विनोद कुमार झा
नवरात्रि के शुभ अवसर पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा विधिपूर्वक की जाती है, जिनमें मां शैलपुत्री का स्वरूप सबसे पहला और महत्वपूर्ण माना जाता है। मां शैलपुत्री देवी दुर्गा का प्रथम रूप हैं और नवरात्रि के पहले दिन इनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
मां शैलपुत्री का नाम हिमालय की पुत्री होने के कारण पड़ा। संस्कृत में "शैल" का अर्थ पर्वत होता है, और "पुत्री" का अर्थ बेटी। इस प्रकार, शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। इनका वाहन वृषभ (बैल) है, जिस कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प धारण किए ये देवी शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। मां शैलपुत्री को "सती" के रूप में भी पूजा जाता है, क्योंकि पिछले जन्म में ये सती के रूप में थीं।
पौराणिक कथा: मां शैलपुत्री की कथा अत्यंत मार्मिक और प्रेरणादायक है। पौराणिक कथा के अनुसार, शैलपुत्री ही पिछले जन्म में सती थीं, जो भगवान शंकर की पत्नी थीं। सती, प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। एक बार, प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, परंतु भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया गया। सती इस अपमान से व्यथित होकर यज्ञ में गईं। वहां दक्ष ने भगवान शिव के प्रति अपमानजनक बातें कही, जिससे सती को बहुत क्लेश हुआ। वे अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकीं और योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर दिया।
भगवान शिव इस घटना से अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने क्रोध में आकर उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। सती ने अगले जन्म में पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और शैलपुत्री कहलाईं। इसी रूप में उन्होंने पुनः भगवान शिव से विवाह किया और उनके साथ कैलाश पर्वत पर निवास किया। इस प्रकार, शैलपुत्री देवी को पार्वती और हेमवती भी कहा जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से साधक को शांति, बल और स्थिरता प्राप्त होती है। ये देवी भक्ति और शक्ति का अद्वितीय संगम हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती हैं। मां शैलपुत्री की कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
पूजा विधि : मां शैलपुत्री की पूजा विधि नवरात्रि के दौरान विशेष होती है। पूजा में सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है, फिर मां शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष दीप जलाकर पूजा की जाती है। उनके चरणों में फूल, अक्षत, चंदन और प्रसाद अर्पित किया जाता है। इस दिन सफेद रंग का महत्व होता है, इसलिए पूजा में सफेद रंग के फूल और वस्त्रों का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
मां शैलपुत्री की स्तुति से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उनके आशीर्वाद से भक्तों को न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि कठिन परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति भी प्राप्त होती है।
मां की आराधना से लाभ ही लाभ
मां शैलपुत्री की पूजा से साधक की मनोवांछित इच्छाएं पूर्ण होती हैं। विशेष रूप से, जीवन के संघर्षों में विजय प्राप्त होती है और सभी प्रकार के दुख-दर्द का अंत होता है। मां की कृपा से भक्तों के सभी पाप नष्ट होते हैं और उन्हें आत्मशुद्धि प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री, नवरात्रि की प्रथम देवी, साधकों के लिए शक्ति, साहस और भक्ति का प्रतीक हैं। उनका पूजन करने से जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। नवरात्रि के इस पावन पर्व पर मां शैलपुत्री की आराधना कर हम सभी उनके दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमय बना सकते हैं।