विनोद कुमार झा
संसार एक विचित्र रंगमंच है। हर आत्मा अपनी भूमिका निभाने इस मंच पर आती है कभी राजा बनकर, कभी भिक्षु बनकर। पर कुछ आत्माएं होती हैं जो अपने उद्देश्य से भटक जाती हैं। वे न कहीं की होती हैं, न किसी की। ऐसी ही एक भटकती आत्मा की कहानी है यह, जो मृत्यु के बाद भी संसार से मुक्त नहीं हो सकी। लेकिन, जब सबकुछ अंधकार में डूब रहा था, तब कहीं एक कोना ऐसा था जहाँ उम्मीद की छोटी-सी किरण जल रही थी जो इस आत्मा को मोक्ष की ओर ले जा सकती थी।
पश्चिम बंगाल के एक दूर-दराज़ गांव में स्थित थी नीलकंठ हवेली। एक समय वह रौनक से भरी थी, लेकिन अब वहाँ सन्नाटा था। लोग कहते थे, "उस हवेली में आत्मा है।" हर रात आधी रात के बाद, किसी स्त्री की चीखें, बच्चों की हँसी और कंधों पर झूलती साँसें सुनाई देती थीं। लेकिन कोई पास नहीं जाता था।
पंडित वासुदेव, गाँव के सबसे बूढ़े और ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा "यह आत्मा कोई सामान्य नहीं, कोई बहुत पीड़ित प्राणी है। जिसने मृत्यु के बाद भी चैन नहीं पाया।"
ये आत्मा थी रागिनी , एक सुंदर, कोमल लेकिन असहाय स्त्री, जो उसी हवेली की बहू थी। उसका विवाह ठाकुर अचल सिंह के पुत्र समर से हुआ था। समर पढ़ा-लिखा युवक था, लेकिन परिवार की रूढ़िवादी सोच और संपत्ति के मोह ने उसे निर्दयी बना दिया था।
रागिनी ने बहुत सहा, मारपीट, तिरस्कार, संतान का नाश, और अंततः उसे जिंदा जला दिया गया हवेली की तीसरी मंज़िल पर, जहाँ आज भी उसकी आत्मा भटक रही है। उस रात उसकी चीखें हवेली की दीवारों में कैद हो गईं, और तब से कोई भी उस मंज़िल पर नहीं गया।
वर्षों बाद, गाँव में एक युवा लड़की आई विद्या , जो मनोविज्ञान में शोध कर रही थी। उसका उद्देश्य था “भटकती आत्माओं से संवाद करना और उनकी मुक्ति का मार्ग खोजना।” उसने नीलकंठ हवेली की कहानियाँ सुनीं और ठान लिया कि वह इस आत्मा से संवाद करेगी।
गाँव वालों ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसने कहा, “भय नहीं, सहानुभूति चाहिए आत्मा को।”
विद्या जब पहली बार हवेली गई, हवा स्थिर थी, पत्ते भी थम गए थे। उसने दिया जलाया और शांति से बोली “अगर तुम यहाँ हो, तो मुझे संकेत दो।”
तभी ठंडी हवा का एक झोंका आया और सामने रखा दिया बुझ गया। दरवाज़े खुद ब खुद बंद हो गए। और फिर एक कोमल स्त्री की आवाज़ आई, “क्या तुम मेरी बात सुन सकती हो?”
विद्या काँप उठी, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। “हाँ,” उसने कहा, “मैं यहाँ तुम्हारी मुक्ति के लिए आई हूँ।”
रागिनी की आत्मा ने अपनी कहानी बताई। विद्या ने धीरे-धीरे उसके दर्द को समझा एक स्त्री जो एक पुरुषवादी व्यवस्था में कुचली गई, जिसने अन्याय सहते-सहते अपनी ही पहचान खो दी।
रागिनी बोली “मैं मुक्त नहीं हो सकती, मेरी अस्थियाँ अब भी हवेली की दीवारों में हैं, मेरी हत्या की सच्चाई आज भी दबाई गई है।” विद्या ने वादा किया, “मैं तुम्हें न्याय दिलाऊँगी।”
विद्या ने एक अधिवक्ता से संपर्क किया, FIR दर्ज करवाई। यह आसान नहीं था। ठाकुर परिवार के लोग अब भी प्रभावशाली थे। लेकिन सोशल मीडिया और मीडिया की मदद से विद्या ने कहानी को लोगों तक पहुँचाया। धीरे-धीरे मामला खुला, और पुराने नौकर की गवाही से सच्चाई बाहर आई।
ठाकुर समर और उसके माता-पिता को गिरफ्तार किया गया। अदालत ने कहा “रागिनी की आत्मा को अब चैन मिलना चाहिए।”
रात के अंधेरे में, विद्या फिर हवेली पहुँची। अब हवेली के वातावरण में एक शांति थी। रागिनी की आत्मा ने प्रकट होकर कहा, “अब मैं जा सकती हूँ? क्या मुझे अब मोक्ष मिलेगा?”
विद्या ने कहा, “हाँ, तुम्हें न्याय मिल गया, अब ईश्वर तुम्हारा स्वागत करेंगे।” तभी एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ। रागिनी की आत्मा उसमें समा गई। हवेली के चारों ओर बंधा अंधकार टूट गया। हवेली जीवित लगने लगी।
विद्या ने अपनी शोध पूरी की लेकिन अब यह केवल शोध नहीं था, यह आत्माओं को समझने की यात्रा थी। उसने लिखा, "भटकती आत्मा को तंत्र-मंत्र नहीं चाहिए, उसे चाहिए प्रेम, न्याय और कोई जो उसे सुने।" उसका काम भारत के विभिन्न हिस्सों में मान्यता प्राप्त हुआ। उसे बुलाया गया “आओ, वहाँ भी आत्मा है जो दुखी है।”
विद्या ने एक ट्रस्ट बनाया “आशा की किरण” जो ऐसे मामलों की जाँच करता था जहाँ लोग आत्मा की उपस्थिति महसूस करते थे। उसने बताया,"हर आत्मा जिसे मोक्ष नहीं मिला, वह दरअसल वह आत्मा है जिसे दुनिया ने न्याय नहीं दिया।" वह आत्मा किसी की बहन हो सकती है, माँ, या बेटी। विद्या का मिशन था उनकी पीड़ा को पहचानना।
आज नीलकंठ हवेली एक पुस्तकालय बन चुकी है। वहाँ विद्या की लिखी किताबें रखी हैं। और दरवाज़े पर लिखा है:- “यहाँ कभी एक आत्मा भटकी थी। लेकिन एक उम्मीद की किरण ने उसे मुक्त किया। यदि तुम किसी को रोते सुनो, तो मत डरना पुकार शायद न्याय की हो।”
भटकती आत्माएं केवल मृत्यु के बाद नहीं होतीं। कुछ आत्माएं हमारे भीतर भी होती हैं—अधूरी, टूटी, बेजुबान। लेकिन यदि एक भी ‘विद्या’ उन्हें सुनने को तैयार हो जाए, तो आशा की किरण जन्म लेती है। यही किरण, किसी आत्मा को मोक्ष, और किसी इंसान को जीवन दे सकती है।