"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु मे॥"

"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु मे॥"

मां कुष्मांडा अपने दिव्य हाथों में अमृत और रक्त से भरे कलश धारण करती हैं। वे कमल के समान कोमल और तेजस्वी स्वरूप से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को जीवन प्रदान करने वाली हैं। माँ की कृपा से भक्त के जीवन में सुख-समृद्धि, आरोग्य और शक्ति का संचार होता है।

मां कुष्मांडा ब्रह्मांड की सृजनकर्ता हैं। उनका स्वरूप ऊर्जा, प्रकाश और ऐश्वर्य का प्रतीक है। भक्त यदि सच्चे मन से उनकी उपासना करता है तो उसके जीवन से अंधकार दूर होकर नई उमंग और शक्ति का उदय होता है।

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