आखिर क्यों कहा गया भगवान विष्णु के वामन अवतार को चमत्कारिक अवतरण?

विनोद kumar झा

"अहंकार और शक्ति का त्याग कर विनम्रता और धर्म को अपनाना ही सच्ची विजय है।"

विष्णु पुराण में वर्णित कथा के अनुसार प्राचीन काल में असुरों के राजा बलि ने अपनी शक्ति और तप के बल पर देवताओं को परास्त कर स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता भयभीत होकर भगवान विष्णु की शरण में गए। देवताओं की रक्षा और धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करने का निर्णय लिया।  

राजा बलि के यज्ञ में वामन रूप में भगवान विष्णु पहुंचे। वामन, एक छोटे ब्राह्मण के रूप में थे, जिनका तेज दिव्य था। असुरों के गुरु शुक्राचार्य ने वामन भगवान को पहचान लिया और राजा बलि को चेतावनी दी कि वामन कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि स्वयं विष्णु हैं, जो सब कुछ छीनने आए हैं। परंतु राजा बलि, दानशीलता और अपनी प्रतिज्ञा के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने शुक्राचार्य की चेतावनी को अनसुना कर दिया।  

जब वामन ने तीन पग भूमि का दान मांगा, तो बलि ने संकल्प लिया। शुक्राचार्य ने कमंडल का मार्ग रोककर दान प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की, लेकिन वामन भगवान ने कुशा के तिनके से उनका मार्ग खोल दिया, जिससे उनकी एक आंख फूट गई।  

इसके बाद वामन भगवान ने अपना विराट रूप प्रकट किया। पहले पग से उन्होंने पूरी पृथ्वी, दूसरे पग से आकाश को नाप लिया। तीसरे पग के लिए कोई स्थान न देखकर राजा बलि ने अपना सिर भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया।  

इस घटना से देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति मिली और धर्म की पुनः स्थापना हुई। राजा बलि के इस अद्वितीय दान के कारण भगवान विष्णु ने उन्हें पाताललोक का राजा बनाया और वरदान दिया कि वे हमेशा भगवान की कृपा में रहेंगे।  


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