देव दीपावली : प्रकाश से आत्मप्रकाश तक की यात्रा

विनोद कुमार झा

भारत उत्सवों की भूमि है  यहाँ हर पर्व केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का प्रतीक होता है। इन्हीं में से एक अद्भुत पर्व है देव दीपावली, जो काशी के घाटों से लेकर मानव हृदय तक प्रकाश का संदेश फैलाता है। कार्तिक पूर्णिमा की रात जब गंगा के तट हजारों दीपों से जगमगा उठते हैं, तब वह दृश्य केवल आँखों का नहीं, आत्मा का उत्सव बन जाता है।

देव दीपावली की कथा केवल एक धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है। यह उस क्षण का प्रतीक है जब अंधकार पर प्रकाश की विजय होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार कर देवताओं को भयमुक्त किया था। तब देवताओं ने आनंदपूर्वक गंगा तट पर दीप जलाए  वही दीप आज भी हर कार्तिक पूर्णिमा को जलाए जाते हैं। काशी के घाटों पर जलते असंख्य दीप केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि यह घोषणा करते हैं कि जब-जब जीवन में अंधकार छाएगा, तब-तब प्रकाश की लौ उसे मिटाने अवश्य आएगी।

वाराणसी की देव दीपावली दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करती है। जब शाम ढलती है और गंगा की लहरें दीपों की रोशनी में झिलमिलाने लगती हैं, तो पूरा वातावरण दिव्यता से भर जाता है। घाटों पर हजारों श्रद्धालु ‘गंगा आरती’ में शामिल होकर दीयों से गंगा माता का श्रृंगार करते हैं। यह दृश्य न केवल धार्मिक है, बल्कि पर्यावरणीय और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। हर दीप में एक संदेश छिपा होता है  प्रकृति के प्रति श्रद्धा, मानवता के प्रति प्रेम और आत्मा के प्रति प्रकाश

देव दीपावली हमें यह याद दिलाती है कि सच्चा दीप बाहर नहीं, भीतर जलाना होता है। अगर हर व्यक्ति अपने भीतर का एक दीप जलाए सत्य, सेवा और करुणा का  तो समाज स्वयं आलोकित हो उठेगा। आज जब मानवता स्वार्थ, हिंसा और प्रदूषण के अंधकार से जूझ रही है, तब देव दीपावली का यह उत्सव हमें आत्ममंथन का अवसर देता है।
गंगा की लहरों में झिलमिलाते दीप जैसे कह रहे हों 
"पहले स्वयं को रोशन करो, फिर संसार स्वयं उजला हो जाएगा।" काशी में इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, गंगा स्वच्छता अभियान और पारंपरिक दीपदान आयोजित किए जाते हैं। यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि भक्ति और पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक हैं।

यदि हम गंगा की पवित्रता बनाए रखें, प्रकृति की रक्षा करें, तो वही देव दीपावली की सच्ची आराधना होगी। देव दीपावली केवल काशी का पर्व नहीं  यह हर उस हृदय का उत्सव है जो सत्य और प्रकाश की ओर अग्रसर है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि अंधकार केवल बाहर नहीं होता, वह भीतर भी बसता है। और जब हम भीतर का दीप जलाते हैं, तभी सच्चा उत्सव होता है देव दीपावली। काश, हर व्यक्ति के जीवन में वह क्षण आए जब वह अपने मन के अंधकार को दूर कर आत्मा के प्रकाश से आलोकित हो उठे। तभी यह पर्व अपनी पूर्णता प्राप्त करेगा।

Post a Comment

Previous Post Next Post