आइए जानते हैं धनतेरस कथा और मां लक्ष्मी और धनवंतरी पूजा का महत्व के बारे में

धनतेरस, जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, दीपावली के पर्व का प्रारंभिक दिन माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से घर में समृद्धि और सुख-शांति आती है। इस पर्व के पीछे कई धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें लक्ष्मी और भगवान विष्णु की एक प्रसिद्ध कथा भी शामिल है। आइए जानते हैं:-

धनतेरस की प्राचीन कथा

प्रचलित कथा के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक (पृथ्वी) पर विचरण के लिए आने वाले थे। इस यात्रा में देवी लक्ष्मी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। विष्णु जी ने लक्ष्मी जी से कहा कि यदि वे उनकी बात मानेंगी, तो ही उनके साथ जा सकती हैं। लक्ष्मी जी ने सहर्ष सहमति दे दी और दोनों साथ में पृथ्वी पर आए। 

कुछ देर बाद भगवान विष्णु ने एक जगह पर रुककर लक्ष्मी जी से कहा कि वे कुछ समय के लिए दक्षिण दिशा में जा रहे हैं और उन्हें इस दिशा में जाने से मना किया। विष्णु जी के इस निर्देश से लक्ष्मी जी के मन में कौतुहल जाग उठा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है, जिसके लिए उन्हें मना किया गया है। लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया और जैसे ही विष्णु जी आगे बढ़े, वे भी चुपके से उनके पीछे-पीछे चल दीं।

दक्षिण दिशा में जाने पर लक्ष्मी जी को सरसों के खेत में पीले-पीले फूल दिखाई दिए, जिनकी सुंदरता ने उन्हें मंत्रमुग्ध कर दिया। सरसों के फूलों का आकर्षण देखकर लक्ष्मी जी ने कुछ फूल तोड़ लिए और अपने श्रृंगार के लिए उनका उपयोग किया। इसके बाद, उन्हें गन्ने के एक खेत से गन्ने तोड़कर उसका रस पीने का भी मोह हो गया।

उसी समय भगवान विष्णु ने उन्हें देख लिया। उन्होंने लक्ष्मी जी पर नाराज होकर कहा कि उनके निर्देशों का उल्लंघन कर उन्होंने किसान के खेत से फूल और गन्ने तोड़े हैं, जो कि चोरी का अपराध है। इस कारण विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को शाप दिया कि उन्हें इस किसान की 12 वर्षों तक सेवा करनी होगी। इसके बाद भगवान विष्णु लक्ष्मी जी को वहीं छोड़कर क्षीरसागर लौट गए।

 लक्ष्मी जी की सेवा से किसान का घर धन-धान्य से भरा

लक्ष्मी जी उस किसान के घर में रहने लगीं। एक दिन उन्होंने किसान की पत्नी से कहा कि अगर वह उनकी बनाई हुई लक्ष्मी प्रतिमा की पूजा करे और फिर रसोई बनाए, तो घर में किसी चीज़ की कमी नहीं रहेगी। किसान की पत्नी ने लक्ष्मी जी के बताए अनुसार पूजा की। इसका परिणाम यह हुआ कि अगले ही दिन से किसान के घर में अन्न, धन, स्वर्ण और अन्य समृद्धि की चीजें भरने लगीं। लक्ष्मी जी की कृपा से किसान का जीवन आनंदमय हो गया, और वह 12 वर्षों तक समृद्धि में रहा। 

 लक्ष्मी जी के जाने का समय और विशेष पूजा विधि

12 वर्षों के बाद, लक्ष्मी जी के सेवा का समय पूरा हो गया, और भगवान विष्णु उन्हें लेने आए। लेकिन किसान ने लक्ष्मी जी को जाने से इंकार कर दिया। भगवान विष्णु ने किसान को समझाया कि लक्ष्मी चंचला हैं और किसी के पास स्थायी रूप से नहीं ठहरतीं, परंतु किसान अपनी जिद पर अड़ा रहा।

तब लक्ष्मी जी ने किसान से कहा कि यदि वह उन्हें अपने घर में स्थायी रूप से रखना चाहता है, तो उसे एक विशेष पूजा करनी होगी। लक्ष्मी जी ने किसान को निर्देश दिया कि कार्तिक माह की त्रयोदशी तिथि (धनतेरस) के दिन अपने घर को साफ-सुथरा करके उसे सजाएं। शाम को घी का दीपक जलाकर लक्ष्मी जी की पूजा करें और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर उनके लिए रखें। उन्होंने कहा कि वे उस कलश में निवास करेंगी, और इस प्रकार वर्ष भर उनके घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहेगी। 

 धनतेरस का महत्त्व और परंपरा

अगले दिन किसान ने लक्ष्मी जी की बताई पूजा-विधि के अनुसार पूजा की। इसके परिणामस्वरूप उसका घर पुनः समृद्धि से भर गया। इस घटना के बाद से ही हर वर्ष त्रयोदशी तिथि को लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए घरों में दीप जलाने, घरों को सजाने और लक्ष्मी पूजन करने की परंपरा चल पड़ी। यह मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी जी अपने भक्तों के घरों में निवास करती हैं और सभी प्रकार की खुशहाली का आशीर्वाद देती हैं।

धनतेरस का यह पर्व न केवल समृद्धि के लिए, बल्कि श्रद्धा और आस्था के साथ देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि का पूजन करने के महत्व को भी दर्शाता है।

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