ऋषि पंचमी व्रत करने से मिलती है पापों से मुक्ति, जानिए इस व्रत का महत्व और कथाएं

 विनोद कुमार झा

ऋषि पंचमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत विशेषकर महिलाओं द्वारा अपने शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए तथा सप्तऋषियों की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि जो महिला इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करती है, वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करती है।

कथा : पुराणों के अनुसार, एक समय विदर्भ देश में सुमति नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह वेदों का ज्ञाता, धर्मपरायण और अत्यंत ईमानदार था। उसकी पत्नी का नाम जयंती था। उनके घर में पुत्रियाँ और पुत्र रहते थे। वे परिवार सहित भगवान में अत्यधिक श्रद्धा रखते थे।

एक दिन ब्राह्मण पत्नी अत्यंत दुखी और चिंतित होकर अपने पति के पास आई और बोली , “स्वामी! हमारी कन्या विधवा हो गई है। मैं इस बात से बहुत दुखी हूँ कि कहीं इसके पूर्व जन्म या इस जन्म में किसी दोष का फल तो इसे नहीं मिला? आप कृपा करके इसका कारण बताइए।”

ब्राह्मण ने ध्यान किया और अपने योगबल से कारण जान लिया। उसने कहा ,

“हे प्रिये! पूर्व जन्म में यह कन्या ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुई थी। उस जन्म में यह मासिक धर्म (रजस्वला) के दिनों में शास्त्रवर्जित कार्य करती थी। उसने शुद्धि के नियमों का पालन नहीं किया। परिणामस्वरूप इसे यह पाप लगा और इसका वैवाहिक सुख नष्ट हो गया।”

पत्नी ने अत्यंत दीन भाव से पूछा ,“स्वामी! ऐसा कौन-सा उपाय है जिससे मेरी पुत्री इस पाप से मुक्त हो सके और आने वाले जन्मों में उसे ऐसा कष्ट न भोगना पड़े?”

ब्राह्मण ने उत्तर दिया ,“हे सुभगे! भगवान ने धर्मशास्त्रों में एक महान व्रत का विधान किया है, जिसका नाम ऋषि पंचमी व्रत है। भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन, स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, सप्तऋषियों की पूजा करनी चाहिए। इसके प्रभाव से स्त्री अपने रजस्वला काल में हुए अनजाने अपराधों से मुक्त हो जाती है।”

व्रत का विधान और सप्तऋषियों की पूजा : ब्राह्मण पत्नी ने विधिपूर्वक व्रत किया। उसने जल से स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, भूमि पर गोबर से मंडल बनाकर उसमें सप्तऋषियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ) के प्रतीक स्थापित किए। उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, और फल अर्पित किए। तत्पश्चात् ब्राह्मणों को भोजन कराकर, दक्षिणा दी और व्रत कथा सुनी।

इस व्रत के प्रभाव से उसकी पुत्री के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो गए। वह अगले जन्म में सौभाग्यवती होकर सुखमय जीवन जीने लगी। शास्त्रों में कहा गया है , जो महिलाएँ मासिक धर्म के समय अनजाने में नियम तोड़ देती हैं, वे इस व्रत से सभी दोषों से मुक्त हो जाती हैं।

इस व्रत को करने से सात जन्मों तक पापों का क्षय होता है। व्रत करने वाली स्त्री को मनचाहा फल, आरोग्य, सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत केवल महिलाएँ ही नहीं, पुरुष भी कर सकते हैं। व्रत करते समय शुद्धता, सात्त्विकता और श्रद्धा का ध्यान रखना चाहिए। व्रत में अन्न का त्याग कर केवल फल, जल, दही आदि का सेवन करना श्रेष्ठ माना गया है।


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