विनोद kumar झा
रामायण में प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण के जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग ऐसे हैं, जो हमें धर्म, मर्यादा और न्याय का पाठ पढ़ाते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण प्रसंग है जब प्रभु श्रीराम ने लक्ष्मण को लंका युद्ध के दौरान रावण के पुत्र मेघनाद पर ब्रह्मास्त्र चलाने से रोक दिया था। यह घटना रामायण के युद्धकांड से जुड़ी है और इसके पीछे गहरे नैतिक और आध्यात्मिक कारण थे।
मेघनाद, जिसे इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता है, रावण का पुत्र और एक पराक्रमी योद्धा था। वह देवताओं को भी परास्त करने की क्षमता रखता था और अपने तप तथा शक्ति के कारण उसे अमरता का वरदान प्राप्त था। जब मेघनाद ने अपने मायावी शक्ति से युद्ध में संकट खड़ा कर दिया, तब लक्ष्मण ने उसे पराजित करने का संकल्प लिया।
लक्ष्मण ने मेघनाद पर ब्रह्मास्त्र चलाने का विचार किया, जो सबसे विनाशकारी अस्त्र माना जाता है। यह अस्त्र युद्ध को तुरंत समाप्त कर सकता था। लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने ब्रह्मास्त्र का संधान किया, प्रभु श्रीराम ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
श्रीराम ने ऐसा क्यों किया?
धर्म और मर्यादा का पालन: श्रीराम हमेशा धर्म और मर्यादा का पालन करते थे। ब्रह्मास्त्र का उपयोग केवल अति आवश्यकता के समय और अत्यंत धर्मसंगत परिस्थिति में किया जाना चाहिए। मेघनाद को पराजित करने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग करना अनुचित होता, क्योंकि उसकी मृत्यु के लिए अन्य साधन उपलब्ध थे।
प्रकृति और विनाश का विचार: ब्रह्मास्त्र चलाने से केवल शत्रु का विनाश नहीं होता, बल्कि इसका प्रभाव व्यापक होता है। इसका उपयोग पृथ्वी, जल, वायु और समस्त जीवों के लिए घातक हो सकता था। श्रीराम नहीं चाहते थे कि युद्ध के कारण प्रकृति को अनावश्यक हानि पहुंचे।
लक्ष्मण की क्षमता पर विश्वास: श्रीराम को विश्वास था कि लक्ष्मण अपनी शक्ति, पराक्रम और बुद्धिमत्ता से मेघनाद को पराजित कर सकते हैं। उन्हें ब्रह्मास्त्र का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं थी।
न्यायपूर्ण युद्ध का सिद्धांत: श्रीराम ने हमेशा न्यायपूर्ण युद्ध का समर्थन किया। मेघनाद ने भी अपनी शक्ति से युद्ध लड़ा, और उसे परास्त करने के लिए समान अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग उचित था।
लक्ष्मण ने श्रीराम की बात मानकर ब्रह्मास्त्र का उपयोग नहीं किया। उन्होंने मेघनाद से एक धर्मपूर्ण युद्ध किया और अंततः उसे परास्त कर दिया। मेघनाद की मृत्यु ने युद्ध में लंका पक्ष को भारी क्षति पहुंचाई और यह राम की सेना के लिए बड़ी विजय साबित हुई।
इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शक्ति और संसाधनों का उपयोग सोच-समझकर और न्यायपूर्ण तरीके से करना चाहिए। अनावश्यक विनाश से बचना ही सच्चा धर्म है। श्रीराम का यह निर्णय उनकी महानता और मर्यादा पुरुषोत्तम होने का प्रमाण है।
ऐसे और भी ऐतिहासिक और धार्मिक प्रसंगों की जानकारी के लिए देखते रहिए हमारी विशेष प्रस्तुति। धन्यवाद!"