विनोद कुमार झा
भारत की पुण्यभूमि पर असंख्य तीर्थ, मंदिर और देवस्थल हैं, किंतु दक्षिण भारत के वेंकटाचल पर्वत पर स्थित तिरुपति बालाजी का स्थान सर्वोपरि है। विश्व का सबसे समृद्ध मंदिर, जहाँ स्वर्ण, रत्न और रुपयों का अथाह समुद्र लहराता है, किंतु इसके पीछे की कथा, भाव और त्याग का इतिहास इससे भी अनमोल है।यह वह स्थान है जहाँ साक्षात विष्णु भगवान, वेंकटेश्वर बालाजी के रूप में विराजमान हैं एक ऐसा देवालय जहाँ केवल दौलत नहीं, अपितु श्रद्धा, प्रेम और भक्तिरस की वर्षा होती है।
कथा : लक्ष्मी नारायण का मिलन और विछोह
कहते हैं, समुद्र मंथन से उत्पन्न लक्ष्मीजी ने श्रीहरि विष्णु को अपने वर रूप में चुना। विवाहोपरांत जब देवी लक्ष्मी ने श्रीहरि से पूछा कि उनका स्थान कहाँ होगा, उन्होंने कहा “मेरे वक्षस्थल में।” लक्ष्मीजी ने प्रश्न किया “प्रभु! सभी पत्नियाँ अपने पति के हृदय में स्थान पाती हैं, परंतु आपने मुझे वक्षस्थल में स्थान क्यों दिया?” श्रीहरि मुस्कुराए “देवि! मेरे हृदय में शिव का निवास है, अतः तुम्हें वक्षस्थल में स्थान दिया है।” यह उत्तर सुन लक्ष्मीजी पुलकित हो उठीं।
समय बीता। एक बार सप्तर्षियों ने यज्ञ किया और उसके पुण्य का अधिकारी निर्धारित करने के लिए महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा लेने भेजा। ब्रह्मा, शंकर को परखने के बाद भृगु जब विष्णु के पास पहुँचे, तो उन्होंने उनके वक्ष पर पादप्रहार कर दिया। विष्णु भगवान ने क्रोध न करके उनके पैर पकड़ लिए और कहा “ऋषिवर! आपके पाँव को कोई चोट तो नहीं लगी?” इस विनम्रता से ऋषि मुग्ध हो गए, परंतु लक्ष्मीजी अपमानित हुईं। वह वक्षस्थल उनका निवास था, वहाँ पाँव कैसे पड़ा? रुष्ट होकर लक्ष्मीजी वैकुंठ त्यागकर पृथ्वी पर चली आईं और पद्मावती के रूप में जन्मीं।
धरती पर विष्णु का अवतरण: श्रीनिवास की कथा
इधर विष्णुजी लक्ष्मीजी के वियोग में व्याकुल होकर धरती पर श्रीनिवास के रूप में प्रकट हुए। वेंकटाचल पर्वत के बकुलामाई आश्रम में वे पले-बढ़े। एक दिन जंगल में एक मदमस्त हाथी के पीछे दौड़ते हुए वे पद्मावती के उपवन में पहुँचे, जहाँ राजकुमारी से भेंट हुई। पहली दृष्टि में ही दोनों के हृदय मिल गए।
राजा आकाशराज की पुत्री पद्मावती से विवाह आसान नहीं था। श्रीनिवास ने ज्योतिषी का रूप धर राजा को भविष्यवाणी की कि उनकी पुत्री का विवाह उसी युवक से होगा, जिसे उसने जंगल में देखा। बकुलामाई ने विवाह प्रस्ताव रखा, जिसे राजपुरोहित ने देखकर कहा “यह युवक स्वयं श्रीहरि विष्णु के समान है।”
कुबेर से लिया गया ऋण: विवाह का रहस्य
श्रीनिवास निर्धन थे। भव्य विवाह के लिए उन्होंने वराहस्वामी के मार्गदर्शन में कुबेर से ऋण माँगा। कुबेर ने ऋण दिया, शर्त यह कि कलियुग के अंत तक ब्याज चुकाना होगा। विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ, परंतु सुख की घड़ी अल्पकालिक थी।
लक्ष्मी-पद्मावती का संघर्ष और पत्थर की प्रतिमा
नारदजी ने लक्ष्मीजी को सूचना दी कि विष्णु ने पद्मावती से विवाह कर लिया है। रुष्ट लक्ष्मीजी वेंकटाचल पहुँचीं, पद्मावती से वाद-विवाद हुआ। इस कलह से व्यथित श्रीनिवास ने स्वयं को पत्थर की मूर्ति में बदल लिया। विलाप करती दोनों देवियाँ उनके समक्ष नतमस्तक हुईं, परंतु श्रीनिवास बोले — “मुझे यहाँ तब तक रहना होगा जब तक कुबेर का ऋण न चुका दूँ। मेरे भक्तों का चढ़ावा उस ऋण का ब्याज चुकाता रहेगा।” लक्ष्मीजी कोल्हापुर में, पद्मावती तिरुनाचुर में प्रतिष्ठित हुईं।
यही कारण है कि तिरुपति बालाजी मंदिर में भक्तजन निरंतर दान देते हैं, ताकि श्रीवेंकटेश्वर कुबेर का ऋण चुका सकें। आज यह मंदिर न केवल श्रद्धा, बल्कि संपदा का भी विश्वविजयी केंद्र है जिसकी संपत्ति 50,000 करोड़ से भी अधिक आँकी जाती है।
आस्था की भूमि: तिरुपति बालाजी के रोचक तथ्य
तिरुपति नगर तिरुमला पहाड़ियों पर स्थित है, जिसकी सात चोटियाँ शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरुडाद्रि, अंजनाद्रि, ऋषभाद्रि, नारायणाद्रि, वेंकटाद्रि शेषनाग के प्रतीक मानी जाती हैं।
* मंदिर के गर्भगृह में भगवान की मूर्ति मध्य में है, किंतु बाहर से देखने पर दाईं ओर प्रतीत होती है।
* गर्भगृह में चढ़ाई गई कोई वस्तु बाहर नहीं लाई जाती; वह पीछे स्थित जलकुंड में विसर्जित होती है, जिससे जल २० किमी दूर वेरपेडु में निकलता है।
* भगवान के बाल रेशमी, ताजे रहते हैं और कभी उलझते नहीं।
* हर गुरुवार को भगवान के वक्ष पर चंदन सजाया जाता है, जिसे हटाने पर लक्ष्मीजी की आकृति उभर आती है यह चंदन अत्यधिक मूल्य पर भक्तों को मिलता है।
* मंदिर में दीपक सहस्त्रों वर्षों से अनवरत जल रहे हैं; यह रहस्य बना हुआ है कि इन्हें कौन प्रज्वलित रखता है।
* लड्डू प्रसाद, जो विश्व प्रसिद्ध है, 1715 से वितरित हो रहा है, और प्रतिदिन तीन लाख से अधिक लड्डू बनाए जाते हैं।
* औसतन प्रतिदिन १ करोड़ रुपये से अधिक का दान यहाँ आता है।
तिरुपति बालाजी केवल एक मंदिर नहीं, यह श्रद्धा, प्रेम, त्याग और प्रतीक्षा का प्रतीक है। यहाँ हर भक्त अपने दिल का बोझ उतार कर लौटता है, और बालाजी अपने अनंत धैर्य से सबका भार उठाते रहते हैं। चाहे कुबेर का ऋण चुकाना हो या भक्तों का बालाजी सबके ऋणी हैं, और यही उन्हें विशेष बनाता है।