सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ दुर्गा के पंचम रूप, स्कंदमाता की पूजा की जाती है। माँ स्कंदमाता को मोक्ष का द्वार खोलने वाली और परम सुखदायी देवी माना जाता है, जो अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। ऐसा विश्वास है कि इनकी कृपा से साधक के मन और मस्तिष्क में अपूर्व ज्ञान की उत्पत्ति होती है। उनकी चार भुजाएं हैं। दायीं ऊपर वाली भुजा में स्कंद (कार्तिकेय) को गोद में पकड़े हुए हैं, नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है।
बायीं तरफ ऊपर की भुजा वरदमुद्रा में है और नीचे वाली भुजा में भी कमल पुष्प है। इनका वर्ण शुभ्र है और वे कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें "पद्मासना" भी कहा जाता है। सिंह उनका वाहन है।
शास्त्रों के अनुसार, स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण उनके उपासक में अलौकिक तेज और कांति का विकास होता है। कहते हैं कि उनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाकवि कालिदास द्वारा रचित 'रघुवंशम' और 'मेघदूत' जैसी महान रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हो पाई थीं।
स्कंदमाता की कथा
प्राचीन देवासुर संग्राम में भगवान कार्तिकेय देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में उन्हें कुमार और शक्ति के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कंद की माता होने के कारण देवी दुर्गा के इस रूप को "स्कंदमाता" कहा जाता है।
माँ स्कंदमाता की पूजा विधि
माँ स्कंदमाता की पूजा के लिए सबसे पहले गंगाजल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। इसके बाद वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माँ स्कंदमाता सहित समस्त देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।
इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, पुष्पहार, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती और मंत्र पुष्पांजलि शामिल होती है। पूजा के अंत में प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।