विनोद कुमार झा
हरीहरपुर गाँव के बीचों-बीच, जहाँ सूरज की किरणें भी शरमा कर झाँकती थीं, वहीं चमनलाल जी की चाय की दुकान थी। यह सिर्फ चाय की दुकान नहीं, बल्कि गाँव की हर सुबह, हर दोपहर और हर शाम का मर्मस्थल थी। चमनलाल जी, जिनके नाम में ही 'चमन' और 'चतुर' समाहित था, और दिमाग उनका इतना तेज़ था कि देश के नेता भी उनसे गुर सीख सकते थे। साथ ही अपने तीखे दिमाग और अनुपम 'चाय' के लिए जाने जाते थे। उनकी दुकान की रौनक गाँव के हर गली-मोहल्ले से लोगों को खींच लाती थी, और हर कोई उनकी बातों और उनकी 'स्पेशल तुलसी अदरक वाली हर्बल मेडिटेशन चाय' का कायल था। यह चाय, जो असल में "गर्म जल में हल्का रंग और ज़रा सी महक" का अद्भुत मिश्रण थी।
लेकिन बोर्ड पर साफ़ लिखा था:"स्पेशल तुलसी अदरक वाली हर्बल मेडिटेशन चाय – 20 रुपये"
जब एक ग्राहक ने कहा, “भइया इसमें ना तुलसी है, ना अदरक…”
तो चमनलाल जी बोले,“भाईसाहब! तुलसी और अदरक की स्मृति ही ध्यान का मूल है। हमारी चाय पीकर आप कल्पना में चले जाते हैं – वही तो असली मेडिटेशन है!”
ग्राहक अचंभित होकर चाय पी गया... और 20 रुपये भी दे गया।
एक दिन चमनलाल जी ने एक और योजना चलाई "ग्राम दर्शन टूर – 50 रुपये में गांव की महानता का अनुभव"
अब लोग पूछें, “गांव तो यहीं है, अनुभव क्या?”
तो जवाब मिलता:“हम आपको वही दिखाएंगे जो आप रोज़ नहीं देखते जैसे कि हरिया की भैंस की टांग में बंधा नीला धागा, गोपाल की दीवार पर बनी पिचकारी की आकृति, और अंत में मेरी दुकान का बोर्ड!”
लोग हँसते-हँसते पैसे दे देते, और चतुरलाल जी अपनी कुर्सी पर बैठकर मुस्कराते रहते ... “परान् मोहयित्वा स्वयम् सुखं जीवत।”
कुछ दिन बाद गाँव में चुनाव आया। चमनलाल जी बोले,"अब सेवा का समय आ गया है।"
घोषणा की:"हर रविवार मुफ्त चाय!"
गाँव वालों ने उन्हें वोट दे दिया। चुनाव जीते। और अगले ही दिन बोर्ड बदल गया: "अब से रविवार को चाय मात्र 25 रुपये – विशेष लोकतांत्रिक टैक्स सहित।"
गाँव वाले बोले: “धोखा हुआ!”
चमनलाल जी मुस्कराए और बोले: “धोखा नहीं, लोकतंत्र का स्वाद है!”
आज भी हरिहरपुर में लोग चाय पीते हैं, ग्राम दर्शन करते हैं, टैक्स देते हैं… और चमनलाल जी अब "सामाजिक उद्यमी" कहलाते हैं और उनके दुकान की दीवार पर सुनहरे अक्षरों में लिखा है: मूर्खान् कुरुत, सुखं चरत।"अर्थात् मुर्ख बनाओ ऐश करो।
Nice
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