विनोद कुमार झा
स्थान: वेस्ट खासी हिल्स मेघालय
वेस्ट खासी हिल्स ज़िले में स्थित नॉंगलसॉई (Nongkhlaw) गाँव, एक शांत, हरियाली से घिरा क्षेत्र है जहाँ खासी राजा हुआ करते थे। यहीं स्थित है एक अत्यंत प्राचीन और रहस्यपूर्ण शिव मंदिर जिसके बारे में स्थानीय जनजातियों और साधुओं के बीच दिव्य अग्नि की कथा सदियों से प्रचलित है।
प्रचलित लोक कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र के पुराने राजा ने एक दिव्य स्वप्न देखा जिसमें शिवजी ने आदेश दिया कि उस स्थान पर मंदिर बनाओ जहाँ भूमि से अग्नि की ज्वाला निकले। जब खोज की गई, तो एक स्थान से स्वतः धुआँ निकलता मिला। वहाँ शिवलिंग स्थापित कर भव्य मंदिर बनाया गया। यह मंदिर आज भी रहस्यमय है विशेष अवसरों पर शिवलिंग से जल की बूँदें निकलती हैं जिन्हें "देवजल" माना जाता है।
कहा जाता है कि खासी राजा उ सोइंग सैयेम, जो इस क्षेत्र के अधिपति थे, एक रात उन्हें एक अत्यंत तेजस्वी स्वप्न आया। स्वप्न में एक तेज़ प्रकाशमान पुरुष प्रकट हुए जिनके सिर पर जटा थी, नेत्रों में अग्नि थी और हाथों में त्रिशूल। उन्होंने राजा से कहा ,“हे राजन्! मैं इस भूमि के भीतर तपस्या कर रहा हूँ। जहाँ से अग्नि निकलेगी, वहाँ मेरा शिवलिंग स्थापित करो। मैं वहाँ जागृत रूप में विराजूँगा।”
जब राजा की नींद खुली, तो उसे लगा यह महज स्वप्न था। लेकिन अगले दिन राजमहल से दूर एक पर्वतीय टीले से लगातार धुआं निकलता देखा गया। राजा ने उस स्थान को खुदवाया तो वहाँ से एक स्वतः प्रकट (स्वयंभू) शिवलिंग मिला।वह स्थान अब नॉंगलसॉई शिव मंदिर कहलाता है।
यहाँ की सबसे रहस्यमयी बात है कि प्रत्येक शिवरात्रि की रात्रि, मंदिर के अंदर स्थित गर्भगृह में बिना तेल-बत्ती के एक नीली ज्वाला प्रकट होती है।यह ज्वाला केवल कुछ क्षणों के लिए दिखाई देती है और फिर विलीन हो जाती है।
स्थानीय पुजारियों का मानना है कि “यह शिव की आत्म-ज्योति है। जब वह जागते हैं, तो अपनी उपस्थिति का संकेत इस अग्नि से देते हैं।”
मंदिर की विशेष संरचना : मंदिर का गर्भगृह भूमिगत है यानी भक्तों को नीचे उतरकर शिवलिंग के दर्शन करने होते हैं।शिवलिंग पर झरने की धारा गिरती रहती है, जिसे ‘गंगाजल’ माना जाता है। मंदिर के ऊपर कोई शिखर नहीं, केवल एक बड़ा वटवृक्ष है जो इसे नैसर्गिक चेतना का प्रतीक बनाता है।
यद्यपि खासी जनजाति प्रकृति-पूजक रही है, परंतु नॉंगलसॉई में शिव की उपस्थिति उनके धर्म में दैवत्व का गहन समावेश दिखाती है। यहाँ शिव को 'U Blei Pyrthat' कहा जाता है जिसका अर्थ है – “जो पृथ्वी के भीतर से प्रकट हो”।
कई श्रद्धालु कहते हैं कि उन्होंने शिवलिंग से निकली ध्वनि सुनी है जैसे कोई धीमे स्वर में ‘ॐ’ कह रहा हो। एक बार एक विद्वान पंडित ने उस अग्नि की वास्तविकता को परखना चाहा और अग्नि के समय कैमरा लगाया। कैमरा जल गया। , लेकिन पंडित को एक स्वर्ण आभा दिखाई दी और उनकी आँखों से अश्रुधारा बह चली।
यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि पर यहाँ भव्य मेला लगता है। स्थानीय खासी, नेपाली, बंगाली और असमिया समुदाय भी सम्मिलित होते हैं।रात्रि में ‘अग्नि ध्यान’ किया जाता है जिसमें लोग मौन होकर शिवलिंग के पास बैठते हैं और नीली ज्वाला के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं।
नॉंगलसॉई शिव मंदिर केवल एक तीर्थ नहीं यह शिव की जीवित उपस्थिति, खासी संस्कृति का आध्यात्मिक मिलन, और आत्म-ज्योति का स्मरण है। यह मंदिर बताता है कि ईश्वर का वास न मूर्तियों में है, न ग्रंथों में, बल्कि आत्मा की अग्नि में है जो यदि जागृत हो जाए, तो जीवन स्वयं मंदिर बन जाता है।