बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के तहत 121 सीटों पर आज शाम प्रचार का शोर थम जाएगा। पिछले कई दिनों से राज्य का माहौल पूरी तरह चुनावी रंग में रंगा हुआ था। सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर तरफ नारों, वादों और आरोप-प्रत्यारोपों की गूंज थी। लेकिन अब वक्त है जब जनता खुद तय करेगी कि कौन-सा चेहरा, कौन-सी पार्टी उनके भविष्य की बागडोर संभालेगी।
इस चरण के तहत जिन क्षेत्रों में मतदान होना है, वे बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने में हमेशा अहम भूमिका निभाते आए हैं। यहां ग्रामीण बिहार की असल तस्वीर झलकती है खेत-खलिहान, रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास की जमीनी सच्चाई। पिछले कुछ वर्षों में इन इलाकों में विकास का दावा तो खूब हुआ, पर लोगों की उम्मीदें अब भी अधूरी हैं। यही वजह है कि मतदाता इस बार अपने वोट के ज़रिए सरकारों से जवाब मांगने को तैयार दिख रहे हैं।
प्रचार के दौरान हर दल ने अपनी-अपनी रणनीति के तहत जनता को लुभाने की कोशिश की। सत्ताधारी दल ने विकास और स्थिरता का नारा बुलंद किया, तो विपक्ष ने बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और महंगाई को मुद्दा बनाया। लेकिन असली सवाल यह है कि इन नारों और वादों से परे, क्या आम आदमी के जीवन में वास्तविक परिवर्तन लाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति किसी के पास है?
अब जब प्रचार थम चुका है, तो यह लोकतंत्र की उस पवित्र घड़ी की ओर संकेत करता है जब “शोर नहीं, सोच” बोलती है। जनता अब नेताओं के भाषण नहीं, उनके कर्मों का लेखा-जोखा तौलेगी। यह भी सच है कि बिहार का मतदाता अब पहले से कहीं अधिक जागरूक है। वह जाति और भावनाओं की राजनीति से आगे बढ़कर रोजगार, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं जैसे मुद्दों पर सोचने लगा है।
पहले चरण का यह मतदान केवल 121 सीटों का नहीं, बल्कि बिहार के जनमत का पहला संकेत भी होगा। यह बताएगा कि जनता बदलाव चाहती है या स्थिरता। लेकिन सबसे बड़ी उम्मीद यही है कि बिहार का लोकतंत्र एक बार फिर अपनी परिपक्वता साबित करेगा शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और निर्णायक मतदान के ज़रिए।अब शोर थम गया है, पर लोकतंत्र की असली आवाज़ जनता की आवाज़ बैलेट बॉक्स में गूंजेगी।
