ब्रह्माण्ड की अद्भुत रचना: ब्रह्माजी ने कैसे की सृष्टि की उत्पत्ति?

 ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का रहस्य

आदिपुरुष महादेव की आज्ञा पर, ब्रह्माजी ने जल में एक अण्डा स्थापित किया, जो धीरे-धीरे बढ़कर विशाल आकार धारण करने लगा। इसी अण्डे से ब्रह्माण्ड की रचना हुई। जैसे-जैसे अण्डा विकराल रूप धारण करने लगा, ब्रह्माजी को इसे स्थिर करने की चिंता सताने लगी। प्रभु ने ब्रह्माजी की चिंता को दूर करते हुए इसे शेषनाग के मस्तक पर स्थापित कर दिया। शेषनाग के मस्तक पर यह ब्रह्माण्ड सरसों के दाने जैसा दिखाई देने लगा, लेकिन गोल होने के कारण यह बार-बार अस्थिर हो जाता और इससे की गई रचना बार-बार नष्ट हो जाती। इस समस्या का समाधान पाने में असमर्थ ब्रह्माजी ने परमात्मा की स्तुति की, जिसके परिणामस्वरूप प्रभु विश्वकर्मा प्रकट हुए और ब्रह्माजी को ब्रह्माण्ड को स्थिर करने का उपाय बताया। तब आठ दिशाओं में करोड़ों हाथियों के बल से पृथ्वी को स्थिर कर दिया गया, जिससे ब्रह्माण्ड का संतुलन बना। 

लेकिन हाथियों की रसाकस्सी के कारण पृथ्वी कभी-कभी डांवाडोल हो जाती थी, जिससे ब्रह्माजी की चिंता अभी समाप्त नहीं हुई थी। इस नई समस्या को देखकर प्रभु ने पृथ्वी पर मेरू पर्वत रखवा दिया, जिससे पृथ्वी स्थिर हो गई। इसके बाद, ब्रह्माजी ने सृष्टि के निर्माण का कार्य आरम्भ किया।  

ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि का विभाजन

प्रभु विश्वकर्मा की आज्ञा से ब्रह्माजी ने ब्रह्माण्ड को चौदह खण्डों में बाँट दिया। इनमें सात खण्डों को 'पाताल' नाम दिया गया, जिनके नाम हैं: अतल, वितल, सुतल, महातल, तलातल, रसातल, और पाताल। वहीं, ऊपर के सात खण्डों को भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, और सत्यलोक कहा गया।

जीवसृष्टि की उत्पत्ति

ब्रह्माण्ड के स्थिर होने के बाद, ब्रह्माजी ने जीवसृष्टि की रचना शुरू की। उन्होंने पातालों में नाग, राक्षस, यक्ष, दानव, और पिशाच आदि का निवास तय किया। भूर्लोक में मनुष्यों का, भुवर्लोक में पितरों का, स्वर्लोक में देवताओं का, महर्लोक में महर्षियों का, जनलोक में सिद्ध, चारण, गन्धर्व, और विद्याधरों का, तपलोक में प्रभु के प्रिय भक्तों का, और सत्यलोक में परमब्रह्म का निवास किया गया। 

ब्रह्माजी ने सबसे पहले देवताओं की उत्पत्ति की, जिनमें आदिपुरुष के अंश से उत्पन्न देवताओं को इन्द्र नाम दिया गया और उन्हें देवताओं के राजा के रूप में स्थापित किया गया। इसके बाद, उन्होंने तैंतीस करोड़ देवताओं की रचना की और विभिन्न दिशाओं के अधिपति बनाकर स्थापित किया।

मैथुन धर्म से सृष्टि का विस्तार

ब्रह्माजी ने प्रजापतियों की उत्पत्ति मैथुन धर्म के माध्यम से प्रारम्भ की, जिससे सृष्टि की वृद्धि होने लगी। ब्रह्माजी ने किन्नर, गंधर्व, अप्सरा, और विद्याधरों की उत्पत्ति की और उन्हें उनके योग्य कार्य सौंपे। इसके बाद, उन्होंने मनुष्यों की सृष्टि की और उन्हें पृथ्वी पर स्थान दिया। सृष्टि का संतुलन बनाए रखने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, और महेश तीनों देवताओं की नियुक्ति की गई, जिन्हें सृष्टि का सृजन, पालन, और संहार का कार्य सौंपा गया।

आनन्दस्वरूप प्रभु की लीला

ब्रह्माजी ने परमात्मा की स्तुति की और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया। प्रभु ने मैथुन धर्म से उत्पन्न सृष्टि का आदेश दिया, जिससे ब्रह्माजी ने प्रजापतियों की उत्पत्ति प्रारम्भ की। इस प्रकार सृष्टि का विस्तार होने लगा और ब्रह्माजी अत्यन्त प्रसन्न हुए। परमात्मा की लीला और सृष्टि के सृजन का यह वृत्तान्त न केवल अद्भुत है, बल्कि यह परमात्मा के अनन्त आनन्द और उनकी महिमा का भी परिचायक है। 

सूतजी के अनुसार, जो इस लीला का श्रवण करते हैं, उन्हें माया का मोह नहीं होता और वे परमात्मा के आनन्दस्वरूप में समाहित हो जाते हैं। इस लीला का पाठ करने से पुरुषार्थ, सुख, और भोग की प्राप्ति होती है, और परमात्मा अपने भक्तों को अपने पास रखते हैं और उन्हें दर्शन देते हैं।

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