टैरिफ विवाद: व्यापार संतुलन या शक्ति प्रदर्शन?

 विनोद कुमार झा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हालिया टिप्पणी कि भारत ऑटो सेक्टर में 100 प्रतिशत से अधिक टैरिफ लगाता है, एक बार फिर से वैश्विक व्यापार संतुलन को लेकर बहस छेड़ रही है। हालांकि, भारत सरकार पहले ही लग्जरी कारों पर टैरिफ को 125 प्रतिशत से घटाकर 70 प्रतिशत और हाई-एंड मोटरसाइकिलों पर 50 प्रतिशत से घटाकर 40 प्रतिशत कर चुकी है, फिर भी अमेरिका द्वारा इस मुद्दे को उछालना दर्शाता है कि व्यापारिक संतुलन की यह बहस केवल आर्थिक नीतियों तक सीमित नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक रणनीति का भी हिस्सा है। 

डोनाल्ड ट्रंप ने 'रेसिप्रोकल टैरिफ' यानी पारस्परिक टैरिफ की नीति लागू करने की घोषणा की है, जिसके तहत अमेरिका उन देशों पर वही टैरिफ लगाएगा, जो वे अमेरिकी उत्पादों पर लगाते हैं। यह नीति वैश्विक व्यापार में एक नई प्रतिस्पर्धा को जन्म दे सकती है, जहां हर देश अपने उद्योगों की रक्षा के नाम पर दूसरों पर ऊंचे टैरिफ लगाने की प्रवृत्ति अपनाएगा। इस कदम से अमेरिका और अन्य देशों के बीच व्यापारिक तनाव और बढ़ सकता है, विशेष रूप से उन देशों के साथ जिनके पास अमेरिका जैसा विशाल उपभोक्ता बाजार नहीं है।  

भारत ने हाल के बजट में ऑटो सेक्टर के टैरिफ को कम करके व्यापार संतुलन की दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस निर्णय से स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत व्यापारिक संबंधों में लचीलापन अपनाना चाहता है और टैरिफ के माध्यम से वैश्विक निवेश आकर्षित करने की रणनीति में बदलाव कर रहा है। वहीं, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का वाशिंगटन दौरा इस मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच बेहतर संवाद स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल हो सकती है।  

ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि अमेरिका पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ को बराबरी पर लाने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह रणनीति अमेरिका के लिए दीर्घकालिक रूप से लाभदायक होगी? इतिहास गवाह है कि अत्यधिक संरक्षणवादी नीतियां अंततः उपभोक्ताओं के लिए ही नुकसानदेह साबित होती हैं, क्योंकि इससे आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं और बाजार में प्रतिस्पर्धा घट जाती है। चीन, यूरोप और अन्य देशों के साथ पहले से जारी टैरिफ विवादों ने अमेरिकी बाजार में अनिश्चितता बढ़ाई है, और अब अगर भारत के साथ भी यह विवाद बढ़ता है, तो इससे अमेरिका के व्यापारिक हितों को ही झटका लग सकता है। 

टैरिफ विवाद केवल व्यापारिक नीति का मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन की लड़ाई भी है। भारत और अमेरिका दोनों को अपने व्यापारिक संबंधों को सौहार्दपूर्ण और पारस्परिक लाभकारी बनाने की दिशा में प्रयास करना होगा। भारत के लिए आवश्यक है कि वह अपनी उत्पादन क्षमता और निर्यात बढ़ाकर वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करे, जबकि अमेरिका को यह समझना होगा कि कठोर टैरिफ नीतियां केवल अस्थायी समाधान हैं।  

आर्थिक कूटनीति की यह रस्साकशी लंबे समय तक जारी रह सकती है, लेकिन अंततः किसी भी देश के लिए सबसे बड़ी जीत वही होगी जो संतुलन और सहयोग की राह अपनाएगा।

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