विनोद कुमार झा
मानव सभ्यता के विकास की गाथा जितनी रोमांचक है, उतनी ही गहन शिक्षा और ज्ञान की महत्ता को भी दर्शाती है। धर्मग्रंथों, इतिहास, पुराणों, बुजुर्गों की कहानियों से लेकर आधुनिक साहित्य और सिनेमा तक, हमने अनगिनत बार यह सुना और देखा है कि हर युग में ऐसे अद्भुत अस्त्र-शस्त्र रहे हैं जो केवल एक आदेश या मंत्रोच्चार से संचालित होते थे। इन्हें शब्दवेधी अस्त्र कहा गया, जिनकी विशेषता यह थी कि यह लक्ष्य को बिना देखे, केवल शब्द या ध्वनि के आधार पर साध लेते थे।रामायण में परशुराम और अर्जुन जैसे धनुर्धरों के पास शब्दवेधी बाणों का उल्लेख मिलता है। महाभारत में भी गुरु द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं को इस विद्या में पारंगत बताया गया है। इन अस्त्रों की शक्ति इतनी प्रचंड थी कि शत्रु कहीं भी छिपा हो, वह बच नहीं सकता था। यही कारण था कि प्राचीन युद्धों में इन्हें अंतिम और निर्णायक हथियार माना जाता था। लेकिन समय के साथ यह तथ्य और स्पष्ट हुआ कि भले ही अस्त्र-शस्त्र से युद्ध जीते जा सकते हैं, परंतु जीवन की सबसे बड़ी विजय ज्ञान और शिक्षा से ही संभव है।
धर्मग्रंथ बताते हैं कि ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, शब्दवेधी जैसे अस्त्र अपार शक्ति के प्रतीक थे। किंतु इनका नियंत्रण केवल कुछ विशेष व्यक्तियों के हाथ में था, जिन्हें कठोर साधना और विद्या से यह सामर्थ्य प्राप्त होती थी। दूसरे शब्दों में, अस्त्रों का वास्तविक स्रोत भी ज्ञान ही था।
इतिहास इसका साक्षी है कि जहां ज्ञान रहा, वहां सभ्यता का विकास हुआ, और जहां अज्ञानता रही, वहां विनाश और पतन हुआ। अशिक्षा मनुष्य के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। जिस प्रकार एक शब्दवेधी बाण अदृश्य शत्रु को मार सकता था, उसी प्रकार शिक्षा अदृश्य अज्ञानता को नष्ट कर देती है। शिक्षा के बिना व्यक्ति केवल शरीर मात्र रह जाता है; उसमें विचार, विवेक और सृजनशीलता का प्रकाश नहीं होता।
अशिक्षा सबसे घातक अस्त्र : यदि हम तुलना करें तो ब्रह्मास्त्र या शब्दवेधी अस्त्र एक व्यक्ति या सेना का विनाश कर सकते थे, लेकिन अशिक्षा का प्रभाव पूरी पीढ़ियों को अंधकार में धकेल सकता है। यह सामाजिक, आर्थिक और मानसिक विकास को रोक देती है। अशिक्षित समाज न केवल प्रगति से वंचित रहता है, बल्कि अंधविश्वास, शोषण और गरीबी का शिकार बनता है।
महाभारत में संजय को दिव्यदृष्टि मिलने का उल्लेख हमें बताता है कि दृष्टि केवल नेत्रों की नहीं, ज्ञान की भी होनी चाहिए। जब तक समाज में शिक्षा का प्रकाश नहीं होगा, तब तक विकास और समानता का सपना अधूरा ही रहेगा।
आज का युग तकनीक, विज्ञान और नवाचार का है। यहां अस्त्र-शस्त्र नहीं, बल्कि ज्ञान और सूचना ही सबसे शक्तिशाली हथियार हैं। परमाणु बम से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तक, सबका आधार शिक्षा और अनुसंधान है।
जो राष्ट्र शिक्षा में आगे हैं, वे ही आज विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं। वहीं जहां शिक्षा की कमी है, वहां अशांति, अपराध और गरीबी का बोलबाला है।
शिक्षा केवल रोज़गार का माध्यम नहीं, बल्कि चिंतन, चरित्र और संस्कृति का निर्माण करती है। यह हमें न केवल अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान कराती है, बल्कि हमें यह समझने की क्षमता देती है कि समाज और राष्ट्रहित में क्या उचित है।
शिक्षा ही है मानवता का शब्दवेध अस्त्र : आज जब हम प्राचीन शब्दवेधी अस्त्रों की गाथाएं सुनते हैं, तो हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि वे केवल इतिहास बनकर रह गए। लेकिन शिक्षा का अस्त्र आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था। यह अस्त्र किसी को मारता नहीं, बल्कि जीवन देता है। यह विनाश नहीं करता, बल्कि सृजन करता है।
यदि भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो हमें शिक्षा के इस अस्त्र को हर हाथ में देना होगा। जब हर बच्चा शिक्षित होगा, तब ही समाज में समानता, न्याय और प्रगति का सूरज उगेगा। क्योंकि अस्त्र-शस्त्र से सीमाएं सुरक्षित हो सकती हैं, परंतु शिक्षा से राष्ट्र का भविष्य सुरक्षित होता है।