विनोद कुमार झा
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता को हनुमान जी के आदर्शों से जोड़ा, एक गहन और प्रतीकात्मक दृष्टिकोण को उजागर करता है। यह दृष्टिकोण केवल सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें हमारी सांस्कृतिक चेतना, नैतिकता और धर्मनीति का समावेश भी है। भारत ने 7 मई की रात जिस साहस और रणनीतिक दक्षता के साथ पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, उसने यह साबित कर दिया कि देश अब सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं करता, बल्कि नियोजित और सटीक प्रतिरोध की नीति पर चल रहा है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के नौ ठिकानों पर हुई मिसाइल और ड्रोन स्ट्राइक न केवल सैन्य उपलब्धि थी, बल्कि इसमें नैतिकता और मानवीय संवेदना का भी ख्याल रखा गया।
रक्षा मंत्री ने रामायण के प्रसंग को उदाहरण स्वरूप रखते हुए बताया कि जैसे अशोक वाटिका में हनुमान जी ने केवल दुष्टों और राक्षसों को दंडित किया, निर्दोषों को नहीं, उसी प्रकार भारतीय सशस्त्र बलों ने आतंकवाद के अड्डों को ही लक्ष्य बनाया, जिससे कोई निर्दोष नागरिक या धार्मिक स्थल प्रभावित न हो। यह दृष्टिकोण आधुनिक युद्धनीति में एक अद्वितीय आदर्श प्रस्तुत करता है। जब विश्व के कई देशों पर युद्ध के दौरान नागरिक हानि और सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगते हैं, भारत ने संवेदनशीलता और न्याय का उदाहरण पेश किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए रक्षा मंत्री ने इस ऑपरेशन को ‘साहसिक कदम’ बताया। यह साहस केवल सैन्य नहीं, बल्कि कूटनीतिक भी है। भारत ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि उसके स्रोत तक जाएगी। साथ ही यह भी कि यदि कोई देश हमारे नागरिकों पर हमला करता है, तो उसे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।
लेकिन इस सफलता के पीछे केवल सैन्य रणनीति नहीं है; यह एक सांस्कृतिक चेतना का भी प्रतिबिंब है। जब कोई राष्ट्र अपनी रक्षा नीति को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के साथ जोड़ता है, तब उसमें एक अलग आत्मबल और नैतिक आधार जुड़ जाता है। राजनाथ सिंह का बयान दर्शाता है कि भारत की सैन्य कार्रवाई केवल प्रतिशोध नहीं, बल्कि न्याय और धर्म के मार्ग पर आधारित है।
बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) के 50 नए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के उद्घाटन के अवसर पर दिया गया यह बयान यह भी इंगित करता है कि भारत न केवल रक्षा में, बल्कि विकास में भी अग्रसर है। जब सीमाओं पर मजबूत आधारभूत ढांचा खड़ा किया जाता है, तो उससे सुरक्षा, आर्थिक प्रगति और रणनीतिक बढ़त तीनों सुनिश्चित होती हैं।
इस ऑपरेशन के माध्यम से भारत ने न केवल आतंक के ठिकानों को ध्वस्त किया, बल्कि विश्व को एक नैतिक संदेश भी दिया कि युद्ध के मैदान में भी नीति और धर्म का पालन किया जा सकता है। यह संदेश आतंक के समर्थकों और मानवाधिकारों की दुहाई देने वालों, दोनों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
आखिर में, ऑपरेशन सिंदूर भारत के उस आत्मविश्वास का प्रमाण है, जो अब न केवल सीमाओं की रक्षा करता है, बल्कि नैतिकता की भी रक्षा करता है। यह ऑपरेशन हमें सिखाता है कि शक्ति और नीति, दोनों का संतुलन ही सच्चे राष्ट्रधर्म की पहचान है।