विनोद कुमार झा
पिछले सप्ताह पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को एक बार फिर उस ज्वलंत मोड़ पर ला खड़ा किया, जहां कूटनीति मौन और रणभेरी मुखर हो जाती है। भारत की ओर से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में दिया गया जवाब न केवल सैन्य दृष्टिकोण से निर्णायक था, बल्कि यह भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामाजिक प्रतिबद्धता और सामरिक आत्मनिर्भरता का एक स्पष्ट और साहसी प्रदर्शन भी था। इस ऑपरेशन की पृष्ठभूमि में यह तथ्य अत्यंत उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की ओर से बार-बार किए गए सीजफायर उल्लंघनों और ड्रोन हमलों के बीच भी भारतीय सेना ने धैर्य के साथ पराक्रम का परिचय दिया। पाकिस्तान की सीमा पार से किए गए मिसाइल प्रयासों और ड्रोन हमलों का भारतीय वायुसेना और थलसेना ने जिस कुशलता और तत्परता से जवाब दिया, उसने यह सुस्पष्ट कर दिया कि अब भारत न केवल आक्रांताओं को रोक सकता है, बल्कि उनका स्रोत भी समाप्त कर सकता है।‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता ने न केवल पाकिस्तान को चौंकाया, बल्कि उसके भीतर मौजूद आतंक समर्थकों के आत्मविश्वास को भी गहरा आघात पहुँचाया। ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान द्वारा अमेरिका से युद्धविराम की अपील इसी दबाव का परिणाम थी। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रह्मोस मिसाइलों द्वारा सीमापार स्थित आतंकी अड्डों पर हुई कार्रवाई ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया। भारतीय सेना के सूत्रों के अनुसार यह ऑपरेशन अभी भी आंशिक रूप से जारी है, और उसके पूर्ण विवरण समयानुसार साझा किए जाएंगे। इस दौरान राइफलमैन सुनील कुमार की शहादत हमें यह स्मरण कराती है कि हर सैन्य कार्रवाई के पीछे एक मानवीय बलिदान होता है। आरएस पुरा सेक्टर में शहीद हुए सुनील कुमार को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल द्वारा दी गई श्रद्धांजलि राष्ट्र की सामूहिक संवेदना की अभिव्यक्ति थी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाओं में भी विविध स्वर उभर कर आए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में ब्रह्मोस एयरोस्पेस फैसिलिटी के उद्घाटन अवसर पर स्पष्ट किया कि “ऑपरेशन सिंदूर केवल जवाबी हमला नहीं, बल्कि भारत की सामरिक दृष्टि और राष्ट्रीय आत्मबल का परिचायक है।” उन्होंने यह भी स्मरण दिलाया कि 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस मनाते हुए हमें पोखरण परीक्षण की ऐतिहासिक उपलब्धि को याद रखना चाहिए, जब भारत ने विश्व को अपनी परमाणु क्षमता का परिचय दिया था। दूसरी ओर, विपक्ष भी इस गंभीर स्थिति में राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए सक्रिय दिखा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस विषय पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की। यह प्रस्ताव विपक्ष की लोकतांत्रिक सजगता को दर्शाता है, जिसमें सरकार से उत्तरदायित्व के साथ-साथ सामूहिक विमर्श की भी अपेक्षा की जाती है।
महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने युद्ध की विभीषिका के प्रति सचेत करते हुए शांति की प्रक्रिया को समय देने की अपील की है। यह एक सटीक राजनीतिक संतुलन है जिसमें सुरक्षा और मानवता दोनों के लिए स्थान है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यदि पाकिस्तान सीजफायर समझौते का उल्लंघन करता है, तो उसे कड़ा और सटीक उत्तर मिलेगा। यह वक्तव्य केवल चेतावनी नहीं, एक नीति का संकेत है कि अब भारत अपनी सीमाओं की रक्षा में कोई कोताही नहीं बरतेगा।
इन घटनाओं ने यह सिद्ध किया है कि भारत अब रणनीतिक दृष्टि से परिपक्व और सैन्य दृष्टि से सक्षम राष्ट्र है। परंतु इसी के साथ यह भी आवश्यक है कि हम, एक राष्ट्र के रूप में, शांति और स्थिरता की दिशा में बढ़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ एक समवेत प्रयास करें। सीमाओं पर गोले बरसाना जितना आसान होता है, उतना ही कठिन होता है युद्ध के बाद उठे सवालों का उत्तर देना। अनाथ हुए बच्चे, उजड़े घर, और रक्तरंजित स्मृतियाँ युद्ध की यही वास्तविकता होती है। इसीलिए, शांति यदि युद्ध से अधिक साहस मांगती है, तो भारत को वह साहस दिखाने में कोई संकोच नहीं।
आज का यक्षप्रश्न यही है क्या पाकिस्तान अपने भीतर की कट्टर सोच को छोड़कर अंतरराष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करेगा? और क्या अमेरिका जैसे देश केवल संकटमोचक बनकर नहीं, बल्कि स्थायी समाधानकर्ता की भूमिका निभाने को तैयार हैं? हमारे सैनिकों ने अपना उत्तर दे दिया है। अब कूटनीति की बारी है।