श्रावण मास में शिवभक्ति की गूंज

हरिद्वार और सुलतानगंज से कांवड़ यात्रा की आस्था भरी परंपरा

विनोद कुमार झा

श्रावण मास प्रारंभ होते ही संपूर्ण भारतवर्ष शिवभक्ति के रंग में रंग जाता है। यह महीना भगवान शिव की आराधना का प्रतीक माना जाता है। इसी भक्ति भाव के साथ हर साल लाखों श्रद्धालु कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं, जिसमें वे पवित्र गंगाजल को अपने कंधों पर रखे कांवड़ में भरकर भगवान शिव के विभिन्न ज्योतिर्लिंगों और मंदिरों तक पहुँचाते हैं।

हरिद्वार और सुलतानगंज से जल भरने की परंपरा : कांवड़ यात्रा की शुरुआत का सबसे प्रमुख स्थल उत्तराखंड का हरिद्वार है, जहाँ से उत्तर भारत के अधिकांश कांवड़िए गंगा जल भरते हैं। दूसरी ओर, पूर्वी भारत में बिहार के सुलतानगंज को विशेष महत्व प्राप्त है। यहाँ से गंगा नदी का जल भरकर कांवड़िए झारखंड स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम (देवघर) तक की कठिन यात्रा करते हैं। मान्यता है कि यही वह मार्ग है जिसे पौराणिक काल में भगवान परशुराम ने भी अपनाया था। उन्होंने सुलतानगंज से जल लेकर श्रावण मास में शिवलिंग का अभिषेक किया था।

कांवड़ यात्रा: संयम, तपस्या और श्रद्धा की मिसाल : कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मसंयम, सेवा और तप का प्रतीक मानी जाती है। यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को साधु के समान जीवन व्यतीत करना होता है। नंगे पाँव चलना, मांसाहार व नशे से दूरी बनाना, अपशब्दों से बचना और पूर्ण शुद्धता बनाए रखना कांवड़ यात्रा के महत्वपूर्ण नियम हैं।

कांवड़िए गंगाजल भरने के बाद जब तक शिवलिंग पर जल अर्पित नहीं कर लेते, तब तक जल पात्र को ज़मीन पर नहीं रखते। यात्रा के इस संकल्प में कोई ढील नहीं दी जाती। कांवड़ को छूने से पहले स्नान करना, और यात्रा के दौरान साबुन, तेल, कंघा जैसी वस्तुओं का त्याग करना भी आवश्यक नियमों में शामिल है।

प्रमुख गंतव्य और तीर्थस्थल : श्रद्धालु उत्तर भारत में मेरठ के औघड़नाथ मंदिर, पुरा महादेव और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, जबकि पूर्वी भारत में देवघर का बैद्यनाथ धाम और पश्चिम बंगाल का तारकनाथ मंदिर प्रमुख गंतव्य हैं। इन शिवधामों पर सावन के सोमवार और चतुर्दशी के दिन जल चढ़ाना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है।

नवीनता और परंपरा का संगम : भले ही आधुनिक समय में कुछ श्रद्धालु बाइक, ट्रक या अन्य साधनों से यात्रा करने लगे हैं, लेकिन पारंपरिक कांवड़ यात्रा की महिमा और गरिमा अब भी अक्षुण्ण है। पैदल चलकर गंगाजल लाने वाले कांवड़िए आज भी भक्ति, समर्पण और तपस्या की मिसाल बने हुए हैं। सावन का महीना, हरिद्वार और सुलतानगंज जैसे पवित्र स्थलों से आरंभ होने वाली कांवड़ यात्रा, न केवल श्रद्धा का पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और अनुशासन का जीवंत उदाहरण है।


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