कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान से होता है समस्त पापों का नाश

 विनोद कुमार झा

हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन अत्यंत पवित्र माना गया है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना से भी गहराई से जुड़ा हुआ पर्व है। जब कार्तिक मास की पूर्णिमा आती है, तब गंगा घाटों पर आस्था का सागर उमड़ पड़ता है। गंगा तट दीपों की श्रृंखलाओं से जगमगा उठते हैं, और श्रद्धालु जन गंगा स्नान कर पुण्य प्राप्ति की कामना करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आस्था की पवित्र परंपरा : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार भी माना जाता है। गंगा स्नान, दीपदान और दान-पुण्य की परंपरा इसी कारण इस दिन विशेष रूप से की जाती है।

वाराणसी, प्रयागराज, हरिद्वार, गया, पटना और मुंगेर जैसे तीर्थस्थलों पर लाखों श्रद्धालु स्नान करते हैं, दीपदान करते हैं और भगवान हरि-हर की आराधना में लीन हो जाते हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति के गहरे भावनात्मक ताने-बाने को भी उजागर करता है।

गंगा और जनमानस का अटूट संबंध : गंगा केवल एक नदी नहीं है  वह भारत की आत्मा है, संस्कृति की धारा है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा तटों पर जो श्रद्धा दिखाई देती है, वह इस नदी के प्रति भारतीय जनमानस की भावनाओं को व्यक्त करती है। माँ गंगा के प्रति यह समर्पण केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है। गंगा के तट पर दीपदान करना, आरती उतारना, और सामूहिक प्रार्थना करना  ये सब न केवल पूजा-पाठ हैं, बल्कि यह संदेश भी देते हैं कि मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता पारस्परिक सम्मान और संतुलन पर आधारित होना चाहिए।

पर्यावरणीय चेतना का अवसर :आज जब नदियाँ प्रदूषण और उपेक्षा की शिकार हो रही हैं, तब कार्तिक पूर्णिमा का यह पर्व हमें यह सोचने का अवसर देता है कि हम अपनी आस्था की प्रतीक गंगा को कैसे स्वच्छ और जीवंत बनाए रख सकते हैं। गंगा स्नान का वास्तविक अर्थ तभी पूर्ण होगा जब हम गंगा को अपशिष्टों और प्लास्टिक से मुक्त रखें। पर्यावरणविदों का कहना है कि त्योहारों के दौरान लाखों श्रद्धालु घाटों पर आते हैं, और अगर प्रत्येक व्यक्ति स्वच्छता का संकल्प ले, तो गंगा का पुनर्जीवन संभव है। इस अवसर पर “स्वच्छ गंगा पवित्र गंगा” का संदेश जन-जन तक पहुँचना चाहिए।

सामाजिक एकता और सामूहिकता का पर्व :कार्तिक पूर्णिमा का स्नान केवल धार्मिक कृत्य नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन समाज के हर वर्ग के लोग जाति, वर्ग, भाषा या क्षेत्र की सीमाओं को पार करते हुए एक साथ आते हैं। यह भारत की “विविधता में एकता” की भावना को मूर्त रूप देता है।

गंगा तटों पर सामूहिक दीपदान और भजन-कीर्तन का आयोजन सामाजिक सद्भाव और सौहार्द्र का वातावरण बनाता है। यह वह क्षण होता है जब मनुष्य अपनी सीमाओं से परे जाकर ईश्वरीय एकत्व का अनुभव करता है।

आस्था के साथ जिम्मेदारी भी जरूरी : कार्तिक पूर्णिमा का गंगा स्नान आस्था का अद्भुत उत्सव है जहाँ भक्ति, संस्कृति और पर्यावरण का सुंदर संगम होता है। परंतु यह आवश्यक है कि हम केवल परंपरा निभाने तक सीमित न रहें, बल्कि गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।अगर हर श्रद्धालु यह संकल्प ले कि गंगा को गंदा नहीं करेगा, कूड़ा नहीं फेंकेगा, और दूसरों को भी स्वच्छता के प्रति प्रेरित करेगा  तो यह पर्व न केवल धार्मिक बल्कि राष्ट्रीय चेतना का भी प्रतीक बन जाएगा।

गंगा केवल स्नान का स्थल नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है। आइए  आस्था के साथ स्वच्छता, संस्कृति के साथ संवेदना और परंपरा के साथ पर्यावरण का दीप भी जलाएँ।

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