महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भर भारत की राह

विनोद कुमार झा

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का गुजरात के धरमपुर में श्रीमद राजचंद्र सर्वमंगल महिला उत्कृष्टता केंद्र के उद्घाटन अवसर पर दिया गया वक्तव्य केवल एक औपचारिक भाषण नहीं, बल्कि भारतीय समाज की बदलती चेतना और विकास की समावेशी दृष्टि का स्पष्ट संकेत है। महिलाओं की क्षमता, आध्यात्मिक विरासत और आत्मनिर्भर भारत तीनों सूत्र इस आयोजन में एक साथ जुड़ते दिखाई देते हैं।

राजनाथ सिंह ने जिस दृढ़ता से यह कहा कि महिलाओं ने हर बार समान अवसर मिलने पर पुरुषों के बराबर या उनसे बेहतर प्रदर्शन किया है, वह आज के भारत की सामाजिक सच्चाई को रेखांकित करता है। ‘सेवा’ की इला भट्ट और श्री महिला गृह उद्योग की जसवंतीबेन पोपट जैसे उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि जब महिलाओं को संसाधन, विश्वास और अवसर मिलते हैं, तो वे न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे समाज की आर्थिक और सामाजिक संरचना को सशक्त बनाती हैं। धरमपुर का यह उत्कृष्टता केंद्र, जिसका संचालन पूरी तरह ग्रामीण महिलाओं द्वारा किया जाएगा, महिला उद्यमिता और नेतृत्व आधारित विकास का सशक्त मॉडल बन सकता है।

यह केंद्र केवल कौशल विकास या आजीविका सुधार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता के साथ आत्मचिंतन का भी अवसर प्रदान करता है। आर्थिक सशक्तिकरण और आध्यात्मिक विकास का यह समन्वय भारतीय परंपरा की विशिष्ट पहचान रहा है। सिंह का यह कहना कि यहां कार्य करने वाली महिलाएं आत्मनिर्भर बनने के साथ आध्यात्मिक चिंतन के लिए समय और अवसर पाएंगी, विकास की उस अवधारणा को मजबूती देता है जिसमें मनुष्य को केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि मूल्य-आधारित नागरिक माना गया है। संपादकीय दृष्टि से यह भी महत्वपूर्ण है कि रक्षा मंत्री ने श्रीमद राजचंद्रजी की विरासत को समकालीन संदर्भों से जोड़ा। 19वीं सदी के इस जैन मुनि, दार्शनिक और सुधारक द्वारा पुनः प्रतिपादित ‘मुक्ति मार्ग’ आज भी उतना ही प्रासंगिक है। लगभग 2,500 वर्ष पूर्व भगवान महावीर द्वारा दिखाए गए इस मार्ग को नए युग में पुनर्जीवित करने का कार्य श्रीमद राजचंद्रजी ने किया, और यही कारण है कि उनकी शिक्षाएं समय के साथ और अधिक प्रासंगिक होती जा रही हैं।

धर्मपुर में श्रीमद राजचंद्रजी के आगमन के 125 वर्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने का संयोग केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी है। दोनों परंपराएं अनुशासन, सेवा, परोपकार और सांस्कृतिक जागृति जैसे मूल्यों को पोषित करती हैं। यह स्मरण कराता है कि सच्चा राष्ट्र-निर्माण केवल आर्थिक विकास से नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और सामाजिक सेवा के साथ ही संभव है। केंद्र सरकार द्वारा जैन परंपरा और विरासत के संरक्षण के प्रयास चोरी गई तीर्थंकर प्रतिमाओं की वापसी हो या प्राकृत भाषा को शास्त्रीय दर्जा यह दर्शाते हैं कि विकास और सांस्कृतिक संरक्षण को एक-दूसरे का विरोधी नहीं, बल्कि पूरक माना जा रहा है। जैन दर्शन का ‘अनेकांतवाद’ आज के ध्रुवीकरण के दौर में सह-अस्तित्व, संवाद और सद्भाव का मार्ग सुझाता है।

अंततः, धरमपुर का यह महिला उत्कृष्टता केंद्र केवल एक भवन या परियोजना नहीं, बल्कि उस भारत की प्रतीकात्मक तस्वीर है, जहां महिला सशक्तिकरण, आध्यात्मिक चेतना और आत्मनिर्भरता एक साथ आगे बढ़ते हैं। यदि ऐसे प्रयास निरंतर और व्यापक रूप से आगे बढ़ते हैं, तो वे निश्चय ही एक समावेशी, संतुलित और सशक्त भारत के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

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