धर्म पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक बालक और वनस्पति की अनसुनी कहानियां हैं जो इस प्रकार है। बालक पिप्पलाद ने जब होश संभाला, तब उसने अपने जीवन में वनस्पतियों को ही अपने माता-पिता की तरह पाया। औषधियां उसे अमृत पिलाकर उसकी देखभाल करती थीं। यह देखकर पिप्पलाद ने वनस्पतियों से पूछा, "मैं वनस्पतियों का पुत्र होकर भी मनुष्य कैसे हूं?"
वनस्पतियों ने उत्तर दिया, "तुम्हारे पिता महर्षि दधीचि और माता गभस्तिनी थे। वे तुम्हें बहुत चाहते थे। गभस्तिनी ने तुम्हें जन्म देते समय अपना पेट चीर दिया और तुम्हें हमारी देखरेख में सौंपकर सती हो गईं। उनके जाने के बाद पूरा वन शोक में डूब गया।"
वनस्पतियों ने महर्षि दधीचि और गभस्तिनी की कथा सुनाई। दधीचि महान तपस्वी थे, और गभस्तिनी पतिव्रता और आदर्श स्त्री थीं। उनके आश्रम में देवता शरण लेते थे क्योंकि वह स्थान निरापद था। एक बार देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र उनके आश्रम में रखने की प्रार्थना की। दधीचि ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली, लेकिन गभस्तिनी ने इसे अनुचित बताया।
दैत्य, जो पहले से ही देवताओं से शत्रुता रखते थे, महर्षि से द्वेष करने लगे। अपने आश्रम की रक्षा के लिए महर्षि ने अस्त्र-शस्त्रों के तेज को पवित्र जल से अभिमंत्रित कर स्वयं पी लिया। इससे सभी अस्त्र-शस्त्र शक्तिहीन हो गए।
जब देवता लौटे, तो महर्षि ने उन्हें बताया कि अस्त्रों का तेज उन्होंने अपनी हड्डियों में समाहित कर लिया है। फिर उन्होंने योगबल से शरीर त्याग दिया, और देवताओं ने उनकी हड्डियों से दिव्य अस्त्र बनाए, जिनसे उन्हें दैत्यों पर विजय प्राप्त हुई।
गभस्तिनी ने जब अपने पति का बलिदान सुना, तो उन्होंने भी अपने पुत्र पिप्पलाद को पेट चीरकर वनस्पतियों के सुपुर्द कर दिया और स्वयं अग्नि में समा गईं।
पिप्पलाद का प्रतिशोध और शांति : अपने माता-पिता की कहानी सुनकर पिप्पलाद को गहरा दुख हुआ। उसने प्रतिशोध लेने का निश्चय किया और भगवान शिव से देवताओं के विनाश के लिए शक्ति मांगी। शिव ने उसे 'कृत्या' नामक शक्ति दी, जिसे उसने देवताओं पर आक्रमण करने का आदेश दिया।
देवता भयभीत होकर भगवान शिव की शरण में गए। शिव ने पिप्पलाद को समझाया, "तुम्हारे माता-पिता ने विश्व कल्याण के लिए अपना बलिदान दिया। प्रतिशोध उनकी शिक्षाओं के विपरीत है। तुम्हारा कर्तव्य उनके आदर्शों का पालन करना है।" पुत्र को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने प्रतिशोध की भावना छोड़ दी और भगवान शिव का उपदेश स्वीकार किया।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि प्रतिशोध न केवल विनाशकारी होता है, बल्कि हमें अपने कर्तव्यों से भटकाता भी है। दधीचि और गभस्तिनी का जीवन त्याग, समर्पण, और मानवता के प्रति प्रेम का प्रतीक है। उनके आदर्श हमें सिखाते हैं कि सच्चा बलिदान विश्व कल्याण के लिए होता है, न कि व्यक्तिगत हित के लिए।