा करते हैं कि हम उन्हें पुकारें, उन्हें स्वीकारें, और उन्हें अपने हृदय का आसन दें।जब हम श्रद्धा, प्रेम, और समर्पण से पुकारते हैं, तो ईश्वर हमें गले लगा लेते हैं – उसी तरह जैसे माता अपने रोते हुए बालक को सीने से लगा लेती है।


**ईश्वर को देखने की आवश्यकता नहीं, उन्हें महसूस करने की क्षमता चाहिए।**

और जब यह अनुभूति होती है, तब हम जान जाते हैं—**ईश्वर सदा हमारे साथ हैं, वे कभी दूर नहीं होते।**


Post a Comment

Previous Post Next Post